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।। श्री गणेशाय नमः ।।

।। सरस्वती पूजा पद्धति  ।।

श्रीसरस्वती – पूजन सामग्री

श्वेत आसन (उजला –आसन)              श्वेतपुष्प

दीपक                                            श्वेत – वस्त्र

दूर्वा   (दूबी)                                     नैवेद्य

श्वेत कंचुकी                                      धूप

ऋतुफल                                         श्वेत चन्दन

सुगन्धित                                         अबीर-गुलाल

श्वेत कमल                                       पंचामृत

ताम्बूल (पान)                                   अक्षत (चावल)

कपूर                                            सुपारी –सिन्दूर

कलावा                                          नारियल

कुंकुम                                           तैल –घृत (घी)

आभूषण                                         कागज,कलम,

श्वेतपुष्प                                          दवात,बहीखाता,पुस्तक

2. पूजन विधि

सर्वप्रथम स्नानादि से निवृत होकर स्वच्छ तथा धुले हुए वस्त्र धारण कर मन, वचन तथा कर्म की शुद्धि सहित पवित्र आसन के ऊपर पूर्व दिशा की ओर मुँह  करके बैठें तथा शिखा (चोटी) बन्धन कर, नवीन यज्ञोपवीत धारण करेंगे । इसके बाद इष्टदेवी की मूर्ति, चित्र अथवा उसके प्रतीक

 

धातु – यन्त्र को चौकी के ऊपर नवीन श्वेत-वस्त्र बिछाकर अपने आगे स्थापित

करेंगे । इसके साथ ही भगवती सरस्वती के यन्त्र को गेहूँ के आटे, पिसी हल्दी ,रोली अथवा चावलों के द्वारा देवी की मूर्ति,चित्र के सम्मुख चित्रित करें ।

 

जल-कुम्भ (कलश) पुजन –सामग्री को एकत्र कर,आसन के समीप ही रखें तथा देवी की मूर्ति अथवा यन्त्र के सम्मुख घृत (घी) का दीपक प्रज्वलित कर धूपबत्ती, अगरबत्ती आदि जला दें । तदुपरान्त आगे लिखे अनुसार सर्वप्रथम गणेशजी का ध्यान करें, क्योंकि किसी भी देवी-देवता की पूजा –उपासना आरम्भ करने से पूर्व विघ्न-विनाशक श्रीगणेशजी का ध्यान करना आवश्यक है ।

3. श्रीगणेश-ध्यान मन्त्र

दहीनें हाथ में दूर्वा,(दुबि),पुष्प(फुल) तथा जल को लेकर श्रीगणेशजी को ध्यान करते हुए इस मन्त्रों का उच्चारण करेंगे ।

ऊँ सुमुखश्व्चैकदतश्व कपिलो गजकर्णकः ।

लम्बोदरश्व विकटो विघ्ननाशो विनायकः।।

धूम्रकेतुर्गणाध्यक्षो भालचन्द्रो गजाननः ।

द्वादशैतानि नामानि यः पठेत्  श्वृणुयादपि ।।

विद्यारम्भे विवाहे च प्रवेशे निर्गमे तथा ।

संग्रामे संकटे चैव विघ्नस्तस्य न जायते ।।

शुक्लाम्बरधरं देवं शशिवर्ण चतुर्भुजम् ।

प्रसन्नवदनं ध्यायेत्सर्वविघ्नोपशान्तये ।।

4. पवित्रीकरण का मन्त्र

दहीनें हाथ में  कुश तथा जल को लेकर इस मन्त्रों का उच्चारण करेंगे ।

ऊँ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा ।।

यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स वाह्राभ्यन्तरः शुचिः।।’’

संकल्प मन्त्र

दहीनें हाथ में तिल,चावल,कुश,जल तथा यज्ञोपवीत (जनऊ) को लेकर इस मन्त्रों का उच्चारण करेंगे ।

                               

हरिः ऊँ तत्सत् ।

नमः परमात्मने श्रीपुराणपुरुषोत्तमस्य श्रीमदभगवतो महापुरुषस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्याद्य ब्रह्राणो द्वितीयप्रहरार्द्ध श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलियुगे कलिप्रथमचरणे जम्बूद्वीपे भरतखण्डे भारतवर्षे आर्य्यावर्तान्तर्गतैकदेशे पुण्यक्षेत्रे षष्टि –संवत्सराणां मध्ये अमुक नाम्नि संवत्सरे, अमुक अयने अमुक ऋतौ, अमुक मासे, अमुक पक्षे, अमुक तिथौ, अमुक नक्षत्रे, अमुक योगे, अमुक वासरे, अमुक राशिस्थे, सूर्ये, चन्द्रे, भौमे, बुधे, गुरौ, शुक्रे, शनौ, राहौ, केतौ, एवं गुणविशिष्टायां तिथौ, अमुक गोत्रोत्पन्नः अमुक नाम शर्मा अहं धर्मार्थकाममोक्षहेतवः श्रीगणपत्यादिसहितं  श्रीशारदापूजनमहं करिष्ये ।

