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महाशिवरात्रिपूजा

पूजन सामग्री 

  • शुद्ध मिट्टी (महादेव का स्वरुप बनावें)     

  • कुश (तेकुशा),अनामिका(कुश,ताँबा) अँगुली में धारण करने वाला

  • गंगाजल                

  • अक्षत (वासमती चावल)              

  • श्रीखण्ड चंदन (उजला चंदन)

  • रक्त चंदन (लाल चंदन)                

  • चन्द्रौटा (छोटा प्लेट)          

  • अर्घा (छोटा ग्लास)

  • पञ्चपात

  • आचमनि               

  • घण्टी

  • सराई          

  •  लाल सिन्दूर          

  •  फूलक माला

  •  फूलक माला

  • तुलसी माला 

  •  बेलपत्र                

  •  दुर्वा(दुइव)

  • धूप             

  • दीप   

  •  पान

  • सुपाड़ी(कसैली)                         

  • पंचमेवा (मिठाई)              

  • पाकल केरा

  • पंचामृत(दुध,दही,घी,मधु, शक्कर)                

  • जनेऊ

  • कर्पूर  

  •  घी  

  • दक्षिणा-द्रव्य 

  • केला पत्ता

  • शंख

  • नया वस्त्र

​​

अथ महाशिवरात्रिपूजा विधिः

तत्र रात्रौ प्रथमप्रहरे स्नात्वा पूजास्थानमागत्य शुद्धमृदा पंचवक्त्रं त्रिनेत्रं चतुर्बाहुः नागयज्ञोपवीतिनं धृतपद्मासनं शिवस्वरूपं निर्माय परिष्कृते पूजास्थाने स्थापयेत्।

व्रत के दिन सवसे पहले  सायं काल में (रात्री के प्रथम प्रहर में)स्नान करके पूजा स्थान मे आकर शुद्ध मिट्टी से शिव का स्वरूप बनावें जिसमें पांच मुह, तीन नेत्र,चार भुजा, नाग,यज्ञोपवीत,धारण किये

शिव कमल के आसन पर विराजमान शिव प्रतीमा को पवित्र पूजन स्थल पर रखकर

उत्तराभिमुख होकर पूजन प्रारम्भ करें।

पञ्चदेवतापूजाः - रात्रि में

गणपत्यादिपंचदेवता की पूजा का विधान है।

त्रिकुशहस्तः अक्षतान्यादायः- ऊँ भूर्भुवः स्वः गणपत्यादिदिपञ्चदेवताः इहागच्छत इह तिष्ठत

दाहिने हाथ में तेकुशा तथा अक्षत  लेकर ये मंत्र पढेगें - ऊँ भूर्भुवः स्वः गणपत्यादिदिपञ्चदेवताः इहागच्छत इह तिष्ठत

इसे केले के पत्ते पर उपर से बाएं तरफ से रखेंगे

इत्यावाह्य एतानि पाद्यार्घाचमनीय-स्नानीय पुनराचमनीयानि ऊँ गणपत्यादिदिपञ्चदेवताभ्यो नमः

अर्घा में जल  लेकर  ये मंत्र पढेगें - एतानि पाद्यार्घाचमनीय-स्नानीय पुनराचमनीयानि ऊँ गणपत्यादिदिपञ्चदेवताभ्यो नमः

चन्दन  - इदमनुलेपनम् ऊँ गणपत्यादिदिपञ्चदेवताभ्यो नमः।

दाहिने हाथ से फूल में चन्दन  लगाकर ये मंत्र  पढेंगे - इदमनुलेपनम् ऊँ गणपत्यादिदिपञ्चदेवताभ्यो नमः।

 

अक्षत - इदमक्षतम्   ऊँ गणपत्यादिदिपञ्चदेवताभ्यो नमः

दाहिने हाथ में अक्षत लेकर ये मंत्र  पढेंगे- इदमक्षतम्   ऊँ गणपत्यादिदिपञ्चदेवताभ्यो नमः

फूल – इदं पुष्पं/ एतानि पुष्पाणि ऊँ गणपत्यादिदिपञ्चदेवताभ्यो नमः

दोनों हाथों को जोड़ते हुए फूल/फूलों को   लेकर  भगवान् का ध्यान करते हुए ये मंत्र  पढेंगें-  इदं पुष्पं/ एतानि पुष्पाणि ऊँ गणपत्यादिदिपञ्चदेवताभ्यो नमः

बिल्वपत्र – इदं बिल्वपत्रं/ एतानि बिल्वपत्राणि ऊँ गणपत्यादिदिपञ्चदेवताभ्यो नमः

एक बेलपत्र/बेलपत्रों को  लेकर ये मंत्र  पढेंगे- इदं बिल्वपत्रं/ एतानि बिल्वपत्राणि ऊँ गणपत्यादिदिपञ्चदेवताभ्यो नमः

दूर्वा ( दूबि) - इदं दूर्वादलं  / एतानि दूर्वादलानि ऊँ गणपत्यादिदिपञ्चदेवताभ्यो नमः

एक दूर्वा/ अनेक दूर्वा को लेकर ये मंत्र पढेंगे- इदं दूर्वादलं  / एतानि दूर्वादलानि ऊँ गणपत्यादिदिपञ्चदेवताभ्यो नमः

 

एतानि गन्ध-पुष्प-धूप-दीप-ताम्बूल-यथाभाग-नानाविधनैवेद्यानि ऊँ गणपत्यादिदिपञ्चदेवताभ्यो नमः

अर्घा में जल लेकर  ये मंत्र पढेंगे - एतानि गन्ध-पुष्प-धूप-दीप-ताम्बूल-यथाभाग-नानाविधनैवेद्यानि ऊँ गणपत्यादिदिपञ्चदेवताभ्यो नमः

 

 जल – इदमाचमनीयम्   ऊँ गणपत्यादिदिपञ्चदेवताभ्यो नमः ।

अर्घा में जल को लेकर  ये मंत्र  पढेंगे - इदमाचमनीयम्   ऊँ गणपत्यादिदिपञ्चदेवताभ्यो नमः ।

 पुष्प - एष पुष्पाञ्जलिः  ऊँ गणपत्यादिदिपञ्चदेवताभ्यो नमः ।

फूल  हाथ में लेकर भगवान् का ध्यान करते हुए ये मंत्र  पढेंगे - एष पुष्पाञ्जलिः  ऊँ गणपत्यादिदिपञ्चदेवताभ्यो नमः ।

विष्णुपूजा –

 

यव-तिलान्यादाय - ऊँ भूर्भुवः स्वः भगवन् श्रीविष्णो इहागच्छ इह तिष्ठ।

दाहिने हाथ में तिल लेकर ये मंत्र  पढेंगे -  ऊँ भूर्भुवः स्वः भगवन् श्रीविष्णो इहागच्छ इह तिष्ठ।   इसे  केले के  पत्ते पर ऊपर से बाएं तरफ से दूसरे  स्थान पर रखेंगे।

जल - एतानि पाद्यार्घाचमनीय स्नानीय पुनराचमनीयानि ऊँ भगवते श्रीविष्णवे नमः

अर्घा में जल  लेकर  ये मंत्र  पढेंगे - एतानि पाद्यार्घाचमनीय स्नानीय पुनराचमनीयानि ऊँ भगवते श्रीविष्णवे नमः

चन्दन - इदमनुलेपनम्  ऊँ भगवते श्रीविष्णवे नमः

दाहिने हाथ से फूल में चन्दन  लगाकर ये मंत्र  पढेंगे - इदमनुलेपनम्  ऊँ भगवते श्रीविष्णवे नमः

तिल - एते तिलाः  ऊँ भगवते श्रीविष्णवे नमः

दाहिने हाथ में तिल लेकर ये मंत्र  पढेंगे - एते तिलाः  ऊँ भगवते श्रीविष्णवे नमः

पुष्प - इदं पुष्पं/ एतानि पुष्पाणि  ऊँ भगवते श्रीविष्णवे नमः ।

दोनों हाथों को जोड़ते हुए फूल/फूलों को   लेकर  भगवान् का ध्यान करते हुए ये मंत्र  पढेंगे -  इदं पुष्पं/ एतानि पुष्पाणि ऊँ भगवते श्रीविष्णवे नमः ।

तुलसीपत्र - इदं तुलसीपत्रं / एतानि तुलसीपत्राणि ऊँ भगवते श्रीविष्णवे नमः ।

एक तुलसीपत्र/तुलसीपत्रों को  लेकर ये मंत्र  पढेंगे - इदं तुलसीपत्रं / एतानि तुलसीपत्राणि ऊँ भगवते श्रीविष्णवे नमः ।

दूर्वा ( दूबि) - इदं दूर्वादलं  / एतानि दूर्वादलानि ऊँ भगवते श्रीविष्णवे नमः ।

एक दूर्वा/ अनेक दूर्वा को लेकर ये मंत्र पढेंगे - इदं दूर्वादलं  / एतानि दूर्वादलानि ऊँ भगवते श्रीविष्णवे नमः ।

दूर्वा ( दूबि) - इदं दूर्वादलं  / एतानि दूर्वादलानि ऊँ भगवते श्रीविष्णवे नमः ।

एक दूर्वा/ अनेक दूर्वा को लेकर ये मंत्र पढेंगे - इदं दूर्वादलं  / एतानि दूर्वादलानि ऊँ भगवते श्रीविष्णवे नमः ।

