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श्रीसत्यनारायणपूजापद्धतिः

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आप सभी भक्तो को यह बताते हुआ प्रसन्नता हो रही है कि आप इस प्रक्रिया से स्वयं भगवान सत्यनारायण की पूजा वैदिक विधि से कर सकते है
 
हवन आप चाहे तो करे अन्यथा नहीं करे।

पूजा की सामग्री

सिन्दूर

उच्चासन (पिरही, टेबल- छोटा)

पण्डित जी के बैठने वाला आसन ( अगर पंडित जी उपलब्ध है तो)

पूजा करने वाले का आसन

शालग्राम / अगर शालग्राम उपलब्ध नहीं हो तो -1. सुपारी(Betel) अथवा का उपयोग करें

पूजा करने वाला पात्र (प्लेट) – इसका उपयोग अक्षत, तिल,जौ, चन्दन को रखने में आता है

पंचपात्र

घंटी

रक्तचन्दन (लाल चन्दन)

चन्द्रौटा (जिस पर चन्दन rub किया जाता है)

आम के पल्लव को तांबा, पीतल, कांस्य, चाँदी अथवा स्वर्ण के लोटा मे पानी भरकर रखना है

कलश (लोटा)

चतुर्मुख दीप (चार मुँह वाला दीप होना चाहिए )*

अछिञ्जल (जल) एक लोटा में

केला का पत्ता (२) होना चाहिए अथवा तांबा, पीतल, कांस्य, चाँदी या  स्वर्ण का बृहत् थाल (थारी)

कुश (कुश के अभाव में दुर्वा या इशको छोरा भी जा सकता है)

तिल (भींगा हुआ)

जौ (भींगा हुआ)

पञ्चामृत
(कच्चा गाय का दूध ,दही, घी,गुड़(शक्कर) , मधु, मिला कर बनायें)

पञ्चामृत
(कच्चा गाय का दूध ,दही, घी,गुड़(शक्कर) , मधु, मिला कर बनायें)

धूप /अगरबत्ती

फूल की माला

तुलसी

दुर्वा (दूबि)

बेलपत्र

पान

सुपारी

प्रसाद , पंचमेवा

पीत वस्त्र (पीला कपड़ा,अभाव में लाल कपड़ा) भगवान के लिए ।

जनेऊ (२ ) होना चाहीए । (पंडित और यजमान के लिये)

कर्पूर –दीप (आरती)

सूखा प्रसाद (गेहूँ का आटा या सूजी को कम आँच पर हल्का लाल होने तक भूनें) ठंडा होने के बाद चीनी मिलाएँ

चौरठ- चावल तथा गुड़ मिला कर तैयार करें

गीला शीतल प्रसाद - दूध,दही,केला,चीनी को मिला कर शीतल प्रसाद बनाएँ

चूड़ा

दही

चीनी/ शक़्क़र

पका हुआ केला

पान- सुपारी

विभवानुसार-

सामायिक फल – पाँच तरह के

हलुआ,पूड़ी,मालपुआ, (ऐच्छिक)

खाजा, लड्डू (ऐच्छिक)

रसगुल्ला एवं लालमोहन

पार्थिव शिवलिंग(मिट्टी के शिवलिंग)

हवन के लिये नारियल,स्रुव, आज्यस्थाली,

पिठार – चावल को पाँच घंटे तक पानी मे भिंगो कर पीस  लें अथवा चावल के आटा को मिला कर मोटा घोल तैयार करें

सज़ावाट केला बृक्ष से या अपने मन अनुसार

पूजा की व्यवस्था

पिठार से अरिपन बनाएँ

 

उच्चासन (पिरही, टेबल- छोटा) पर पिठार लगायें

 

कलश (लोटा) पर पिठार लगायें तथा कलश में जल, आम का पल्लव, सुपारी रख कर उच्चासन पर रखें

अथ श्रीसत्यनारायण-पूजापद्धतिः-

अथ पूजाविधिः(पूजाविधान)

तत्र कृतनित्यक्रियो व्रती पूजास्थानमागत्य शुद्धासने दिवा - रात्रौ प्राङ् - उदङ्मुख उपविश्य त्रिकुशहस्तः- ऊँ  अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा । यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं  स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः।। ऊँ  पुण्डरीकाक्षः पुनातु ।।

यह सत्यनारायण भगवान की पूजा दिवा या रात्रि में करने का प्रावधान है । पूजन करने वाले पूरे दिन व्रत में रहेगें । किन्तु आवश्यकता  हो तो फलाहार कर सकते हैं। स्नान करने के पश्चात् नवीन वस्त्र या धुला हुआ वस्त्र धारण करेगें ।  शुद्ध आसन पर पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठ जायेगें ।जल में गंगाजल (शुद्ध जल) मिला देगें ।

 

पञ्चदेवतापूजाः- दिन में सूर्यादिपञ्चदेवता की तथा रात्रि में गणपत्यादिपञ्चदेवता की पूजा का विधान है।

 ​

1. कुशहस्तः अक्षतान्यादायः- ऊँ भूर्भुवः स्वः श्रीगणपत्यादिपञ्चदेवताः /सूर्यादिपञ्चदेवताः इहागच्छत इह तिष्ठत