5. ध्यान के मन्त्र

दहीनें हाथ में चावल को लेकर भगवती सरस्वती जी का ध्यान करते हुए इस मन्त्रों का उच्चारण  करेंगे ।

या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता ।

या वीणा वरदण्डमण्डितकरा, या श्वेतपद्यासना ।

या ब्रह्राच्युतशंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता ।

सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेष – जाड्यापहा ।।१।।

वीणाधरे  विपुलमंगलदानशीले, भक्तार्तिनाशिनि विरञ्चिहरीशवन्द्ये ।

कीर्तिप्रदे  ऽखिलमनोरथदे महार्हे, विद्याप्रदायिनि सरस्वति नौमि नित्यम् ।।२।।

आशा सुराशी भवदंगवल्ली,भासैव दासी कृतदुग्धसिन्धुम् ।

मन्दस्मितैर्निन्दित- शारदेन्दु,वन्दे ऽरविन्दासनसुन्दरि त्वाम् ।।३।।

सरस्वति महाभागे विद्ये कमललोचने ।

विद्यारूपे विशालाक्षि विद्यां देहि नमो ऽस्तुते ।।४।।

शारदा शारदाम्भोजवदना वदनाम्बुजे ।

सर्वदा सर्वदास्माकं सन्निधिं सन्निधिं क्रियात्  ।।५।।

6. आवाहन का मन्त्र

दहीनें हाथ में चावल को लेकर  सरस्वती जी का आवाहन करते हुए इस मन्त्रों का उच्चारण करेंगे ।

सर्वलोकस्य जननीं वीणापुस्तकधारिणीम् ।

सर्वदेवमयीमीशां देवीमावाहयाम्यहम् ।।’’

 

आसन का मन्त्र

दहीनें हाथ में जल को लेकर पृथ्वी पर तीन  बार छिड़कते हुए श्रीसरस्वतीजी को आसन पर प्रदान करते हुए इस मन्त्रों का उच्चारण करेंगे।

कुन्देन्दीवरवंर्णाभां मुक्तामणिविराजिताम् ।

अमलं कमलं दिव्यमासनं प्रतिगृह्राताम् ।।’’

                                  

पाद्य का मन्त्र

दहीनें हाथ में जल को लेकर इस मन्त्रों का उच्चारण  करेंगे ।

गङ्गादितीर्थसम्भूतं गन्धपुष्पादिभिर्युतम् ।

पाद्यं ददाम्यहं देवि गृहाणाशु नमो ऽस्तु ते ।।

 

अर्घ्य का मन्त्र

दहीनें हाथ में जल को लेकर इस मन्त्रों का उच्चारण करेंगे ।

अष्टगन्धसमायुक्तं गन्धपुष्पादिभिर्युतम् ।

अर्घ्य गृहाण गद्दत्तं शारदायै नमो ऽस्तु ते ।।

                                 

आचमन का मन्त्र

दहीनें हाथ में जल को लेकर इस मन्त्रों का उच्चारण करेंगें ।

सर्वलोकस्य या शक्तिर्ब्रह्राविष्णवादिभिः स्तुते ।

ददाम्याचमनं तस्यै सरस्वत्यै मनोहरम् ।।’’

 

स्नान का मन्त्र

दहीनें हाथ में जल को लेकर इस मन्त्रों का उच्चारण करेंगे ।

मन्दाकिन्याः समानीतैर्हेमाम्भोरुहवासितैः।

स्नानं कुरुष्व देवेशि सलिलैश्च सुगन्धिभिः।।

 

पंचामृत-स्नान का मन्त्र

दहीनें हाथ में पंचामृत जल को लेकर इस मन्त्रों का उच्चारण करेंगे ।

पंचामृतसमायुक्तं जाहृवीसलिलं शुभम् ।

गृहाण विश्वजननि स्नानार्थ भक्तवत्सले ।।’’

                                 

स्नान का मन्त्र

दहीनें हाथ में जल को लेकर  इस मन्त्रो का उच्चारण करेंगे ।

 

