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Messages from Patrons

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आधुनिक देशकाल एवं परिस्थिति में धर्म कर्म सभी लुप्त हो रहे हैं। विज्ञान के प्रभाव से दुनियाँ विस्तृत रहता हुआ भी सिमट गया है। ऐसी परिस्थिति में धर्मकर्म के रक्षा एवं परिपालन ऑनलाइन आवश्यकता बन गयी है।

          अतः सभी कर्म यज्ञ-जप, पूज- पाठ एवं धर्म की मर्यादा का पालन के लिए उपर्युक्त कार्य प्रसंशनीय एवं स्तुत्य है। कर्मकाण्ड के योग्य विद्वान अपने ऑनलाइन वेबसाइट पर सुलभ होंगे ही इस स्तुत्य कार्य का हृदय से संस्तुति करता हूँ।

 

 

प्रोफेसर (डॉ0) उपेन्द्र झा

(पूर्व   कुलपति)
पूर्व  वेद विभागाध्यक्ष
कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय

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सन्देश

        मानव जीवन में जन्म से लेकर मृत्यु पर्यन्त श्रुतिस्मृति-पुराणोक्त विधि से किये जाने वाले दैहिक-और्ध्वदैहिक क्रिया के साथ सम्पूर्ण मानव जाति एवं सम्पूर्ण राष्ट्र के उत्कर्ष के लिये सनातन धर्म का पालन आवश्यक है।

        धर्मशास्त्र सम्मत मिथिला में प्रचलित कर्मकाण्ड की विधि आज भी सम्पूर्ण विश्व के लिये प्रमाणस्वरूप माना जाता है। किन्तु कर्मकाण्ड के प्रामाणिक विशिष्ट विद्वानों की सर्वत्र अनुपलब्धता के कारण, गाँव से लेकर बड़े सहरों तक लोगों में हो रही समस्या के निदान हेतु डॉ- नरोत्तम मिश्र ने आज के "डिजिटल इण्डिया" के युग में अपना कर्तव्य समझ कर कर्मकाण्ड निष्णात प्रामाणिक विद्वानों की सूची के साथ panditonline.org वेवसाईट तैयार किया है, यह एक सराहनीय कदम है।

              मैं इसकी भूरि भूरि प्रशंसा के साथ अपनी शुभकामना व्यक्त करता हूँ।

प्रो0 विद्याधर मिश्र

पूर्व कुुलपति

पूर्व  व्याकर्ण विभागाध्यक्ष

कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय,

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भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति में यज्ञ, संस्कार, आहिनक कर्म एवं व्रतादि का विशेष महत्त्व है। इनके शास्त्रोक्तविधि से सम्पादन से ही कर्ता समुचित फल पा सकता है। वस्तुतः इन श्रोत एवं र्स्मात कर्मों की सम्पादनविधि ही कर्मकाण्ड है। कर्मकाण्डों के सम्पादक अनेक कर्मकाण्डीय ग्रन्थों का निर्माण संस्कृतसाहित्य में किया गया है किन्तु वे सर्वसामान्य के लिए न तो सुलभ हैं और न ही वोधगम्य। कर्मकाण्ड के विशेषज्ञों की सुगम उपलब्धि समाज को नहीं हो पाती है। फलतः अध्यात्म एवं कर्मकाण्ड में आस्था रखने वाला व्यक्ति चाहकर भी इन आवश्यक कर्मों का सम्पादन नहीं कर पाता है अथवा तथाकथित कर्मकाण्डियों के द्वारा केवल ठगा जाता है। समाज में यह भी दृष्टिगत होता है कि धनाभाव के कारण दक्षिणा देने में असमर्थ व्यक्ति की मनोकामनाएँ उसके मन में ही रह जाती हैं।

        ऐसी स्थिति में सुदूरक्षेत्रों में रह रहे हिन्दुओं के दैनिक कृत्यों एवं विशेष कृत्यों के सफल एवं शास्त्रीय सम्पादन को सौविध्य को देखते हुए panditonline.org वेवसाईट का निर्माण कार्य बहुत ही समाजोपयोगी होगा जिसका अवलोकन कर समाज का प्रत्येक व्यक्ति विल्कुल शास्त्रीयविधि से कर्मकाण्डों का सम्पादन कर मनोवांछितफल प्राप्त कर सकेगा।

        भारतीय धर्म एवं आचार के संरक्षण हेतु डॉ. नरोत्तम मिश्र द्वारा किए गए इस अद्वितीय कार्य के लिए मैं उन्हें हार्दिक धन्यवाद देता हूँ तथा इस कार्य की सफलता की कामना करता हूँ।

प्रोफेसर श्रीपति त्रिपाठी
धर्मशास्त्र विभागाध्यक्ष
कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय

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