दाहिने हाथ में कुश तथा अक्षत  लेकर ये मंत्र पढेगें - ऊँ भूर्भुवः स्वः श्रीगणपत्यादिपञ्चदेवताः /सूर्यादिपञ्चदेवताः इहागच्छत इह तिष्ठत 

इसे केले के पत्ते पर उपर से बाएं तरफ से रखेंगे​

2. इत्यावाह्य एतानि पाद्यार्घाचमनीय-स्नानीय पुनराचमनीयानि ऊँ श्रीगणपत्यादि/सूर्यादि पञ्चदेवताभ्यो नमः। 

अर्घा में जल  लेकर  ये मंत्र पढेगें - एतानि पाद्यार्घाचमनीय-स्नानीय पुनराचमनीयानि ऊँ श्रीगणपत्यादि/सूर्यादि पञ्चदेवताभ्यो नमः ।​

3. चन्दन  - इदमनुलेपनम्   ऊँ श्रीगणपत्यादि /सूर्यादि पञ्चदेवताभ्यो नमः ।

दाहिने हाथ से फूल में चन्दन  लगाकर ये मंत्र  पढेगें - इदमनुलेपनम् ऊँ श्रीगणपत्यादि /सूर्यादि पञ्चदेवताभ्यो नमः

4. अक्षत - इदमक्षतम्   ऊँ श्रीगणपत्यादि /सूर्यादि पञ्चदेवताभ्यो नमः

दाहिने हाथ में अक्षत लेकर ये मंत्र  पढेगें - इदमक्षतम् ऊँ श्रीगणपत्यादि /सूर्यादि पञ्चदेवताभ्यो नमः

5. फूल – इदं पुष्पं/ एतानि पुष्पाणि ऊँ श्रीगणपत्यादि /सूर्यादि पञ्चदेवताभ्यो नमः

दोनों हाथों को जोड़ते हुए फूल/फूलों को   लेकर  भगवान् का ध्यान करते हुए ये मंत्र  पढेगें -  इदं पुष्पं/ एतानि पुष्पाणि ऊँ श्रीगणपत्यादि /सूर्यादि पञ्चदेवताभ्यो नमः

6. बिल्वपत्र – इदं बिल्वपत्रं/ एतानि बिल्वपत्राणि ऊँ श्रीगणपत्यादि  पञ्चदेवताभ्यो नमः

एक बेलपत्र/बेलपत्रों को  लेकर ये मंत्र  पढेगें - इदं बिल्वपत्रं/ एतानि बिल्वपत्राणि ऊँ श्रीगणपत्यादि  पञ्चदेवताभ्यो नमः

7. तुलसीपत्र - इदं तुलसीपत्रं / एतानि तुलसीपत्राणि ऊँ सूर्यादि पञ्चदेवताभ्यो नमः

एक तुलसीपत्र/तुलसीपत्रों को  लेकर ये मंत्र  पढेगें - इदं तुलसीपत्रं / एतानि तुलसीपत्राणि ऊँ सूर्यादि पञ्चदेवताभ्यो नमः

 

8. दूर्वा ( दूबि) - इदं दूर्वादलं  / एतानि दूर्वादलानि ऊँ श्रीगणपत्यादि /सूर्यादि पञ्चदेवताभ्यो नमः

 

एक दूर्वा/ अनेक दूर्वा को लेकर ये मंत्र पढेंगे - इदं दूर्वादलं  / एतानि दूर्वादलानि ऊँ श्रीगणपत्यादि /सूर्यादि पञ्चदेवताभ्यो नमः

9. एतानि गन्ध-पुष्प-धूप-दीप-ताम्बूल-यथाभाग-नानाविधनैवेद्यानि ऊँ गणपत्यादि / सूर्यादि पञ्चदेवताभ्यो नमः ।

 

अर्घा में जल लेकर  ये मंत्र पढेगें - एतानि गन्ध-पुष्प-धूप-दीप-ताम्बूल-यथाभाग-नानाविधनैवेद्यानि ऊँ गणपत्यादि / सूर्यादि पञ्चदेवताभ्यो नमः ।​

10. जल – इदमाचमनीयम्   ऊँ गणपत्यादि / सूर्यादि पञ्चदेवताभ्यो नमः ।

 

अर्घा में जल को लेकर  ये मंत्र  पढेगें - इदमाचमनीयम्   ऊँ गणपत्यादि / सूर्यादि पञ्चदेवताभ्यो नमः ।​

11. पुष्प - एष पुष्पाञ्जलिः ऊँ गणपत्यादि / सूर्यादि पञ्चदेवताभ्यो नमः ।

 

फूल  हाथ में लेकर भगवान् का ध्यान करते हुए ये मंत्र  पढेगें - एष पुष्पाञ्जलिः ऊँ गणपत्यादि / सूर्यादि पञ्चदेवताभ्यो नमः । 

विष्णुपूजा -

1. यव-तिलान्यादाय - ऊँ भूर्भुवः स्वः भगवन् श्रीविष्णो इहागच्छ इह तिष्ठ।

दाहिने हाथ में तिल लेकर ये मंत्र  पढेगें -  ऊँ भूर्भुवः स्वः भगवन् श्रीविष्णो इहागच्छ इह तिष्ठ।   इसे  केले के  पत्ते पर ऊपर से बाएं तरफ से दूसरे  स्थान पर रखेंगे।