तोयं तव महादेवि कर्पूरागरुवासितम् ।

तीर्थेभ्यः सुसमानीतं स्नानार्थ प्रतिगृह्राताम् ।।’’

 

वस्त्र का मन्त्र

दहीनें हाथ में वस्त्र को लेकर इस मन्त्रों का उच्चारण करते हुए भगवती सरस्वतीजी  को समर्पित करेंगे ।

 

दिव्याम्बरं नूतनं हि क्षौमं त्वति मनोहरम् ।

दीयमानं मया देवि गृहाण जगदम्बिके ।।’’

 

आभूषण का मन्त्र

दहीनें हाथ में आभूषण को लेकर इस मन्त्रों का उच्चारण करते हुए भगवती सरस्वती जी को समर्पित करेंगे ।

 

स्वभावसुन्दराङ्गायै नाना शक्त्याश्रिते शुभे ।

भूषणानि विचित्राणि कल्पयाम्यमरार्चिते ।।’’

 

श्वेत चन्दन का मन्त्र

दहीनें हाथ में श्वेत चन्दन (उजला चन्दन) को लेकर इस मन्त्रों का उच्चारण करते हुए भगवती सरस्वती जी को समर्पित करेंगे ।

 

श्वेतचन्दनसम्मिश्रं पारिजातसमुद्भवम् ।

मया दत्तं गृहाणाशु चन्दनं गन्धसंयुतम् ।।’’

 

सिन्दूर का मन्त्र

दहीनें हाथ में सिन्दूर को लेकर इस मन्त्रों का उच्चारण करते हुए भगवती सरस्वती जी को समर्पित करेंगे ।

 

सिन्दूरं रक्तवर्ण च सिन्दूरतिलकं प्रिये ।

भक्त्या दत्तं मया देवि सिन्दूरं प्रतिगृह्राताम् ।।’’

                                         

कुंकुम का मन्त्र

दहीनें हाथ में कुंकुम  (अबीर) को लेकर इस मन्त्रों का उच्चारण करते हुए भगवती सरस्वती जी को समर्पित करेंगे ।

 

कुंकुमं कामदं दिव्यं कुंकुमं कामरूपिणम् ।

अखण्डकामसौभाग्यं कुंकुमं प्रतिगृह्राताम् ।।’’

                           

अक्षत (चावल) का मन्त्र

दहीनें हाथ में अक्षत(चावल) को लेकर इस मन्त्रों का उच्चारण करते हुए भगवती सरस्वती जी को समर्पित करेंगे ।

 

अक्षतान्निर्मलां शुद्धाम् मुक्तामणिसमन्विताम् ।

गृहाणाशु महादेवी देहि मे निर्मलां धियम् ।।’’

 

श्वेत पुष्प (उजला फुल) का मन्त्र

दहीनें हाथ में श्वेत पुष्प (उजला फुल) को लेकर इस मन्त्रों का उच्चारण करते हुए भगवती सरस्वती जी को समर्पित करेंगे ।

 

मन्दारपारिजाताद्याः पाटली केतकी तथा ।

मरुवा मोगरं चैव गृहाणाशु नमो नमः ।।’’

                         

पुष्पमाला (फुल का माला )

दहीनें हाथ में पुष्पमाला (फुल का माला ) को लेकर इस मन्त्रों का उच्चारण करते हुए भगवती सरस्वती जी को समर्पित करेंगे ।

पद्यशंखजपापुष्पैः शतपत्रैर्विचित्रताम् ।

पुष्पमालां प्रयच्छामि गृहाण त्वं सुरेश्वरि ।।’’

 

दूर्वा(दूबी) का मन्त्र

दहीनें हाथ में दूर्वा (दुबी) को लेकर इस मन्त्रों का उच्चारण करते हुए भगवती सरस्वती जी को समर्पित करेंगे ।

विष्ण्वादिसर्वदेवानां प्रियां सर्वसुशोभनाम् ।

क्षीरसागरसम्भूतां दूर्वा स्वीकुरु सर्वदा ।।’’

                             

अबीर-गुलाल का मन्त्र

दहीनें हाथ में अबीर-गुलाल को लेकर इस मन्त्रों का उच्चारण करते हुए भगवती सरस्वती जी को समर्पित करेंगे ।

 

अबीरं च गुलालं च चोबा चन्दनमेव च ।

अबीरेणार्चिता देवी ह्रातः शान्ति प्रयच्छ च ।।’’

 