जल - एतानि गन्ध-पुष्प-धूप-दीप-ताम्बूल-यथाभाग-नानाविधनैवेद्यानि ऊँ भगवते श्रीविष्णवे नमः ।

अर्घा में जल लेकर  ये मंत्र  पढेंगे - एतानि गन्ध-पुष्प-धूप-दीप-ताम्बूल-यथाभाग-नानाविधनैवेद्यानि ऊँ भगवते श्रीविष्णवे नमः ।

जल – इदमाचमनीयम्   ऊँ भगवते श्रीविष्णवे नमः ।

अर्घा में जल को लेकर  ये मंत्र  पढेंगे - इदमाचमनीयम्   ऊँ भगवते श्रीविष्णवे नमः ।

 पुष्प - एष पुष्पाञ्जलिः ऊँ भगवते श्रीविष्णवे नमः ।

फूल  हाथ में लेकर भगवान् का ध्यान करते हुए ये मंत्र  पढेंगे - एष पुष्पाञ्जलिः  ऊँ भगवते श्रीविष्णवे नमः ।

 अथ षोडशोपचार-शिवरात्रिपूजाविधिः

 

गौरीशंकरौ पूजयेत् । तद्यथा प्राणप्रतिष्ठा अक्षतान्यादाय  (सति सम्भवे शिवलिंगोपरिपरि वा शिवप्रतीमोपरि ) –

ओं मनोजूतिर्जुषतामाज्यस्य बृहस्पतिर्यज्ञमिमन्तनोत्वरिष्ठं यज्ञ समिमं दधातु । विश्वेदेवा स इह मादयं तामों प्रतिष्ठ ।

दहीनें हाथ में अक्षत को लेकर ये मंत्र को पढेंगे- गौरीशंकरौ पूजयेत् । तद्यथा प्राणप्रतिष्ठा अक्षतान्यादाय  (सति सम्भवे शिवलिंगोपरिपरि वा शिवप्रतीमोपरि ) –  ओं मनोजूतिर्जुषतामाज्यस्य बृहस्पतिर्यज्ञमिमन्तनोत्वरिष्ठं यज्ञ समिमं दधातु । विश्वेदेवा स इह मादयं तामों प्रतिष्ठ ।

ओं भूर्भुवः स्वः श्रीगौरीशंकराविहागच्छतमिह तिष्ठतम्।इति कुशप्रतिमायां  शिवलिंगोपरिपरि वा शिवप्रतीमोपरि प्राणप्रतिष्ठां विधाय

कुश की प्रतिमा पर  शिवलिंग पर  या शिव की प्रतीमा पर प्राणप्रतिष्ठा करें - ओं भूर्भुवः स्वः श्रीगौरीशंकराविहागच्छतमिह तिष्ठतम्।इति कुशप्रतिमायां

 

शिवलिंगोपरिपरि वा शिवप्रतीमोपरि प्राणप्रतिष्ठां विधाय

ओं हराय नमः,

ओं महेश्वराय नमः

ओं शम्भवे नमः

ओं शूलपाणये नमः

ओं पिनाकधृषे नमः

ओं शिवाय नमः

ओं पशुपतये नमः

ओं महादेवाय नमः

 

 

ध्यानपुष्पं – ओं ध्यायेन्नित्यं महेशं रजतगिरिनिभं चारुचन्द्रावतंसं, रत्नाकल्पोज्ज्वलांगं परशुमृगवराभीतिहस्तं प्रसन्नम्।

पद्मासीनं समन्तात् स्तुतममरगणैर्व्याघ्रकृत्तिं वसानं विश्वाद्यं विश्ववन्द्यं निखिलभयहरं पंचवक्त्रं त्रिनेत्रम्।।  इदं ध्यानपुष्पं गौरीशंकराभ्यां नमः                                      

दोनों हाथो में फुल लेकर  ध्यान करते हुए ये मंत्र को पढेंगे – ओं ध्यायेन्नित्यं महेशं रजतगिरिनिभं चारुचन्द्रावतंसं, रत्नाकल्पोज्ज्वलांगं परशुमृगवराभीतिहस्तं प्रसन्नम्। पद्मासीनं समन्तात् स्तुतममरगणैर्व्याघ्रकृत्तिं वसानं  विश्वाद्यं विश्ववन्द्यं निखिलभयहरं पंचवक्त्रं त्रिनेत्रम्।।  इदं ध्यानपुष्पं गौरीशंकराभ्यां नमः                                      

 

पंचवक्त्रपूजनम्

​1. ईशानवक्त्रे-ओं हौं ईशानाय नमः,इति दुग्धेन वारत्रयम्।

2. पूर्ववक्त्रे- ओं हैं तत्पुरुषाय नमः,इति दध्ना वारत्रयम्।

3. दक्षिणवक्त्रे –ओं हुँ अघोराय नमः,इति घृतेन वारत्रयम्।

4. पश्चिमवक्त्रे –ओं हीं सद्योजाताय नमः,इति मधुधारया वारत्रयम्।

5. उत्तरवक्त्रे –ओं हाँ वामदेवाय नमः,इति खण्डपंचधारया वारपंचकम्।

 पंचवक्त्रपूजन करें-

1.दुध से तीनबार मन्त्र पढते चढावें- ओं हौं ईशानाय नमः

2.दधि से तीनबार मन्त्र पढते चढावें- ओं हैं तत्पुरुषाय नमः

3.घृत से तीनबार मन्त्र पढते चढावें- ओं हुँ अघोराय नमः

4.मधु से तीनबार मन्त्र पढते चढावें ओं हीं सद्योजाताय नमः

5.सर्वौषधि युक्त जल से पांचबार मन्त्र पढते हुवें चढावें- ओं हाँ वामदेवाय नमः

ईशानवक्त्र पूजाः-

 

अक्षतान्यादाय - ऊँ भूर्भूवः  स्वः हौं ईशान इहागच्छ इहतिष्ठ ।

दाहिने हाथ में अक्षत लेकर यह मंत्र  पढेंगे -  ऊँ भूर्भूवः  स्वः हौं ईशान इहागच्छ इहतिष्ठ ।

अर्घ- ओं नमस्ते देव देवेश नमस्ते मोक्षदायिने। ईशानाय नमस्तुभ्यमर्घोयं प्रतिगृह्यताम्।।

अर्घा में जल लेकर मन्त्र पढते हुवे चढावें- ओं नमस्ते देव देवेश नमस्ते मोक्षदायिने। ईशानाय नमस्तुभ्यमर्घोयं प्रतिगृह्यताम्।।

जल - एतानि पाद्यार्घाचमनीय स्नाननीय पुनराचमनीयानि ऊँ हौं ईशानाय नमः ।

अर्घा में जल  लेकर  यह मंत्र  पढेगें - एतानि पाद्यार्घाचमनीय स्नानीय पुनराचमनीयानि ऊँ हौं ईशानाय नमः ।

चन्दन - इदमनुलेपनम्  ऊँ हौं ईशानाय नमः

दाहिने हाथ से फूल में चन्दन  लगाकर ये मंत्र  पढेंगे - इदमनुलेपनम्  ऊँ हौं ईशानाय नमः ।

अक्षतन्यादाय - इदमक्षतं-   ऊँ हौं ईशानाय नमः ।

दाहिने हाथ में अक्षत लेकर ये मंत्र  पढेंगे – एइदमक्षतं  ऊँ हौं ईशानाय नमः ।

पुष्प - इदं पुष्पं/ एतानि पुष्पाणि ऊँ हौं ईशानाय नमः ।

दोनों हाथों को जोड़ते हुए फूल/फूलों को   लेकर ध्यान करते हुए ये मंत्र  पढेंगे -  इदं पुष्पं/ एतानि पुष्पाणि ऊँ हौं ईशानाय नमः ।

बिल्वपत्र – इदं बिल्वपत्रं/ एतानि बिल्वपत्राणि ऊँ हौं ईशानाय नमः ।

एक बेलपत्र/बेलपत्रों को  लेकर ये मंत्र  पढेंगे - इदं बिल्वपत्रं/ एतानि बिल्वपत्राणि ऊँ हौं ईशानाय नमः ।

दूर्वा ( दूबि) - इदं दूर्वादलं  / एतानि दूर्वादलानि ऊँ हौं ईशानाय नमः ।

एक दूर्वा/ अनेक दूर्वा को लेकर ये मंत्र पढेंगे - इदं दूर्वादलं  / एतानि दूर्वादलानि ऊँ हौं ईशानाय नमः ।

 

जलमादाय-एतानि-गन्ध-पुष्प-धूप-दीप-ताम्बूल-यथाभाग-नानाविध-नैवेद्यानि ओं हौं ईशानाय नमः

अर्घा में जल लेकर मन्त्र पढें- एतानि-गन्ध-पुष्प-धूप-दीप-ताम्बूल-यथाभाग-नानाविध-नैवेद्यानि ओं हौं ईशानाय नमः

 

 जल – इदमाचमनीयम्  ऊँ हौं ईशानाय नमः ।

अर्घा में जल को लेकर  ये मंत्र  पढेंगे - इदमाचमनीयम्  ऊँ हौं ईशानाय नमः

पुष्प – एष पुष्पाञ्जलिः ऊँ हौं ईशानाय नमः

फूल  हाथ में लेकर ध्यान करते हुए ये मंत्र  पढेंगे - एष पुष्पाञ्जलिः ऊँ हौं ईशानाय नमः ।

पूर्ववक्त्र पूजाः- 

 