2. जल - एतानि पाद्यार्घाचमनीय स्नानीय पुनराचमनीयानि ऊँ भगवते श्रीविष्णवे नमः

अर्घा में जल  लेकर  ये मंत्र  पढेगें - एतानि पाद्यार्घाचमनीय स्नानीय पुनराचमनीयानि ऊँ भगवते श्रीविष्णवे नमः

3.  चन्दन - इदमनुलेपनम्  ऊँ भगवते श्रीविष्णवे नमः

दाहिने हाथ से फूल में चन्दन  लगाकर ये मंत्र  पढेगें - इदमनुलेपनम्  ऊँ भगवते श्रीविष्णवे नमः

4. तिल - एते तिलाः  ऊँ भगवते श्रीविष्णवे नमः

दाहिने हाथ में तिल लेकर ये मंत्र  पढेगें - एते तिलाः  ऊँ भगवते श्रीविष्णवे नमः​

5. पुष्प - इदं पुष्पं/ एतानि पुष्पाणि ऊँ भगवते श्रीविष्णवे नमः ।

दोनों हाथों को जोड़ते हुए फूल/फूलों को   लेकर  भगवान् का ध्यान करते हुए ये मंत्र  पढेगें -  इदं पुष्पं/ एतानि पुष्पाणि ऊँ भगवते श्रीविष्णवे नमः ।

6. तुलसीपत्र - इदं तुलसीपत्रं / एतानि तुलसीपत्राणि ऊँ भगवते श्रीविष्णवे नमः ।

एक तुलसीपत्र/तुलसीपत्रों को  लेकर ये मंत्र  पढेगें - इदं तुलसीपत्रं / एतानि तुलसीपत्राणि ऊँ भगवते श्रीविष्णवे नमः ।

7. दूर्वा ( दूबि) - इदं दूर्वादलं  / एतानि दूर्वादलानि ऊँ भगवते श्रीविष्णवे नमः ।

एक दूर्वा/ अनेक दूर्वा को लेकर ये मंत्र पढेंगे -इदं दूर्वादलं / एतानि दूर्वादलानि ऊँ भगवते श्रीविष्णवे नमः ।

8. बिल्वपत्र – इदं बिल्वपत्रं/ एतानि बिल्वपत्राणि ऊँ भगवते श्रीविष्णवे नमः ।

 

एक बेलपत्र/बेलपत्रों को  लेकर ये मंत्र  पढेगें - इदं बिल्वपत्रं/ एतानि बिल्वपत्राणि ऊँ भगवते श्रीविष्णवे नमः ।

 

9. जल - एतानि गन्ध-पुष्प-धूप-दीप-ताम्बूल-यथाभाग-नानाविधनैवेद्यानि ऊँ भगवते श्रीविष्णवे नमः ।

 

अर्घा में जल लेकर  ये मंत्र  पढेगें - एतानि गन्ध-पुष्प-धूप-दीप-ताम्बूल-यथाभाग-नानाविधनैवेद्यानि ऊँ भगवते श्रीविष्णवे नमः ।

 

10. जल – इदमाचमनीयम्   ऊँ भगवते श्रीविष्णवे नमः ।

 

अर्घा में जल को लेकर  ये मंत्र  पढेगें - इदमाचमनीयम्   ऊँ भगवते श्रीविष्णवे नमः ।

 

11. पुष्प - एष पुष्पाञ्जलिः ऊँ भगवते श्रीविष्णवे नमः ।

 

फूल  हाथ में लेकर भगवान् का ध्यान करते हुए ये मंत्र  पढेगें - एष पुष्पाञ्जलिः ऊँ भगवते श्रीविष्णवे नमः ।

अथ सङ्कल्पः

कुशत्रय-तिल-जलान्यादायः-

ऊँ  अस्यां रात्रौ अमुके मासि अमुके पक्षे अमुकतिथौ अमुकगोत्रस्य मम श्री अमुकशर्मणः सपरिवारस्य सकलदुरितोपसर्गापच्छान्तिपूर्वक-सकल मनोरथ-सिद्ध्यर्थ यथाशक्ति गन्ध-पुष्प-धूप-दीप –ताम्बूल-यज्ञोपवीत-    वस्त्राऽपुङ्ग-नैवेद्यादिभिः अङगदेवता-पूजापूर्वक (पूर्वाङ्गीकृत) श्रीसत्यनारायणपूजनं तत्कथाश्रवणं चाऽहं करिष्ये (२) ।

दहीनें हाथ में कुश-तिल-जल को लेकर अमुक मंत्र को पढते हुए - ऊँ  अस्यां रात्रौ अमुके मासि अमुके पक्षे अमुकतिथौ अमुकगोत्रस्य मम श्री अमुकशर्मणः सपरिवारस्य सकल –दुरितोपसर्गापच्छान्तिपूर्वक-सकल मनोरथ-सिद्ध्यर्थ यथाशक्ति गन्ध-पुष्प-धूप-दीप –ताम्बूल-यज्ञोपवीत-    वस्त्राऽपुङ्ग-नैवेद्यादिभिः अङगदेवता-पूजापूर्वक (पूर्वाङ्गीकृत) श्रीसत्यनारायणपूजनं तत्कथाश्रवणं चाऽहं करिष्ये (२) ।  सङ्कल्प करेंगे ।