सुगन्धित तैल का मन्त्र

दहीनें हाथ में सुगन्धित तैल को लेकर इस मन्त्रों का उच्चारण करते हुए भगवती सरस्वती जी को समर्पित करेंगे ।

 

स्नेहं गृहाण स्नेहेन लोकेश्वरि दयानिधे ।

सर्वलोकस्य जननी ददामि स्नेहमुत्तमम् ।।’’

                                 

धूप का मन्त्र

दहीनें हाथ में धूप को लेकर इस मन्त्रों का उच्चारण करते हुए भगवती सरस्वती जी को समर्पित करेंगे ।

 

वनस्पतिरसोद्भूतो गन्धाढ्यो गन्ध उत्तमः।

सर्वदेवानां धूपो यं प्रतिगृह्राताम् ।।’’

 

दीपक का मन्त्र

दहीनें हाथ में दीपक को लेकर इस मन्त्रों का उच्चारण करते हुए भगवती सरस्वती जी को समर्पित करेंगे ।

साज्यं च वर्त्तिसंयुक्तं वाहिना योजितं मया ।

तमोनाशकरं दीपं गृहाण परमेश्वरि ।।’’

नैवेद्य का मन्त्र

दहीनें हाथ में नैवेद्य को लेकर इस मन्त्रों का उच्चारण करते हुए भगवती सरस्वती जी को समर्पित करेंगे ।

नैवेद्यं गृह्रातां देवि भक्ष्यभोज्यसमन्वितम् ।

षडरसैरन्वितं दिव्यं सरस्वत्यै नमो स्तु ते ।।’’

 

ऋतुफल का मन्त्र (वैर,कैशोर,सेव,संतरा अंगुर)

दहीनें हाथ में ऋतुफल (बैर,कैशोर,सेव,संतरा,अंगुर) को लेकर इस मन्त्रों का उच्चारण करते हुए भगवती सरस्वती जी को समर्पित करेंगे ।

 

फलेन फलितं सर्व त्रैलोक्यं सचराचरम् ।

तस्मात् फलप्रदानेन पूर्णाः सन्तु मनोरथाः।।’’

अखण्ड ऋतुफल (पान,सुपाड़ी) का मन्त्र

दहीनें हाथ में अखण्ड ऋतुफल (पान,सुपाड़ी) को लेकर इस मन्त्रों का उच्चारण करते हुए भगवती सरस्वती जी को समर्पित करेंगे ।

 

इदं फलं मया नीतं सरसं च निवेदितम् ।

गृहाण परमेशानि प्रसीद प्रणमाम्यहम् ।।’’

                            

ताम्बूल (पान,सुपाड़ी)

दहीनें हाथ में ताम्बूल(पान,सुपाड़ी)को लेकर इस मन्त्रों का उच्चारण करते हुए भगवती सरस्वती जी को समर्पित करेंगे ।

एलालवङ्गकर्पूरनागपत्रादिभिर्युतम् ।

पूगीफलेन संयुक्तं ताम्बूलं प्रतिगृह्राताम् ।।’’

 

लेखनी-पूजन (कलम,दावात,पुस्तक) का मन्त्र

दहीनें हाथ में लेखनी,दावात,पुस्तक को लेकर इस मन्त्रों का उच्चारण करते हुए भगवती सरस्वती जी को समर्पित करेंगे ।

 

लेखनी निर्मिता पूर्वं ब्रह्राणा परमेष्ठिना ।

लोकानां च हितार्थाय तस्मात्तां पूजयाम्यहम् ।।

लेखन्यै ते नमस्तेस्तु लाभकत्र्यै नमोनमः ।

पुस्तके चर्चिता देवी सर्वविद्यान्नदा भव ।।

कृष्णानने कृष्णजिहै चित्रगुप्तकरस्थिते ।

पुष्पाञ्जलिं गृहाण त्वं सदैव वरदा भव ।।

 

दक्षिणा का मन्त्र

दहीनें हाथ में दक्षिणा (रुपया ) को लेकर इस मन्त्रों का उच्चारण करते करेंगे ।

 

हिरण्यगर्भगर्भस्थं हेमबीजं विभावसो ।

अनन्तपुण्यफलदमतः शान्तिं प्रयच्छ मे ।।

 

पुष्पांजलि (फुल) के मन्त्र

दहीनें हाथ में पुष्पांजलि (फुल) को लेकर इस मन्त्रों का उच्चारण करते हुए भगवती सरस्वती जी को समर्पित करेंगे ।

 