अक्षतान्यादाय - ऊँ भूर्भूवः  स्वः हैं तत्पुरुष इहागच्छ इहतिष्ठ ।

दाहिने हाथ में अक्षत लेकर यह मंत्र  पढेंगे -  ऊँ भूर्भूवः  स्वः हैं तत्पुरुष इहागच्छ इहतिष्ठ ।

अर्घ-ओं नमस्तुभ्यं विरूपाक्ष नमस्ते दितिजान्तक। तत्पुरुषाय नमस्तुभ्यमर्घोयं प्रतिगृह्यताम्।।

अर्घा में जल लेकर मन्त्र पढते हुवे चढावें- ओं नमस्तुभ्यं विरूपाक्ष नमस्ते दितिजान्तक। तत्पुरुषाय नमस्तुभ्यमर्घोयं प्रतिगृह्यताम्।।

जल - एतानि पाद्यार्घाचमनीय स्नाननीय पुनराचमनीयानि ऊँ हैं तत्पुषाय  नमः ।

अर्घा में जल  लेकर  यह मंत्र  पढेगें - एतानि पाद्यार्घाचमनीय स्नानीय पुनराचमनीयानि   ऊँ हैं तत्पुषाय  नमः ।

चन्दन - इदमनुलेपनम्  ऊँ हैं तत्पुषाय  नमः । 

दाहिने हाथ से फूल में चन्दन  लगाकर ये मंत्र  पढेंगे - ऊँ हैं तत्पुषाय  नमः ।

अक्षतन्यादाय - इदमक्षतं-   ऊँ हैं तत्पुषाय  नमः ।

दाहिने हाथ में अक्षत लेकर ये मंत्र  पढेंगे – एइदमक्षतं ऊँ हैं तत्पुषाय  नमः ।

पुष्प - इदं पुष्पं/ एतानि पुष्पाणि ऊँ हैं तत्पुषाय  नमः ।

दोनों हाथों को जोड़ते हुए फूल/फूलों को   लेकर ध्यान करते हुए ये मंत्र  पढेंगे -  इदं पुष्पं/ एतानि पुष्पाणि ऊँ हैं तत्पुषाय  नमः ।

बिल्वपत्र – इदं बिल्वपत्रं/ एतानि बिल्वपत्राणि ऊँ हैं तत्पुषाय  नमः ।

एक बेलपत्र/बेलपत्रों को  लेकर ये मंत्र  पढेंगे - इदं बिल्वपत्रं/ एतानि बिल्वपत्राणि ऊँ हैं तत्पुषाय  नमः ।

दूर्वा ( दूबि) - इदं दूर्वादलं  / एतानि दूर्वादलानि ऊँ हैं तत्पुषाय  नमः ।

एक दूर्वा/ अनेक दूर्वा को लेकर ये मंत्र पढेंगे - इदं दूर्वादलं  / एतानि दूर्वादलानि ऊँ हैं तत्पुषाय  नमः ।

 

जलमादाय- एतानि-गन्ध-पुष्प-धूप-दीप-ताम्बूल-यथाभाग-नानाविधनैवेद्यानि ओं तत्पुरुषाय नमः

अर्घा में जल लेकर मन्त्र पढें- एतानि-गन्ध-पुष्प-धूप-दीप-ताम्बूल-यथाभाग-नानाविधनैवेद्यानि ओं तत्पुरुषाय नमः

 

जल – इदमाचमनीयम्  ऊँ हैं तत्पुषाय  नमः  ।

अर्घा में जल को लेकर  ये मंत्र  पढेंगे - इदमाचमनीयम्  ऊँ हैं तत्पुषाय  नमः ।

पुष्पं गृहीत्वा- एष पुष्पांजली ऊँ हैं तत्पुषाय  नमः ।

हाथ में पुष्प लेक एष पुष्पांजली ऊँ हैं तत्पुषाय  नमः । चढावें

दक्षिणवक्त्र पूजाः-

 

अक्षतान्यादाय - ऊँ भूर्भूवः  स्वः हूँ अघोर इहागच्छ इहतिष्ठ ।

दाहिने हाथ में अक्षत लेकर यह मंत्र  पढेंगे -  ऊँ भूर्भूवः  स्वः हूँ अघोर इहागच्छ इहतिष्ठ ।

अर्घ- ओं नमस्ते शूलहस्ताय नमस्ते दण्डपाणये अघोराय नमस्तुभ्यमर्घोयं प्रतिगृह्यताम्।।

अर्घा में जल लेकर मन्त्र पढते हुवे चढावें- ओं नमस्ते शूलहस्ताय नमस्ते दण्डपाणये अघोराय नमस्तुभ्यमर्घोयं प्रतिगृह्यताम्।।

जल - एतानि पाद्यार्घाचमनीय स्नाननीय पुनराचमनीयानि ऊँ हूँ अघोराय  नमः ।

अर्घा में जल  लेकर  यह मंत्र  पढेगें - एतानि पाद्यार्घाचमनीय स्नानीय पुनराचमनीयानि ऊँ हूँ अघोराय  नमः ।

चन्दन - इदमनुलेपनम्  ऊँ हूँ अघोराय  नमः ।

दाहिने हाथ से फूल में चन्दन  लगाकर ये मंत्र  पढेंगे - इदमनुलेपनम्  ऊँ हूँ अघोराय  ।

अक्षतन्यादाय - इदमक्षतं-   ऊँ हूँ अघोराय  नमः ।

दाहिने हाथ में अक्षत लेकर ये मंत्र  पढेंगे – एइदमक्षतं  ऊँ हूँ अघोराय  नमः ।

पुष्प - इदं पुष्पं/ एतानि पुष्पाणि ऊँ हूँ अघोराय  नमः ।

दोनों हाथों को जोड़ते हुए फूल/फूलों को   लेकर ध्यान करते हुए ये मंत्र  पढेंगे -  इदं पुष्पं/ एतानि पुष्पाणि ओं हूँ अघोराय  नमः ।

बिल्वपत्र – इदं बिल्वपत्रं/ एतानि बिल्वपत्राणि ऊँ हूँ अघोराय  नमः ।

एक बेलपत्र/बेलपत्रों को  लेकर ये मंत्र  पढेंगे - इदं बिल्वपत्रं/ एतानि बिल्वपत्राणि ऊँ हूँ अघोराय  नमः ।

दूर्वा ( दूबि) - इदं दूर्वादलं  / एतानि दूर्वादलानि ऊँ हूँ अघोराय  नमः ।

एक दूर्वा/ अनेक दूर्वा को लेकर ये मंत्र पढेंगे - इदं दूर्वादलं  / एतानि दूर्वादलानि ऊँ हूँ अघोराय  नमः ।

जलमादाय- एतानि-गन्ध-पुष्प-धूप-दीप-ताम्बूल-यथा-भाग-नानाविध-नैवेद्यानि ओं हूँ अघोराय नमः

अर्घा में जल लेकर मन्त्र पढें- एतानि-गन्ध-पुष्प-धूप-दीप-ताम्बूल-यथा-भाग-नानाविध-नैवेद्यानि ओं हूँ अघोराय नमः

 

जलमादाय-इदमाचमनीयम् ओं हूँ अघोराय नमः 

अर्घा में जल लेकर चढावें- इदमाचमनीयम् ओं हूँ अघोराय नमः

 

पुष्पं गृहीत्वा- एष पुष्पांजली ऊँ हूँ अघोराय  नमः ।

हाथ में पुष्प लेकर एष पुष्पांजली ऊँ हूँ अघोराय नमः । चढावें

पश्चिमवक्त्र पूजाः-

 

अक्षतान्यादाय - ऊँ भूर्भूवः  स्वः हीं सद्योजात इहागच्छ इहतिष्ठ ।

दाहिने हाथ में अक्षत लेकर यह मंत्र  पढेंगे -  ऊँ भूर्भूवः  स्वः हीं सद्योजात इहागच्छ इहतिष्ठ ।

 

अर्घ- ओं नमः सद्योजाताय नमः कैलाशवासिने। सद्योजात नमस्तुभ्यमर्घोयं प्रतिगृह्यताम्।।

अर्घा में जल लेकर मन्त्र पढते हुवे चढावें- ओं नमः सद्योजाताय नमः कैलाशवासिने। सद्योजात नमस्तुभ्यमर्घोयं प्रतिगृह्यताम्।।

जल - एतानि पाद्यार्घाचमनीय स्नाननीय पुनराचमनीयानि ऊँ हीं सद्योजाताय नमः ।

अर्घा में जल  लेकर  यह मंत्र  पढेगें - एतानि पाद्यार्घाचमनीय स्नानीय पुनराचमनीयानि    ऊँ हीं सद्योजाताय नमः ।

चन्दन - इदमनुलेपनम्  ऊँ हीं सद्योजाताय नमः ।

दाहिने हाथ से फूल में चन्दन  लगाकर ये मंत्र  पढेंगे - इदमनुलेपनम्  ऊँ हीं सद्योजाताय नमः ।

अक्षतन्यादाय - इदमक्षतं-   ऊँ हीं सद्योजाताय नमः  ।

दाहिने हाथ में अक्षत लेकर ये मंत्र  पढेंगे – एइदमक्षतं  ऊँ हीं सद्योजाताय नमः  ।

पुष्प - इदं पुष्पं/ एतानि पुष्पाणि ऊँ हीं सद्योजाताय नमः ।

दोनों हाथों को जोड़ते हुए फूल/फूलों को   लेकर ध्यान करते हुए ये मंत्र  पढेंगे -  इदं पुष्पं/ एतानि पुष्पाणि ऊँ हीं सद्योजाताय नमः  ।