 

 

अथ अङ्गदेवतापूजनम् -

लक्ष्मीपूजाः- 

1. अक्षतान्यादायः- ऊँ भूर्भूवः स्वः श्रीलक्ष्मि इहागच्छ इह तिष्ठ ।

दाहिने हाथ में अक्षत लेकर यह मंत्र  पढेगें - ऊँ भूर्भूवः स्वः श्रीलक्ष्मि इहागच्छ इह तिष्ठ । इसे  केले पत्ते पर ऊपर से बाएं तरफ से तृतीय  स्थान पर रखेंगे।

2. जल - एतानि पाद्यार्घाचमनीय स्नानीय पुनराचमनीयानि  ऊँ श्रीलक्ष्म्यै नमः ।

अर्घा में जल  लेकर  यह मंत्र  पढेगें - एतानि पाद्यार्घाचमनीय स्नानीय पुनराचमनीयानि  ऊँ श्रीलक्ष्म्यै नमः ।​

चन्दन -इदमनुलेपनम्  ऊँ श्रीलक्ष्म्यै नमः ।

दाहिने हाथ से फूल में चन्दन  लगाकर ये मंत्र  पढेगें - इदमनुलेपनम्  ऊँ श्रीलक्ष्म्यै नमः ।

​4. सिन्दूर - इदं सिन्दूराभरणम्   ऊँ श्रीलक्ष्म्यै नमः ।

दाहिने हाथ से फूल में सिन्दूर  लगाकर ये मंत्र  पढेगें - इदं सिन्दूराभरणम्   ऊँ श्रीलक्ष्म्यै नमः ।

​5. अक्षत - इदमक्षतम्   ऊँ श्रीलक्ष्म्यै नमः ।

दाहिने हाथ में अक्षत लेकर ये मंत्र  पढेगें - इदमक्षतम् ऊँ श्रीलक्ष्म्यै नमः ।

​6. पुष्प - इदं पुष्पं/ एतानि पुष्पाणि ऊँ श्रीलक्ष्म्यै नमः ।

दोनों हाथों को जोड़ते हुए फूल/फूलों को   लेकर लक्ष्मी  का ध्यान करते हुए ये मंत्र  पढेगें -  इदं पुष्पं/ एतानि पुष्पाणि ऊँ श्रीलक्ष्म्यै नमः ।

​7. बिल्वपत्र – इदं बिल्वपत्रं/ एतानि बिल्वपत्राणि ऊँ श्रीलक्ष्म्यै नमः ।

एक बेलपत्र/बेलपत्रों को  लेकर ये मंत्र  पढेगें - इदं बिल्वपत्रं/ एतानि बिल्वपत्राणि ऊँ श्रीलक्ष्म्यै नमः ।

 

​8. तुलसीपत्र - इदं तुलसीपत्रं / एतानि तुलसीपत्राणि ऊँ श्रीलक्ष्म्यै नमः ।

 

एक तुलसीपत्र/तुलसीपत्रों को  लेकर ये मंत्र  पढेगें - इदं तुलसीपत्रं / एतानि तुलसीपत्राणि ऊँ श्रीलक्ष्म्यै नमः ।

 

​9. दूर्वा ( दूबि) - इदं दूर्वादलं  / एतानि दूर्वादलानि ऊँ श्रीलक्ष्म्यै नमः ।

एक दूर्वा/ अनेक दूर्वा को लेकर ये मंत्र पढेंगे - इदं दूर्वादलं  / एतानि दूर्वादलानि ऊँ श्रीलक्ष्म्यै नमः ।

 

​10.  जल - एतानि गन्ध-पुष्प-धूप-दीप-ताम्बूल-यथाभाग-नानाविधनैवेद्यानि ऊँ श्रीलक्ष्म्यै नमः ।

 

अर्घा में जल लेकर  ये मंत्र  पढेगें - एतानि गन्ध-पुष्प-धूप-दीप-ताम्बूल-यथाभाग-नानाविधनैवेद्यानि ऊँ श्रीलक्ष्म्यै नमः ।

 

​11. जल – इदमाचमनीयम्   ऊँ  श्रीलक्ष्म्यै नमः ।

 

अर्घा में जल को लेकर  ये मंत्र  पढेगें - इदमाचमनीयम्   ऊँ  श्रीलक्ष्म्यै नमः ।

 

12. पुष्प - एष पुष्पाञ्जलिः ऊँ  श्रीलक्ष्म्यै नमः ।

फूल  हाथ में लेकर लक्ष्मी का ध्यान करते हुए ये मंत्र  पढेगें - एष पुष्पाञ्जलिः ऊँ  श्रीलक्ष्म्यै नमः ।

सरस्वतीपूजाः-

1. अक्षतान्यादायः- ऊँ भूर्भूवः स्वः श्रीसरस्वति इहागच्छ इह तिष्ठ ।   

                 

दाहिने हाथ में अक्षत लेकर यह मंत्र  पढेगें -  ऊँ भूर्भूवः स्वः श्रीसरस्वति इहागच्छ इह तिष्ठ ।                     