शारदा शारदाम्भोजवदना वदनाम्बुजे ।

सर्वदा सर्वदा स्माकं सन्निधिं सन्निधिं क्रियात् ।।

सरस्वति महादेवि लग्नमार्गप्रदर्शिनि ।

ज्ञानवन्तं कुरुष्वैव मा विलम्बेन सर्वदा ।।

 

नीराजन (आरती) का मन्त्र

दहीनें हाथ में नीराजन (आरती) को लेकर इस मन्त्रों का उच्चारण करेंगे ।

 

चक्षुदं सर्वलोकानां तिमिरस्य निवारणम् ।

आर्तिक्यं कल्पितं भक्त्या गृहाण परमेश्वरि ।।’’

                     

प्रदक्षिणा (परिक्रमा) का मन्त्र

इस मन्त्रों का उच्चारण करते हुए प्रदक्षिणा (तीन वार एक ही जगह पर खड़े होकर परिक्रमा) करेंगे ।

 

नमस्ते देवदेविशि नमस्ते ईप्सितप्रदे ।

नमस्ते जगतां धात्रि नमस्ते भक्तवत्सले ।।’’

नमस्कार मन्त्र

दहीनें हाथ में पुष्प (फुल) को लेकर नमस्कार मन्त्रों का उच्चारण करते हुए भगवती सरस्वती जी को समर्पित करेंगे ।

मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तहीनं सुरेश्वरि ।

यत्पूजितं मया देवि परिपूर्ण तदस्तु मे ।।’’

7. आरती श्री सरस्वती जी की

जय सरस्वती माता जय-जय हे सरस्वती माता ।

सद्गुण वैभव शालिनि,त्रिभुवन विख्याता ।।जय - जय ।।

चंद्रवदनि पदमासनि,द्युति मंगलकारी ।

सोहे शुभ हंस सवारी,अतुल तेजधारी ।।जय -जय ।।

बाएँ कर में वीणा,दाएँ कर माला ।

शीश मुकुट मणि सोहे,गल मोतियन पाला ।। जय-जय ।।

देवि शरण जो आए,उनका उद्धार किया ।

पैठि मंथरा दासी, रावण संहार किया ।।जय-जय।।

विद्या ज्ञान प्रदायिनि,ज्ञान प्रकाश भरो ।

मोहे और अज्ञान तिमिर का,जग से नाश करो ।।जय-जय ।।

धूप दीप फल मेवा,माँ स्वीकार करो ।।

ज्ञानचक्षु दे माता, भव से मेरा उद्धार करो ।।जय-जय।।

माँ सरस्वती जी की आरती, जो कोई नर गावै ।

हितकारी सुखकारी,ज्ञान भक्ति पावै ।।जय-जय।।

8. (श्लोक)

कज्जलपूरित-लोचनभारे,स्तनयुग-शोभित-मुक्ताहारे ।

वीणापुस्तक-रंजित-हस्ते, भगवति भारति देवि नमस्ते ।।

9. सरस्वती स्तुति

माँ शारदे कहाँ तू,वीणा बजा रही है ।

किस मंजु गान से तू,जग को लुभा रही है ।।

किस भाव में भवानी,तू  मग्न हो रही है ।

विनती नहीं हमारी,क्यों मातु सुन रही है ।।

हम दीन बाल कब से, विनती सुना रहे है ।

चरणों में तेरे माता,हम सिर झुका रहे है ।।

अज्ञान तू हमारा,माँ शीघ्र दूर कर दे ।

दे ज्ञान शुभ्र हममें,माँ शारदे तू भर दे ।।

बालक सभी जगत के,शिशु मातु हैं तुम्हारे ।

प्राणों से प्रिय तुझे हैं, हम पुत्र सब दुलारे ।।

हमको दयामयी तू, ले गोद में पढ़ाओ ।

अमृत जगत में हमको,माँ ज्ञान का पिलाओ

मातेश्वरी तू सुन ले, इतनी विनय हमारी ।

कर के दया तू हर ले, बाधा जगत की सारी ।।

10. दोहा

यह करुणा कादम्बिनी, जय जय विद्या दानि ।

कृपा करो सुखदायिनी, तुम सम कोउ न आनि ।।

विसर्जन का मन्त्र

दहीनें हाथ में जल को लेकर इस मन्त्रों का उच्चारण करते हुए पूजा के विधि को विसर्जन करेंगे ।

 

इमां पूजां मया देवि यथाशक्त्युपपादितम् ।

रक्षार्थं त्वं समादाय ब्रज स्थानमनुत्तमम् ।।’’

                                               

 

सरस्वती पूजा समाप्तम्

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