बिल्वपत्र – इदं बिल्वपत्रं/ एतानि बिल्वपत्राणि ऊँ हीं सद्योजाताय नमः।

एक बेलपत्र/बेलपत्रों को  लेकर ये मंत्र  पढेंगे - इदं बिल्वपत्रं/ एतानि बिल्वपत्राणि ऊँ हीं सद्योजाताय नमः  ।

दूर्वा ( दूबि) - इदं दूर्वादलं  / एतानि दूर्वादलानि ऊँ हीं सद्योजाताय नमः  ।

एक दूर्वा/ अनेक दूर्वा को लेकर ये मंत्र पढेंगे - इदं दूर्वादलं  / एतानि दूर्वादलानि ऊँ हीं सद्योजाताय नमः  ।

  

जलमादाय- एतानि-गन्ध-पुष्प-धूप-दीप-ताम्बूल-यथाभाग-नानाविध-नैवैद्यानि ओं हीं सद्योजाताय नमः।

अर्घा में जल लेकर मन्त्र पढें- एतानि-गन्ध-पुष्प-धूप-दीप-ताम्बूल-यथाभाग-नानाविध-नैवैद्यानि ओं हीं सद्योजाताय नमः।

 

जलमादाय- इदमाचमनीयम् ओं हीं सद्योजाताय नमः

अर्घा में जल लेकर मन्त्र पढें- इदमाचमनीयम् ओं हीं सद्योजाताय नमः

 

पुष्पमादाय- एष पुष्पांजली ओं हीं सद्योजाताय नमः।

हाथ में फुल लेकर ध्यान पूर्वक चढावें- एष पुष्पांजली ओं हीं सद्योजाताय नमः।

 

उत्तरवक्त्र पूजाः- 

 

अक्षतान्यादाय - ऊँ भूर्भूवः  स्वः हाँ वामदेव इहागच्छ इहतिष्ठ ।

दाहिने हाथ में अक्षत लेकर यह मंत्र  पढेंगे -  ऊँ भूर्भूवः  स्वः हाँ वामदेव इहागच्छ इहतिष्ठ ।

 

अर्घ- ओं नमस्ते वामदेवाय  शर्वाय शशिशेखर ।पापशुद्ध्यर्थमर्घोऽयं गिरीश प्रतिगृह्यताम्।।

अर्घा में जल लेकर मन्त्र पढते हुवे चढावें- ओं नमस्ते वामदेवाय  शर्वाय शशिशेखर ।पापशुद्ध्यर्थमर्घोऽयं गिरीश प्रतिगृह्यताम्।।

 

जल - एतानि पाद्यार्घाचमनीय स्नाननीय पुनराचमनीयानि ऊँ हाँ वामदेवाय  नमः ।

अर्घा में जल  लेकर  यह मंत्र  पढेगें - एतानि पाद्यार्घाचमनीय स्नानीय पुनराचमनीयानि    ऊँ हाँ वामदेवाय  नमः  ।

चन्दन - इदमनुलेपनम्  ऊँ हाँ वामदेवाय  नमः ।

दाहिने हाथ से फूल में चन्दन  लगाकर ये मंत्र  पढेंगे - इदमनुलेपनम्  ओं हाँ वामदेवाय  नमः

अक्षतन्यादाय - इदमक्षतं-   ऊँ हाँ वामदेवाय  नमः  ।

दाहिने हाथ में अक्षत लेकर ये मंत्र  पढेंगे – एइदमक्षतं  ऊँ हाँ वामदेवाय  नमः ।

पुष्प - इदं पुष्पं/ एतानि पुष्पाणि ऊँ हाँ वामदेवाय  नमः ।

दोनों हाथों को जोड़ते हुए फूल/फूलों को   लेकर ध्यान करते हुए ये मंत्र  पढेंगे -  इदं पुष्पं/ एतानि पुष्पाणि ऊँ हाँ वामदेवाय  नमः ।

बिल्वपत्र – इदं बिल्वपत्रं/ एतानि बिल्वपत्राणि ऊँ हाँ वामदेवाय  नमः ।

एक बेलपत्र/बेलपत्रों को  लेकर ये मंत्र  पढेंगे - इदं बिल्वपत्रं/ एतानि बिल्वपत्राणि ऊँ हाँ वामदेवाय  नमः  ।

दूर्वा ( दूबि) - इदं दूर्वादलं  / एतानि दूर्वादलानि ऊँ हाँ वामदेवाय  नमः ।

एक दूर्वा/ अनेक दूर्वा को लेकर ये मंत्र पढेंगे - इदं दूर्वादलं  / एतानि दूर्वादलानि ऊँ हाँ वामदेवाय  नमः ।

  

जलमादाय- एतानि-गन्ध-पुष्प-धूप-दीप-ताम्बूल-यथा-भाग-नानाविध-नैवेद्यानि ओं हाँ वामदेवाय नमः

अर्धा में जल लेकर मन्त्र पढें- एतानि-गन्ध-पुष्प-धूप-दीप-ताम्बूल-यथा-भाग-नानाविध-नैवेद्यानि ओं हाँ वामदेवाय नमः

 

जल – इदमाचमनीयम्  ऊँ हाँ वामदेवाय  नमः  ।

अर्घा में जल को लेकर  ये मंत्र  पढेंगे - इदमाचमनीयम् ओं हाँ वामदेवाय  नमः ।

 

पुष्पमादाय- एष पुष्पांजली ओं हाँ वामदेवाय नमः।

हाथ में फुल लेकर मन्त्र पढते हुवे चढावें- एष पुष्पांजली ओं हाँ वामदेवाय नमः।

मध्ये शिव पूजाः- 

 

अक्षतान्यादाय - ऊँ भूर्भूवः  स्वः र्हौ भगवन् शिव  इहागच्छ इहतिष्ठ ।

दाहिने हाथ में अक्षत लेकर यह मंत्र  पढेंगे -  ऊँ भूर्भूवः  स्वः र्हौ भगवन् शिव  इहागच्छ इहतिष्ठ ।

 

अर्घ- ओं नमः शिवाय शान्ताय सर्वपापहराय च। शिवरात्रौ मया दत्तं गृहाणार्घमिदं प्रभो।।

अर्घा में जल लेकर मन्त्र पढते हुवे चढावें- ओं नमः शिवाय शान्ताय सर्वपापहराय च। शिवरात्रौ मया दत्तं गृहाणार्घमिदं प्रभो।।

 

जल - एतानि पाद्यार्घाचमनीय स्नाननीय पुनराचमनीयानि ऊँ र्हौ शिवाय नमः ।

अर्घा में जल  लेकर  यह मंत्र  पढेगें - एतानि पाद्यार्घाचमनीय स्नानीय पुनराचमनीयानि    ऊँ र्हौ शिवाय नमः ।

चन्दन - इदमनुलेपनम्  ऊँ र्हौ शिवाय नमः ।

दाहिने हाथ से फूल में चन्दन  लगाकर ये मंत्र  पढेंगे - इदमनुलेपनम्  ऊँ र्हौ शिवाय नमः  ।

अक्षतन्यादाय - इदमक्षतं-   ऊँ र्हौ शिवाय नमः ।

दाहिने हाथ में अक्षत लेकर ये मंत्र  पढेंगे – एइदमक्षतं  ऊँ र्हौ शिवाय नमः ।

पुष्प - इदं पुष्पं/ एतानि पुष्पाणि ऊँ र्हौ शिवाय नमः ।

दोनों हाथों को जोड़ते हुए फूल/फूलों को   लेकर ध्यान करते हुए ये मंत्र  पढेंगे -  इदं पुष्पं/ एतानि पुष्पाणि ऊँ र्हौ शिवाय नमः ।

बिल्वपत्र – इदं बिल्वपत्रं/ एतानि बिल्वपत्राणि ऊँ र्हौ शिवाय नमः ।

एक बेलपत्र/बेलपत्रों को  लेकर ये मंत्र  पढेंगे - इदं बिल्वपत्रं/ एतानि बिल्वपत्राणि ऊँ र्हौ शिवाय नमः ।

 

दूर्वा ( दूबि) - इदं दूर्वादलं  / एतानि दूर्वादलानि ऊँ र्हौ शिवाय नमः ।

एक दूर्वा/ अनेक दूर्वा को लेकर ये मंत्र पढेंगे - इदं दूर्वादलं  / एतानि दूर्वादलानि ऊँ र्हौ शिवाय नमः ।

 

जलमादाय- एतानि गन्ध-पुष्प-धूप-दीप-ताम्बूल-यथाभाग-नानाविध-नैवेद्यानि ओं र्हौ शिवाय नमः

अर्घा में जल लेकर मन्त्र पढते हुए जल चढावें- एतानि गन्ध-पुष्प-धूप-दीप-ताम्बूल-यथाभाग-नानाविध-नैवेद्यानि ओं र्हौ शिवाय नमः

 

जलमादाय- इदमाचमनीयम् ओं र्हौ शिवाय नमः

अर्घा में जल लेकर मन्त्र पढते हुए जल चढावें- इदमाचमनीयम् ओं र्हौ शिवाय नमः

 

पुष्पं गृहीत्वा- एष पुष्पांजली ऊँ हूँ अघोराय  नमः ।

हाथ में पुष्प लेकर एष पुष्पांजली ऊँ हूँ अघोराय नमः ।चढावें

 

पुष्पासनम् –                                       

 