इसे  केले पत्ते पर ऊपर से बाएं तरफ से चौथे  स्थान पर रखेंगे।

2. जल - एतानि पाद्यार्घाचमनीय स्नानीय पुनराचमनीयानि  ऊँ श्रीसरस्वत्यै नमः ।

अर्घा में जल  लेकर  यह मंत्र  पढेगें - एतानि पाद्यार्घाचमनीय स्नानीय पुनराचमनीयानि  ऊँ श्रीसरस्वत्यै नमः ।

3. चन्दन - इदमनुलेपनम्  ऊँ श्रीसरस्वत्यै नमः ।

दाहिने हाथ से फूल में चन्दन  लगाकर ये मंत्र  पढेगें - इदमनुलेपनम्  ऊँ श्रीसरस्वत्यै नमः ।

4. सिन्दूर - इदं सिन्दूराभरणम्   ऊँ श्रीसरस्वत्यै नमः ।

दाहिने हाथ से फूल में सिन्दूर  लगाकर ये मंत्र  पढेगें - इदं सिन्दूराभरणम्   ऊँ श्रीसरस्वत्यै नमः ।

5. अक्षत - इदमक्षतम्   ऊँ श्रीसरस्वत्यै नमः ।

दाहिने हाथ में अक्षत लेकर ये मंत्र  पढेगें - इदमक्षतम् ऊँ श्रीसरस्वत्यै नमः ।

6. पुष्प - इदं पुष्पं/ एतानि पुष्पाणि  ऊँ श्रीसरस्वत्यै नमः ।

दोनों हाथों को जोड़ते हुए फूल/फूलों को   लेकर लक्ष्मी  का ध्यान करते हुए ये मंत्र  पढेगें -  इदं पुष्पं/ एतानि पुष्पाणि ऊँ श्रीसरस्वत्यै नमः ।

7. बिल्वपत्र – इदं बिल्वपत्रं/ एतानि बिल्वपत्राणि ऊँ श्रीसरस्वत्यै नमः ।

एक बेलपत्र/बेलपत्रों को  लेकर ये मंत्र  पढेगें - इदं बिल्वपत्रं/ एतानि बिल्वपत्राणि ऊँ श्रीसरस्वत्यै नमः ।

8. तुलसीपत्र - इदं तुलसीपत्रं / एतानि तुलसीपत्राणि ऊँ श्रीसरस्वत्यै नमः ।

एक तुलसीपत्र/तुलसीपत्रों को  लेकर ये मंत्र  पढेगें - इदं तुलसीपत्रं / एतानि तुलसीपत्राणि ऊँ श्रीसरस्वत्यै नमः ।

9. दूर्वा ( दूबि) - इदं दूर्वादलं  / एतानि दूर्वादलानि ऊँ श्रीसरस्वत्यै नमः ।

एक दूर्वा/ अनेक दूर्वा को लेकर ये मंत्र पढेंगे - इदं दूर्वादलं  / एतानि दूर्वादलानि ऊँ श्रीसरस्वत्यै नमः ।

10.  जल - एतानि गन्ध-पुष्प-धूप-दीप-ताम्बूल-यथाभाग-नानाविधनैवेद्यानि ऊँ श्रीसरस्वत्यै नमः ।

अर्घा में जल लेकर  ये मंत्र  पढेगें - एतानि गन्ध-पुष्प-धूप-दीप-ताम्बूल-यथाभाग-नानाविधनैवेद्यानि ऊँ श्रीसरस्वत्यै नमः ।

11.  जल – इदमाचमनीयम्   ऊँ श्रीसरस्वत्यै नमः ।

अर्घा में जल को लेकर  ये मंत्र  पढेगें - इदमाचमनीयम्   ऊँ श्रीसरस्वत्यै नमः ।​

12. पुष्प - एष पुष्पाञ्जलिः ऊँ श्रीसरस्वत्यै नमः ।

फूल  हाथ में लेकर लक्ष्मी का ध्यान करते हुए ये मंत्र  पढेगें - एष पुष्पाञ्जलिः ऊँ श्रीसरस्वत्यै नमः ।

आदिपुरुषपूजाः-

 

​1. अक्षतान्यादायः – ऊँ भूर्भूवः स्वः श्री आदिपुरुष इहागच्छ  इह तिष्ठ ।

 

दाहिने हाथ में अक्षत लेकर यह मंत्र  पढेगें -  ऊँ भूर्भूवः स्वः श्री आदिपुरुष इहागच्छ  इह तिष्ठ ।इसे  केले पत्ते पर ऊपर से बाएं तरफ से पाँचवें  स्थान पर रखेंगे।​

2. जल - एतानि पाद्यार्घाचमनीय स्नानीय पुनराचमनीयानि    ऊँ आदिपुरुषाय नमः ।

अर्घा में जल  लेकर  यह मंत्र  पढेगें - एतानि पाद्यार्घाचमनीय स्नानीय पुनराचमनीयानि    ऊँ आदिपुरुषाय नमः ।

 

3. चन्दन - इदमनुलेपनम्  ऊँ आदिपुरुषाय नमः ।

दाहिने हाथ से फूल में चन्दन  लगाकर ये मंत्र  पढेगें - इदमनुलेपनम्  ऊँ आदिपुरुषाय नमः ।

4. अक्षत - इदमक्षतम्   ऊँ आदिपुरुषाय नमः ।

दाहिने हाथ में अक्षत लेकर ये मंत्र  पढेगें - इदमक्षतम् ऊँ आदिपुरुषाय नमः ।

 

5. पुष्प - इदं पुष्पं/ एतानि पुष्पाणि ऊँ आदिपुरुषाय नमः ।

 

दोनों हाथों को जोड़ते हुए फूल/फूलों को   लेकर आदिपुरुष  का ध्यान करते हुए ये मंत्र  पढेगें -  इदं पुष्पं/ एतानि पुष्पाणि ऊँ आदिपुरुषाय नमः ।

6. बिल्वपत्र – इदं बिल्वपत्रं/ एतानि बिल्वपत्राणि ऊँ आदिपुरुषाय नमः ।

 

एक बेलपत्र/बेलपत्रों को  लेकर ये मंत्र  पढेगें - इदं बिल्वपत्रं/ एतानि बिल्वपत्राणि ऊँ आदिपुरुषाय नमः ।

7. तुलसीपत्र - इदं तुलसीपत्रं / एतानि तुलसीपत्राणि ऊँ आदिपुरुषाय नमः ।

 

एक तुलसीपत्र/तुलसीपत्रों को  लेकर ये मंत्र  पढेगें - इदं तुलसीपत्रं / एतानि तुलसीपत्राणि ऊँ आदिपुरुषाय नमः ।

 

8. दूर्वा ( दूबि) - इदं दूर्वादलं  / एतानि दूर्वादलानि ऊँ आदिपुरुषाय नमः ।

 

एक दूर्वा/ अनेक दूर्वा को लेकर ये मंत्र पढेंगे - इदं दूर्वादलं  / एतानि दूर्वादलानि ऊँ आदिपुरुषाय नमः ।

 

 

 9. जल - एतानि गन्ध-पुष्प-धूप-दीप-ताम्बूल-यथाभाग-नानाविधनैवेद्यानि  ऊँ आदिपुरुषाय नमः ।

 

अर्घा में जल लेकर  ये मंत्र  पढेगें - एतानि गन्ध-पुष्प-धूप-दीप-ताम्बूल-यथाभाग-नानाविधनैवेद्यानि ऊँ आदिपुरुषाय नमः ।

 

10. जल – इदमाचमनीयम्   ऊँ आदिपुरुषाय नमः ।

 

अर्घा में जल को लेकर  ये मंत्र  पढेगें - इदमाचमनीयम्   ऊँ आदिपुरुषाय नमः ।

11. पुष्प - एष पुष्पाञ्जलिः ऊँ आदिपुरुषाय नमः ।

 

फूल  हाथ में लेकर लक्ष्मी का ध्यान करते हुए ये मंत्र  पढेगें - एष पुष्पाञ्जलिः ऊँ आदिपुरुषाय नमः ।

अनादिपुरुषपूजाः

 

1. अक्षतान्यादाय - ऊँ भूर्भूवः  स्वः श्री अनादिपुरुष इहागच्छ इहतिष्ठ ।

 

दाहिने हाथ में अक्षत लेकर यह मंत्र  पढेगें -  ऊँ भूर्भूवः  स्वः श्री अनादिपुरुष इहागच्छ इहतिष्ठ ।इसे  केले पत्ते पर ऊपर से बाएं तरफ से छठे  स्थान पर रखेंगे।

 

2. जल - एतानि पाद्यार्घाचमनीय स्नाननीय पुनराचमनीयानि ऊँ श्री अनादिपुरुषाय नमः ।

 

अर्घा में जल  लेकर  यह मंत्र  पढेगें - एतानि पाद्यार्घाचमनीय स्नानीय पुनराचमनीयानि    ऊँ श्री अनादिपुरुषाय नमः ।

 

​3 चन्दन - इदमनुलेपनम्  ऊँ श्री अनादिपुरुषाय नमः ।

 

दाहिने हाथ से फूल में चन्दन  लगाकर ये मंत्र  पढेगें - इदमनुलेपनम्  ऊँ श्री अनादिपुरुषाय नमः ।

 

​4. अक्षत - इदमक्षतम्   ऊँ श्री अनादिपुरुषाय नमः ।

 

दाहिने हाथ में अक्षत लेकर ये मंत्र  पढेगें - इदमक्षतम् ऊँ श्री अनादिपुरुषाय नमः ।

 

​5. पुष्प - इदं पुष्पं/ एतानि पुष्पाणि ऊँ श्री अनादिपुरुषाय नमः ।

 

दोनों हाथों को जोड़ते हुए फूल/फूलों को   लेकर आदिपुरुष  का ध्यान करते हुए ये मंत्र  पढेगें -  इदं पुष्पं/ एतानि पुष्पाणि ऊँ श्री अनादिपुरुषाय नमः ।

​6. बिल्वपत्र – इदं बिल्वपत्रं/ एतानि बिल्वपत्राणि ऊँ श्री अनादिपुरुषाय नमः ।

एक बेलपत्र/बेलपत्रों को  लेकर ये मंत्र  पढेगें - इदं बिल्वपत्रं/ एतानि बिल्वपत्राणि ऊँ श्री अनादिपुरुषाय नमः ।