ओं नानारत्नसमायुक्तं कार्तस्वरविभूषितम् । आसनं देव देवेश गृहाण शिवशंकर ।। इदं पुष्पासनम् इदं ध्यानपुष्पं गौरीशंकराभ्यां नमः                                      ​

फुल को दहीनें हाथ में लेकर  ध्यान करते हुए ये मंत्र को पढेंगे – ओं नानारत्नसमायुक्तं कार्तस्वरविभूषितम् । आसनं देव देवेश गृहाण शिवशंकर ।। इदं पुष्पासनम् इदं ध्यानपुष्पं गौरीशंकराभ्यां नमः ।

पाद्यम् –                  

ओं गंगादिसर्वतीर्थेभ्यो मया प्रर्थणया हृतम् । तोयमेतत् सुखस्पर्शं पाद्यार्थं प्रतिगृह्यताम्।। इदं पाद्यम् गौरीशंकराभ्यां नमः                                       

​ओं गंगादिसर्वतीर्थेभ्यो मया प्रर्थणया हृतम् । तोयमेतत् सुखस्पर्शं पाद्यार्थं प्रतिगृह्यताम्।। इदं पाद्यम् गौरीशंकराभ्यां नमः ।

अर्घम् –                                                   

ओं वरेण्य यज्ञपुरुष प्रजापालनतत्पर। नमो महात्म्यदेवाय गृहानार्घ्य नमोऽस्तुते।।एषोऽर्घः गौरीशंकराभ्यां नमः                                      

अर्घा में जल लेकर  ये मंत्र को पढेंगे – ओं वरेण्य यज्ञपुरुष प्रजापालनतत्पर। नमो महात्म्यदेवाय गृहानार्घ्य नमोऽस्तुते।।एषोऽर्घः गौरीशंकराभ्यां नमः                                      

 

आचमनम् –                                                     

ओं मन्दाकिन्यां तु यद् वारि सर्वपापहरं शुभम् । तदिदं कल्पितं देव सम्यगाचम्यतां त्वया ।। इदमाचमनीयम् गौरीशंकराभ्यां नमः ।

ओं मन्दाकिन्यां तु यद् वारि सर्वपापहरं शुभम् । तदिदं कल्पितं देव सम्यगाचम्यतां त्वया ।। इदमाचमनीयम् गौरीशंकराभ्यां नमः  

 

स्नानम् –                                                      

ओं गङ्गा च यमुना चैव नर्मदा च सरस्वती । तीर्थानां पावनं तोऽयं स्नानार्थ प्रतिगृह्राताम् ।। इदं स्नानीयं जलम् गौरीशंकराभ्यां नमः                              

​शंख में गंगाजल को मिलाते हुए दहीनें हाथो में लेकर  स्नान कराते हुए ये मंत्र को पढेंगे – ओं गङ्गा च यमुना चैव नर्मदा च सरस्वती । तीर्थानां पावनं तोऽयं स्नानार्थ प्रतिगृह्राताम् ।। इदं स्नानीयं जलम् गौरीशंकराभ्यां नमः ।

पञ्चामृतम् –

ओं पयो दधि घृतं चैव मधु च शर्करयान्वितम्। पंचामृतेन स्नपनं प्रीत्यर्थं प्रतिगृह्यताम्।।  पञ्चामृतम् गौरीशंकराभ्यां नमः ।

जल में  दूध-दही-धृत-चीनी-मधु को मिलाकर ये मंत्र को पढेंगे – ओं पयो दधि घृतं चैव मधु च शर्करयान्वितम्। पंचामृतेन स्नपनं प्रीत्यर्थं प्रतिगृह्यताम्।।

इदं पञ्चामृतम् गौरीशंकराभ्यां नमः ।

शुद्धोदकम् –

ओं परमानन्दतोयाब्धौ निमग्नस्तव मूर्तये । साङ्गोपङ्गमिदं स्नानं कल्पयामि प्रसीद मे ।। इदं शुद्धोदकम् गौरीशंकराभ्यां नमः (सति सम्भवे रूद्रसूक्तेन चात्र अभिषेकं विधेयम्)

सम्भव हो तो रूद्रसूक्त से यहाँ अभिषेक करें- ओं परमानन्दतोयाब्धौ निमग्नस्तव मूर्तये । साङ्गोपङ्गमिदं स्नानं कल्पयामि प्रसीद मे ।। इदं शुद्धोदकम् गौरीशंकराभ्यां नमः।

वस्त्रम् – 

ओं सूक्ष्मतन्तुसमाकीर्णं नानावर्णविचित्रितम्। वस्त्रं गृहाण मे देव प्रीत्यर्थं तव निर्मितम् ।। इदं श्वेतवस्त्रं वृहस्पतिदैवतम् गौरीशंकराभ्यां नमः । वस्त्राङ्गमाचमनीयम् ।

दहीने हाथ में श्वेत वस्त्र (शुद्ध –वस्त्र) को लेकर मंत्र को पढते हुए  समर्पित करेगें – ओं सूक्ष्मतन्तुसमाकीर्णं नानावर्णविचित्रितम्। वस्त्रं गृहाण मे देव प्रीत्यर्थं तव निर्मितम् ।।इदं श्वेतवस्त्रं वृहस्पतिदैवतम् गौरीशंकराभ्यां नमः । वस्त्राङ्गमाचमनीयम् ।

यज्ञोपवीतम् –

ओं महादेव नमस्तेस्तु त्राहि मां भवसागरात् । ब्रह्रासूत्रं सोत्तरीयं गृहाण परमेश्वर।।इमे यज्ञोपवीते वृहस्पतिदैवते शंकराय नमः । यज्ञोपवीताङ्गमाचमनीयम् ।

दहीने हाथ में जनऊ को लेते हुए ये मंत्र को पढेंगे –ओं महादेव नमस्तेस्तु त्राहि मां भवसागरात् । ब्रह्रासूत्रं सोत्तरीयं गृहाण परमेश्वर।। यज्ञोपवीते वृहस्पतिदैवते शंकराय नमः । यज्ञोपवीताङ्गमाचमनीयम् ।

चन्दनम् –

ओं श्रीखण्डचन्दनं दिव्यं गन्धाढ्यं सुमनोहरम् । विलेपनं महादेव चन्दनं प्रतिगृह्यताम् ।। इदं श्रीखण्डचन्दनम् गौरीशंकराभ्यां नमः ।इदं रक्तानुलेपनम् गौरीशंकराभ्यां नमः   

दहीने हाथो से लाल चन्दन तथा उजला चन्दन को फुलो में लगाकर ये मंत्र को पढेंगे – ओं श्रीखण्डचन्दनं दिव्यं गन्धाढ्यं सुमनोहरम् । विलेपनं महादेव चन्दनं प्रतिगृह्यताम् ।। इदं श्रीखण्डचन्दनम् गौरीशंकराभ्यां नमः ।इदं रक्तानुलेपनम् गौरीशंकराभ्यां नमः ।

अक्षताः

ओं अखण्डनक्षतान् शुक्लान् शोभनान् शालितण्डुलान्। त्राहि मां सर्वपापेभ्यो गृहाण वृषभध्वज।। इदमक्षतं गौरीशंकराभ्यां नमः                                 

दहीने हाथ में अक्षत को लेते हुए ये मंत्र को पढेंगे – ओं अखण्डनक्षतान् शुक्लान् शोभनान् शालितण्डुलान्। त्राहि मां सर्वपापेभ्यो गृहाण वृषभध्वज।।

इदमक्षतं गौरीशंकराभ्यां नमः                                      

 

पुष्पाणि

ओं सुगन्धीनि सुपुष्पाणि देशकालोद्भवानि च । मयाऽऽनीतानि पूजार्थं, प्रीत्या स्वीकुरु प्रभो।। एतानि पुष्पाणि गौरीशंकराभ्यां नमः                            फुल को दहीनें हाथ में लेकर  ध्यान करते हुए ये मंत्र को पढेंगे – ओं सुगन्धीनि सुपुष्पाणि देशकालोद्भवानि च । मयाऽऽनीतानि पूजार्थं, प्रीत्या स्वीकुरु प्रभो।। एतानि पुष्पाणि गौरीशंकराभ्यां नमः ।

पुष्पमाल्यम् –

 ओं नानापुष्पविचित्राढ्यां पुष्पमालां सुशोभनाम् । प्रयच्छामि च देवेश गृहाण परमेश्वर ।। इदं पुष्पमाल्यम् गौरीशंकराभ्यां नमः                                      ​दहीने हाथ में फुलो के माला को लेकर ये मंत्र को पढेंगे ।  ओं त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्रं च त्रिधायुधम्। त्रिजन्मपापसंहारं विल्वपत्रं शिवार्पणम्।।

इदं विल्वपत्रं ओं गौरीशंकराभ्यां नमः।

यह मन्त्र पढकर विलिवपत्र चढावें।

आचमनीयम् – ओं कर्पूरवासितं तोयं मन्दाकिन्याः समाहृतम्। आचम्यतां महाभाग मया दत्तं हिभक्तितः ।। इदमाचमनीयम् गौरीशंकराभ्यां नमः ​

अर्घा में जल लेकर  ये मंत्र को पढेंगे ।

 

अथ अंगपूजा- दहीने हाथ में धूप को लेकर ये मंत्र को पढेंगे । गन्धपुष्पाक्षतान्येकीकृत्य