7. तुलसीपत्र - इदं तुलसीपत्रं / एतानि तुलसीपत्राणि ऊँ श्री अनादिपुरुषाय नमः ।

एक तुलसीपत्र/तुलसीपत्रों को  लेकर ये मंत्र  पढेगें - इदं तुलसीपत्रं / एतानि तुलसीपत्राणि ऊँ श्री अनादिपुरुषाय नमः ।

​8. दूर्वा ( दूबि) - इदं दूर्वादलं  / एतानि दूर्वादलानि ऊँ श्री अनादिपुरुषाय नमः ।

एक दूर्वा/ अनेक दूर्वा को लेकर ये मंत्र पढेंगे - इदं दूर्वादलं  / एतानि दूर्वादलानि ऊँ श्री अनादिपुरुषाय नमः ।

​9. जल - एतानि गन्ध-पुष्प-धूप-दीप-ताम्बूल-यथाभाग-नानाविधनैवेद्यानि  ऊँ श्री अनादिपुरुषाय नमः ।

अर्घा में जल लेकर  ये मंत्र  पढेगें - एतानि गन्ध-पुष्प-धूप-दीप-ताम्बूल-यथाभाग-नानाविधनैवेद्यानि ऊँ श्री अनादिपुरुषाय नमः ।

​10. जल – इदमाचमनीयम्   ऊँ श्री अनादिपुरुषाय नमः ।

अर्घा में जल को लेकर  ये मंत्र  पढेगें - इदमाचमनीयम्   ऊँ श्री अनादिपुरुषाय नमः ।

​11. पुष्प - एष पुष्पाञ्जलिः ऊँ श्री अनादिपुरुषाय नमः ।

फूल  हाथ में लेकर लक्ष्मी का ध्यान करते हुए ये मंत्र  पढेगें - एष पुष्पाञ्जलिः ऊँ श्री अनादिपुरुषाय नमः ।

इन्द्रादिदशदिक्पालपूजाः

 

​1. अक्षतान्यादायः –  ऊँ भूभुर्वः स्वः श्री इन्द्रादिदशदिक्पालाः इहागच्छत इह तिष्ठत  ।

 

दाहिने हाथ में अक्षत लेकर यह मंत्र  पढेगें -  ऊँ भूभुर्वः स्वः श्री इन्द्रादिदशदिक्पालाः इहागच्छत इह तिष्ठत  ।  इसे  केले पत्ते पर ऊपर से बाएं तरफ से सातवें   स्थान पर रखेंगे।

2. जल - एतानि पाद्यार्घाचमनीय स्नाननीय पुनराचमनीयानि ऊँ इन्द्रादिदशदिक्पालेभ्यो नमः ।

अर्घा में जल  लेकर  यह मंत्र  पढेगें - एतानि पाद्यार्घाचमनीय स्नाननीय पुनराचमनीयानि ऊँ इन्द्रादिदशदिक्पालेभ्यो नमः ।

3. चन्दन - इदमनुलेपनम्  ऊँ इन्द्रादिदशदिक्पालेभ्यो नमः ।

दाहिने हाथ से फूल में चन्दन  लगाकर ये मंत्र  पढेगें - इदमनुलेपनम्  ऊँ इन्द्रादिदशदिक्पालेभ्यो नमः ।

4. अक्षत इदमक्षतम्   ऊँ इन्द्रादिदशदिक्पालेभ्यो नमः ।

 

दाहिने हाथ में अक्षत लेकर ये मंत्र  पढेगें - इदमक्षतम् ऊँ इन्द्रादिदशदिक्पालेभ्यो नमः ।

5. पुष्प - इदं पुष्पं/ एतानि पुष्पाणि ऊँ इन्द्रादिदशदिक्पालेभ्यो नमः ।

दोनों हाथों को जोड़ते हुए फूल/फूलों को   लेकर इन्द्रादिदशदिक्पाल  का ध्यान करते हुए ये मंत्र  पढेगें -  इदं पुष्पं/ एतानि पुष्पाणि ऊँ इन्द्रादिदशदिक्पालेभ्यो नमः ।

6. बिल्वपत्र – इदं बिल्वपत्रं/ एतानि बिल्वपत्राणि ऊँ इन्द्रादिदशदिक्पालेभ्यो नमः ।

 

एक बेलपत्र/बेलपत्रों को  लेकर ये मंत्र  पढेगें - इदं बिल्वपत्रं/ एतानि बिल्वपत्राणि ऊँ इन्द्रादिदशदिक्पालेभ्यो नमः ।

7.  तुलसीपत्र - इदं तुलसीपत्रं / एतानि तुलसीपत्राणि ऊँ इन्द्रादिदशदिक्पालेभ्यो नमः ।

 

एक तुलसीपत्र/तुलसीपत्रों को  लेकर ये मंत्र  पढेगें - इदं तुलसीपत्रं / एतानि तुलसीपत्राणि ऊँ इन्द्रादिदशदिक्पालेभ्यो नमः ।

8. दूर्वा ( दूबि) - इदं दूर्वादलं  / एतानि दूर्वादलानि ऊँ इन्द्रादिदशदिक्पालेभ्यो नमः ।

 

एक दूर्वा/ अनेक दूर्वा को लेकर ये मंत्र पढेंगे - इदं दूर्वादलं  / एतानि दूर्वादलानि ऊँ इन्द्रादिदशदिक्पालेभ्यो नमः ।