पुष्प चन्दन अक्षत को एक साथ मिलाकर क्रमशः लेते रहें।

1.ओं विश्वपतये नमः, पादौ पूजयामि

2.ओं शिवाय नमः,जानुनी  पूजयामि

3.ओं शूलपाणये नमः, गुल्फौ पूजयामि

4.ओं शम्भवे  नमः, कटि पूजयामि

5.ओं स्वयम्भुवे  नमः, गुह्यं पूजयामि

6.ओं महादेवाय नमः, नाभिं पूजयामि

7.ओं विश्वकर्त्रे  नमः,उदरं पूजयामि

8.ओं सर्वतोमुखाय नमः, पार्श्वौ पूजयामि

9.ओं स्थानवे  नमः, स्तनौ पूजयामि

10.ओं नीलकण्ठाय नमः, कण्ठं पूजयामि

11.ओं श्रीकण्ठाय नमः, मुखं पूजयामि

12.ओं शशिभूषणाय नमः, मुकुटं पूजयामि

13.ओं देवाधिदेवाय  नमः,सर्वांगम् पूजयामि

 

धूप –

ओं वनस्पतिरसो दिव्यो गन्धाढ्यः सुमनो- हरः। आघ्रेयः सर्वदेवानां धूपोऽयं प्रतिगृह्यताम्।। एष धूपः गौरीशंकराभ्यां नमः                                      

​ओं वनस्पतिरसो दिव्यो गन्धाढ्यः सुमनो- हरः। आघ्रेयः सर्वदेवानां धूपोऽयं प्रतिगृह्यताम्।। एष धूपः गौरीशंकराभ्यां नमः ।

 

नैवेद्यानि –

अन्नं चतुर्विधं स्वादु पयो दधि घृतं तथा भक्त्या सम्पादितं देव नैवेद्यं प्रतिगृह्यताम्।। एतानि नानाविधनैवेद्यानि गौरीशंकराभ्यां नमः                               

दहीनें हाथ में नैवेद्य को लेकर  समर्पित करते हुए ये मंत्र को पढेंगे – अन्नं चतुर्विधं स्वादु पयो दधि घृतं तथा भक्त्या सम्पादितं देव नैवेद्यं प्रतिगृह्यताम्।।

एतानि नानाविधनैवेद्यानि गौरीशंकराभ्यां नमः ।

​​करोद्वर्तनम्:-

ओं मलयाचलसम्भूतं कर्पूरेण समन्वितम्। करोद्वर्तनकं चारु गृह्यतां जगतः पते।। इदं करोद्वर्तनम् ओं गौरीशंकराभ्यां नमः।

अर्घा में जल लेकर चन्दन कर्पूर मिलाकर यह मंत्र पढते हुये अर्पित करें- ओं मलयाचलसम्भूतं कर्पूरेण समन्वितम्। करोद्वर्तनकं चारु गृह्यतां जगतः पते।।

इदं करोद्वर्तनम् ओं गौरीशंकराभ्यां नमः।

फलानि –

ओं फलान्यमृतकल्पानि स्थापितानि पुरतस्तव। तेन मे सफलावाप्तिर्भवेज्जन्मनि जन्मनि ।। एतानि नानाविधानि फलानि । गौरीशंकराभ्यां नमः             

दाहिने हाथ में फल को लेकर ये मंत्र  को पढेंगे – ओं फलान्यमृतकल्पानि स्थापितानि पुरतस्तव। तेन मे सफलावाप्तिर्भवेज्जन्मनि जन्मनि ।। एतानि नानाविधानि फलानि । गौरीशंकराभ्यां नमः                                      

 

आचमनीयम् –

ओं सर्वपापहरं दिव्यं गाङ्गेयं निर्मल जलम् । दत्तमाचमनीयं ते गृहाण पुरुषोत्त ।। इदमाचमनीयम् गौरीशंकराभ्यां नमः                                       ​

अर्घा में जल को लेकर ये मंत्र को पढेंगे – ओं सर्वपापहरं दिव्यं गाङ्गेयं निर्मल जलम् । दत्तमाचमनीयं ते गृहाण पुरुषोत्त ।। इदमाचमनीयम् गौरीशंकराभ्यां नमः ।

 

ताम्बूलम् –

ओं पूगीफलं महद्दिव्यं नागबल्लीदलैर्युतम् । कर्पूरादिसमायुक्तं ताम्बूलं प्रतिगृह्राताम् ।। एतानि ताम्बूलानि गौरीशंकराभ्यां नमः । इदमाचमनीयम् गौरीशंकराभ्यां नमः                                      ​

दहीनें हाथ में पान और सुपारी  को लेते हुए ये मंत्र को पढेंगे – ओं पूगीफलं महद्दिव्यं नागबल्लीदलैर्युतम् । कर्पूरादिसमायुक्तं ताम्बूलं प्रतिगृह्राताम् ।।

एतानि ताम्बूलानि गौरीशंकराभ्यां नमः । इदमाचमनीयम् गौरीशंकराभ्यां नमः  ।

भूषणार्थ द्रव्यम् –

ओं काञ्चनं रजतो पेतं नानारत्नसमन्वितम् । भूषणार्थं च देवेश गृहाण जगतीपते ।। इदं भूषणार्थं द्रव्यम् गौरीशंकराभ्यां नमः                                      ​

कुछ द्रव्य को  दहीनें हाथ में लेकर ये मंत्र को पढेंगे – ओं काञ्चनं रजतो पेतं नानारत्नसमन्वितम् । भूषणार्थं च देवेश गृहाण जगतीपते ।।

इदं भूषणार्थं द्रव्यम् गौरीशंकराभ्यां नमः।

पुष्पाञ्जलिः- 

ओं मालतीमल्लिकापुष्पैर्नागचम्पकसंयुतैः। पुष्पांजलिं गृहाणेमं पादाम्बुजयुगार्पितम्।।

दोनो हाथो में फुल को लेकर ध्यान करते हुए ये मंत्र को पढेंगे – ओं मालतीमल्लिकापुष्पैर्नागचम्पकसंयुतैः। पुष्पांजलिं गृहाणेमं पादाम्बुजयुगार्पितम्।।

एष पुष्पांजलिः ओं साङ्गसायुध –सवाहन-सपरिवार     गौरीशंकराभ्यां नमः          

                            

दाहिने हाथ में  एक फुल को लेकर ये मंत्र को पढेंगे – सवाहन-सपरिवार     गौरीशंकराभ्यां नमः   इति षोडशोपचार – शिवरात्रिपूजाविधिः ।

शिवरात्रिव्रतकथा

नमस्ते विश्वनाथाय संसारस्थितिहेतवे। जगतां रूपिणे तुभ्यं जन्तूनां परमात्मने।।1।।

तमो नित्यागांराय नमो दिव्यस्वरूपिणे । नमःशिवाय शान्ताय शंकराय हराय च ।।

कैलाशे च महास्थाने गौरी पृच्छति शंकरम्। कथयस्व महादेव प्रसादेन महेश्वर ।।

शंकर उवाच-

श्रूयतां गिरिजे देवि महाविद्ये महेश्वरि। कथयामि न सन्देहो मनसा यदभिवांछसि।।

पार्वत्युवाच-

तपसा कर्मणा वाचा व्रतेन नियमेन वा।लप्स्यसे त्वं महादेव प्रसन्नो भव केन वा।।

शंकर उवाच-

फाल्गुने मासि या कृष्णा भवेच्चतुर्दशी तिथिः। तस्मान्तु तामसी रात्रिः शिवरात्रिरभिधीयते।।

त्रयोदश्यां कृतस्नानादेकाहारीधृतव्रतः।कुशास्तरणशयनं यतीनामपि तद्व्रतम्।।

प्रातरुत्थाय स्नातस्तु तद्दिने मत्परायणः। पुरुषो वाप्यथवा नारी चोपवासं करोति यः।।

रात्रौ प्रांगणके रम्ये शिवक्षेत्रे शिवालये । बिल्वपत्रेण या पूजा नानापुष्पसमन्विता ।।

अगुरुगुग्गुलुधूपन्तु दशांगेन तु दापयेत्। स्नानं च पंचगव्येन कुर्यात् पंचामृतेन वा।।

खण्डक्षीरगुडैर्वापि अपूपैः पिष्टभक्तकैः। नानाफलं च नैवेद्यं विचित्रं रचयेत्तदा ।।

नृत्यगीतैस्तथा वाद्यैस्तूर्यमंगलकोहलैः। आनन्दमयशरीरेम शिवभक्तिसमन्वितः।।

कुर्याज्जागरणं रात्रौ हृष्टलोमा च मानवः ।प्रहरे प्रहरे स्नानं पूजां चैव विशेषतः।।

शिवरात्रिब्रतं दिव्यं चतुर्वर्गपलप्रदम्। यत्कथाश्रवणेनापि लप्स्यते वांछितं फलम्।।

पार्वत्युवाच-

सत्यं सर्वमिदं प्रोक्तं मिथ्या किमपि नोच्यते। कृतं केन त्रिलोकेश शिवरात्रिरिदं व्रतम्।।

नाम तस्य समाख्याहि प्रसादेन महेश्वर । तत्कथां श्रौतुमिच्छामि त्वत्तो ब्रह्मविदां वर।।

शंकर उवाच-

वाराणस्यां महास्थाने व्याधो वसति पापकृत्।पुत्रदारादिसंयुक्तो धर्मकर्मविवरिजितः।।

प्रत्यहं पापकर्माऽसौ परजीवेन जीवति ।वृत्यर्थं पुत्रदाराणां निर्दयः सर्वजन्तुषु।।

मृगारिर्न्नाम व्याधोऽसौ मृगमांसेन जीवति । प्रातराखेटके याति वनं गुह्यं दिने दिने ।।

कृष्णः कपिलकेशी च कोपेनारुणलोचनः। हस्ते धृत्वा धनुर्बाणौ यमवज्जीवहारकः।।

न तस्यास्ति महावृद्धो न युवा न च बालकः। समदृक् सर्वजन्तूनां नित्यं ग्रसति जीवितम्।।

वनेचराणां स यमो दुरात्मा वनस्पतिं हन्ति च दुर्निरीक्ष्यः।

ददाति  पासं स गले मृगाणां ,कक्षातटं हन्ति च शूकराणाम्।।

तस्यैकेन प्रहारेण हस्ती पतति मूर्च्छितः।त्रिगण्डगलितोन्मत्तः स्वयं दन्तौ प्रयच्छति।।

व्याधो ददाति गुजांरं यावद्बाणं न पश्यति । आकर्णपूर्णचापन्तु दृष्ट्वा जीवं विमुचंति।।

खड्गी खड्गप्रहारेण भूमौ पतति मूर्च्छितः। विषाणकोट्या महिषो वल्मीकं खनति स्वयम्।।

शरप्रहारमासाद्य पदमेकं न गच्छति । का कथा स्वल्पजन्तूनां शशादीनां विशेषतः।।

ते च तद्वाणवातेन गच्छन्ति योजनाधिकम्।बाणधारणमात्रेण धर्माधर्मौ न पश्यति ।।

व्याधेन वध्यते प्राणी तस्य मांसेन जीवति। एकदा दैवयोगेन दूरं गन्तु न शक्तवान्।।

आसने दत्तबाणस्तु पुरोमार्गं न पश्यति ।सारगं नैव चाप्नोति भ्रमिते सकले वने ।।

निभृतेन पदं दत्त्वा लक्षं लक्षीकरोति सः।बाणमोक्षणकाले तु न च लक्षं विलोकते ।।

अनेनैव प्रकारेण विधिना तत्र वचिंतः।लज्जाविलक्षितो भूत्वा न गृहगंन्तुमिच्छति ।।

स्मृत्वा निष्ठुरवाक्यानि हृहिणीगदितानि च। मस्तके न्यस्तहस्तोऽसौ बिल्ववृक्षतटे स्थितः।।

वासरं नैव जानाति सन्ध्यामपि समागताम्। रात्रिकालं समासाद्य निद्राघूर्णितलोचनः।।

शयनार्थं किमत्राहं कुर्यां घोरायते निशा ।अहं सर्वस्य विद्वेषी मनुष्यो मांसजीविकः।।

वृक्षमारुह्य तिष्ठामि यावन्नोदयते रविः। रजनी तामसी घोरा पुरोमार्गो न दृश्यते ।।

इति संचिन्त्य भीतोऽसौ वृक्षमारोहयेत्तदा। तत्रैव दैवयोगेन लिंगस्तिष्ठति भूतले ।।

तत्पादभग्नपत्राणि पतन्ति शिवमूर्धनि ।वाह्ये दृष्टिपथं दद्यामिति शाखाविभंजनात्।।

हिमतोयं च तत्पत्रं पपात शिवमस्तके । तस्यैव विधचित्तस्य न भक्तिर्न च भावना ।।

अहो शिवस्य माहात्म्यं सैव पूजा फलप्रदा । एतगेव कृतं तेन सुकृतं चात्र जन्मनि ।।

आयुर्वर्षशतं तस्य अन्तकालः समागतः। यमेन प्रहितो दूतो व्याध आनीयतां लघु ।।

आगतःसोऽपि संतुष्टः पाशपाणिर्भयंकरः। आगते निकटे दूते शिवदूतेन वेष्टितः ।।

बलात्तु यमदूतेन गले पाशो नियोदितः। हस्तादाकृष्य कोपेन शिवदूतेन वारितः।।

यमदूत उवाच-

कस्त्वं केन च कार्येण यमाज्ञा प्रतिहन्यते ।व्याधोऽयं पापकर्मा च नीयते नरकं प्रति।।

शिवदूत उवाच-

व्याधः करोतु पापानि पापदेहो भवत्वथ। शिवेन प्रहितो दूतो व्याधरक्षां करोम्यहम्।।

यमदूत उवाच-

कस्तवायं शिवो देवः को हरिः कःपितामहः।यमाज्ञा भ्राम्यते पृथ्व्यामिच्छया नीयते नरः।।

उत्थाय शिवदूतेन तलाघातेन ताडितः।आः शक्तिं भाषसे पाप शिवाय परमात्मने।।

एवं ते गंजिता दूता यमद्वारं प्रपेदिरे ।

यमदूत उवाच-

नास्त्यज्ञा यमुनाभ्रातरधुना मर्त्यमण्डले।।

पदे पदे महाराज आज्ञा ते खण्डिता भुवि ।क्वचिद्राजा शिवो देवः क्वचिद्धरिपितामहौ।।

न त्वया प्रेषितो गन्तुं युज्यते भुवनत्रयम्।बलिनामाश्रयं कुर्यान्नाबलस्य कदाचन ।।

इत्याकर्ण्य वचस्तेषां गंजितानां विशेषतः।रोषेणारुणनेत्रोऽसौ बभाषे यमराट् ततः।।

गंजिताः केन वा यूयं केन वा कलहः कृतः।तान्निहन्मि समाचक्ष्व न भयं पुरतो मम।।

दूत उवाच-

धर्मराट् शिवदूतेन बलेनाहं निराकृतः।न मया व्याध आनेतुं भुवनं तव शक्यते ।।

गत्वा राज्यमिदं तत्राधिकारं त्यक्तुमर्हसि।त एव चिन्तां कुर्वन्तु अधुना मर्त्यमण्डले ।।

श्रुत्वा वाक्यं यथायुक्तं कोपेन स्फुरिताधरः।उवाच प्रेतराडुच्चैरानेयो महिषो लघु ।।

दण्डपाशसमायुक्तश्चिह्नचामरसंयुतः ।स्वपुरान् महिषारूढः प्रपेदे शिवसन्निधिम्।।

कैलाशे च महास्थाने द्वारि संभाषते यमः।निवेद्यतां महेशाय यमस्यागमनं मम ।।

नन्दी धावति वेगेन महेशाय निवेदतुम्। देव द्वारि यमो दण्डी किमागच्छतु गच्छतु।।

शिव उवाच-

प्रवेश्यतां च वेगेन दक्षिणाशाधिपो यमः। ततः प्रविश्य यमराट् प्रांजलिवाक्यमब्रवीत।।

यम उवाच-

नमस्ते विश्वनाथाय जगतां सृष्टिहेतवे ।नमो भस्मांगरागाय शिवाय परमात्मने।।

शिव उवाच-

दक्षिणां दिशमाश्रित्य यमोविशतु साम्प्रतम्। इत्यर्धोक्तमिदं श्रुत्वा देवो वचनमब्रवीत्।।

ज्ञातं मया हि यत्कार्यं यमाद्यागमने तव। मृगारिणा तु व्याधेन कृतमाराधनं मम।।

शिवरात्रौ वने भद्रं बिल्वपत्रेण निश्चितम्। स्वेच्छया च भवेद्राज्यं व्याधस्य प्रहरद्वयम्।।

यम उवाच-

दीयतां तस्य राज्यं वै यावच्चन्द्रार्कमेदिनी।मया पुनर्महादेव त्यक्ता संसारचिन्तया ।।

यो हि मर्त्ये जगन्नाथ पापात्मा पापकर्मकृत्। तस्मिन्नेवाश्रितोऽसि  त्वमलं संसारचिन्तया ।।

शिव उवाच-

धर्मराट् भयभीतेन नरेण मम पूजनम्। क्रियते नैव सन्देहो वासुदेवस्य सेवनम्।।

एतयोस्तु परीहारः कर्तव्यो भवतां सदा। अन्येषां भुवि लोकानां स्वमित्वं भवतः कृतम्।।

इति तद्वाक्यमाकर्ण्य स गतो निजमन्दिरम्। शीघ्रं व्याधोऽपि राज्यार्थं प्रहितो मर्त्यमण्डले ।।

उत्पन्नो राजगेहे स जातिस्मरणसंज्ञितः।अमूं जन्मदिनं तस्य सुखाय सर्वदेहिनाम्।।

लब्धोदयो यथा सूर्यो वन्दनीयो भवेद् भुवि । स तदा सर्वलोकानां वन्दनीयो बभूव ह।।

युवराजो युवाचन्द्रः प्रभायुक्तः प्रतापवान्। पितर्युपरते तस्य राज्यं भ्रातृशतेष्वपि ।।

प्राप्ते राज्ये तु तस्यैव संभूतापूर्वसंस्मृतिः। आज्ञा दत्ता तदात्मीया नगरे सर्वमन्दिरे ।।

सर्वलोकास्समारम्भं कृत्वा विभवविस्तरैः।पूजयध्वं महाभागाः शंकरं प्रीतये मम।।

पूजयित्वा महादेवं फलं मयि निवेद्यताम्।अनेनैव प्रकारेण लक्षकोटिशतानि च।।

शिवरात्रिफलं लब्ध्वा कृतकृत्यो बभूव ह। राजा राज्यदिने पूर्णे क्षीणशक्तिश्च निष्प्रभः।।

व्याधिकष्टसमायुक्तः शय्यातलसमाश्रितः।शय्यायां मूर्च्छितो भूत्वा तिष्ठेद्दिनचतुष्टयम्।।

दिनैकं वा दिनार्धं वा शूलपाणिर्गणान्वितः।यमेन पूर्वकोपेन प्रहिता निजसेवकाः।।

भयानकाः पाशहस्ताः शतकोटिसहस्त्रशः।गणैस्तैर्निर्जिताः सर्वे युद्धे भग्नपराक्रमाः।।

याता यमपुरीं शीघ्र साधवो दुखिता इव । सर्पा इव विषत्यक्ता निष्प्रभा भानुमण्डलाः।।

दृष्ट्वा यमश्च कोपेन चित्रगुप्तमपृच्छत।किं कृतं तेन पापेन अधुना सुकृतं महत् ।।

येनामी निर्जिताः सर्वे समायाता ममालयम्। उवाच वचनं सोऽपि चित्रगुप्तो महामतिः।।

व्याधेन मतियुक्तेन शिवस्याराधनं कृतम्।शिवरात्रिफलं तस्य शतकोटिसहस्त्रशः ।।

तेनास्यास्ति महद्राज्यमिदानीं वसुधातले ।तस्य भद्रां विरुद्धां वा न चिन्तां कर्तुमर्हसि।।

श्रुत्वैवं सर्ववाक्यानि चित्रगुप्तोदितानि सः।स्तब्धदृष्टिर्यमश्चासीद् द्रुमो वज्रहतो यथा।।

मुहुर्विस्मयमानस्तु हस्तावास्फालयत्तदा। किं मया तत्र कर्तव्यं शिवे परमदैवते ।।

फलमेतन्महाभागे शिवरात्रिव्रते कृते । यः करोत्यधुना मर्त्ये स राजा नात्र संशयः।।

लक्ष्मीगोधनपुत्रायुर्विद्याकीर्तिर्धनानि च। मम देवि प्रसादेन तस्य स्यादत्र निश्चितम्।।

इति श्रीशिवधर्मोत्तरोक्तशिवरात्रिचतुर्दशीव्रतकथा समाप्ता।

 

द्वितीयप्रहरे – ओं मया कृतान्यनेकानि पापानि हर शंकर। गृहाणार्घ्यमुमाकान्त शिवरात्रौ प्रसीद मे ।। इत्यनेनाऽर्घ्यं दद्यात्।

द्वितीय प्रहर में इस मन्त्र को पढते हुए अर्घ्य दें। ओं मया कृतान्यनेकानि पापानि हर शंकर। गृहाणार्घ्यमुमाकान्त शिवरात्रौ प्रसीद मे ।। इत्यनेनाऽर्घ्यं दद्यात्।

तृतीयप्रहरे- ओं दुःखदारिद्र्यदग्धोऽहं भगवन् पार्वतीपते। गृहाणार्घ्यं मया दत्तं शिवरात्रौ च मे शिव।। इत्यनेनाऽर्घ्यं दद्यात्।

तृतीय प्रहर में इस मन्त्र को पढते हुए अर्घ्य दें। ओं दुःखदारिद्र्यदग्धोऽहं भगवन् पार्वतीपते। गृहाणार्घ्यं मया दत्तं शिवरात्रौ च मे शिव।। इत्यनेनाऽर्घ्यं दद्यात्।

चतुर्थप्रहरे- ओं शिवरात्रौ ददाम्यर्घ्यं सर्वपापप्रमोचनम्। शिव प्रसीद मे भक्या प्रसादादुमया सह।। इत्यनेनाऽर्घ्यं दद्यात्।

चतुर्थ प्रहर में इस मन्त्र को पढते हुए अर्घ्य दें। ओं शिवरात्रौ ददाम्यर्घ्यं सर्वपापप्रमोचनम्। शिव प्रसीद मे भक्या प्रसादादुमया सह।। इत्यनेनाऽर्घ्यं दद्यात्।

इन्द्रादिदशदिक्पालपूजाः-

 

अक्षतान्यादायः – ऊँ भूभुर्वः स्वः श्री इन्द्रादिदशदिक्पालाः इहागच्छत इह तिष्ठत  ।

जल - एतानि पाद्यार्घाचमनीय स्नाननीय पुनराचमनीयानि ऊँ इन्द्रादिदशदिक्पालेभ्यो नमः ।

अर्घा में जल  लेकर  यह मंत्र  पढेंगे - एतानि पाद्यार्घाचमनीय स्नाननीय पुनराचमनीयानि ऊँ इन्द्रादिदशदिक्पालेभ्यो नमः ।

चन्दन - इदमनुलेपनम्  ऊँ इन्द्रादिदशदिक्पालेभ्यो नमः ।

दाहिने हाथ से फूल में चन्दन  लगाकर ये मंत्र  पढेंगे - इदमनुलेपनम्  ऊँ इन्द्रादिदशदिक्पालेभ्यो नमः ।

अक्षत - इदमक्षतम्   ऊँ इन्द्रादिदशदिक्पालेभ्यो नमः ।

दाहिने हाथ में अक्षत लेकर ये मंत्र  पढेंगे - इदमक्षतम् ऊँ इन्द्रादिदशदिक्पालेभ्यो नमः ।

पुष्प - इदं पुष्पं/ एतानि पुष्पाणि ऊँ इन्द्रादिदशदिक्पालेभ्यो नमः ।

दोनों हाथों को जोड़ते हुए फूल/फूलों को   लेकर इन्द्रादिदशदिक्पाल  का ध्यान करते हुए ये मंत्र  पढेंगे -  इदं पुष्पं/ एतानि पुष्पाणि ऊँ इन्द्रादिदशदिक्पालेभ्यो नमः ।

बिल्वपत्र – इदं बिल्वपत्रं/ एतानि बिल्वपत्राणि ऊँ इन्द्रादिदशदिक्पालेभ्यो नमः ।

एक बेलपत्र/बेलपत्रों को  लेकर ये मंत्र  पढेंगे - इदं बिल्वपत्रं/ एतानि बिल्वपत्राणि ऊँ इन्द्रादिदशदिक्पालेभ्यो नमः ।

तुलसीपत्र - इदं तुलसीपत्रं / एतानि तुलसीपत्राणि ऊँ इन्द्रादिदशदिक्पालेभ्यो नमः ।

एक तुलसीपत्र/तुलसीपत्रों को  लेकर ये मंत्र  पढेंगे - इदं तुलसीपत्रं / एतानि तुलसीपत्राणि ऊँ इन्द्रादिदशदिक्पालेभ्यो नमः ।

दूर्वा ( दूबि) - इदं दूर्वादलं  / एतानि दूर्वादलानि ऊँ इन्द्रादिदशदिक्पालेभ्यो नमः ।

एक दूर्वा/ अनेक दूर्वा को लेकर ये मंत्र पढेंगे - इदं दूर्वादलं  / एतानि दूर्वादलानि ऊँ इन्द्रादिदशदिक्पालेभ्यो नमः ।

जल - एतानि गन्ध-पुष्प-धूप-दीप-ताम्बूल-यथाभाग-नानाविधनैवेद्यानि  ऊँ इन्द्रादिदशदिक्पालेभ्यो नमः ।

अर्घा में जल लेकर  ये मंत्र  पढेंगे - एतानि गन्ध-पुष्प-धूप-दीप-ताम्बूल-यथाभाग-नानाविधनैवेद्यानि ऊँ इन्द्रादिदशदिक्पालेभ्यो नमः ।

जल – इदमाचमनीयम्   ऊँ इन्द्रादिदशदिक्पालेभ्यो नमः ।

अर्घा में जल को लेकर  ये मंत्र  पढेंगे - इदमाचमनीयम्   ऊँ इन्द्रादिदशदिक्पालेभ्यो नमः ।

आरती

विसर्जन-

ओं यान्तु देवगणाः सर्वे पूजामादाय मामकीम् । इष्टकामप्रसिद्ध्यर्थं पुनरागमनाय च ।। ओं पूजितदेवताः पूजिताः स्थ क्षमध्वं स्वस्थानं गच्छत।

सभी का विसर्जन मन्त्र पढते हुए जल लेकर करें- ओं यान्तु देवगणाः सर्वे पूजामादाय मामकीम् । इष्टकामप्रसिद्ध्यर्थं पुनरागमनाय च ।। ओं पूजितदेवताः पूजिताः स्थ क्षमध्वं स्वस्थानं गच्छत।

दक्षिणा-

कुशत्रय-तिल-जल-द्रव्यादिन्यादाय-ओं अद्य कृतैतच्छिव-पूजन-पूर्वक-शिवरात्रि-व्रत-प्रतिष्ठार्थ-मेतावद्द्रव्य-मूल्यक-हिरण्य-मग्नि-दैवतं यथानाम-गोत्राय ब्राह्मणाय दक्षिणामहं ददे।

इस मन्त्र को पढते हुए दक्षिणा करें- तिल-जल-द्रव्यादिन्यादाय-ओं अद्य कृतैतच्छिव-पूजन-पूर्वक-शिवरात्रि-व्रत-प्रतिष्ठार्थ-मेतावद्द्रव्य-मूल्यक-हिरण्य-मग्नि-दैवतं यथानाम-गोत्राय ब्राह्मणाय दक्षिणामहं ददे।

डा.प्रमोद कुमार मिश्र

सहायक प्राचार्य साहित्य

म.अ.रमेश्वरलतासंस्कृतमहाविद्यालय

दरभंगा

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