 

9. जल -एतानि गन्ध-पुष्प-धूप-दीप-ताम्बूल-यथाभाग-नानाविधनैवेद्यानि ऊँ इन्द्रादिदशदिक्पालेभ्यो नमः ।

अर्घा में जल लेकर  ये मंत्र  पढेगें - एतानि गन्ध-पुष्प-धूप-दीप-ताम्बूल-यथाभाग-नानाविधनैवेद्यानि ऊँ इन्द्रादिदशदिक्पालेभ्यो नमः ।

​10. जल – इदमाचमनीयम्   ऊँ इन्द्रादिदशदिक्पालेभ्यो नमः ।

अर्घा में जल को लेकर  ये मंत्र  पढेगें - इदमाचमनीयम्   ऊँ इन्द्रादिदशदिक्पालेभ्यो नमः ।

11. पुष्प - एष पुष्पाञ्जलिः ऊँ इन्द्रादिदशदिक्पालेभ्यो नमः ।

 

फूल  हाथ में लेकर लक्ष्मी का ध्यान करते हुए ये मंत्र  पढेगें - एष पुष्पाञ्जलिः ऊँ इन्द्रादिदशदिक्पालेभ्यो नमः ।

नवग्रहपूजाः

 

1. अक्षतान्यादायः-  ऊँ भूर्भुवः स्वः साधिदैवत-सप्रत्यधिदैवत-विनायकादिपञ्चकसहित नवग्रहाः इहागच्छत इह तिष्ठत ।

दाहिने हाथ में अक्षत लेकर यह मंत्र  पढेगें -  ऊँ भूर्भुवः स्वः साधिदैवत-सप्रत्यधिदैवत-विनायकादिपञ्चकसहित नवग्रहाः इहागच्छत इह तिष्ठत । इसे  केले पत्ते पर ऊपर से बाएं तरफ से आठवें   स्थान पर रखेंगे।

2. जल - एतानि पाद्यार्घाचमनीय स्नाननीय पुनराचमनीयानि ऊँ साधिदैवत-सप्रत्यधिदैवत-विनायकादिपञ्चकसहित नवग्रहेभ्यो नमः।

अर्घा में जल  लेकर  यह मंत्र  पढेगें - एतानि पाद्यार्घाचमनीय स्नाननीय पुनराचमनीयानि ऊँ साधिदैवत-सप्रत्यधिदैवत-विनायकादिपञ्चकसहित नवग्रहेभ्यो नमः।

3. चन्दन - इदमनुलेपनम्  ऊँ साधिदैवत-सप्रत्यधिदैवत-विनायकादिपञ्चकसहित नवग्रहेभ्यो नमः।

 

दाहिने हाथ से फूल में चन्दन  लगाकर ये मंत्र  पढेगें - इदमनुलेपनम्  ऊँ साधिदैवत-सप्रत्यधिदैवत-विनायकादिपञ्चकसहित नवग्रहेभ्यो नमः।

4. अक्षत -इदमक्षतम्   ऊँ साधिदैवत-सप्रत्यधिदैवत-विनायकादिपञ्चकसहित नवग्रहेभ्यो नमः।

 

दाहिने हाथ में अक्षत लेकर ये मंत्र  पढेगें - इदमक्षतम् ऊँ साधिदैवत-सप्रत्यधिदैवत-विनायकादिपञ्चकसहित नवग्रहेभ्यो नमः।

5. पुष्प - इदं पुष्पं/ एतानि पुष्पाणि ऊँ साधिदैवत-सप्रत्यधिदैवत-विनायकादिपञ्चकसहित नवग्रहेभ्यो नमः।

 

दोनों हाथों को जोड़ते हुए फूल/फूलों को   लेकर साधिदैवत-सप्रत्यधिदैवत-विनायकादिपञ्चकसहित नवग्रहों का ध्यान करते हुए ये मंत्र  पढेगें -  इदं पुष्पं/ एतानि पुष्पाणि ऊँ साधिदैवत-सप्रत्यधिदैवत-विनायकादिपञ्चकसहित नवग्रहेभ्यो नमः।

6. बिल्वपत्र – इदं बिल्वपत्रं/ एतानि बिल्वपत्राणि ऊँ साधिदैवत-सप्रत्यधिदैवत-विनायकादिपञ्चकसहित नवग्रहेभ्यो नमः।

 

एक बेलपत्र/बेलपत्रों को  लेकर ये मंत्र  पढेगें - इदं बिल्वपत्रं/ एतानि बिल्वपत्राणि ऊँ साधिदैवत-सप्रत्यधिदैवत-विनायकादिपञ्चकसहित नवग्रहेभ्यो नमः।

7. तुलसीपत्र - इदं तुलसीपत्रं / एतानि तुलसीपत्राणि ऊँ साधिदैवत-सप्रत्यधिदैवत-विनायकादिपञ्चकसहित नवग्रहेभ्यो नमः।

 

एक तुलसीपत्र/तुलसीपत्रों को  लेकर ये मंत्र  पढेगें - इदं तुलसीपत्रं / एतानि तुलसीपत्राणि ऊँ साधिदैवत-सप्रत्यधिदैवत-विनायकादिपञ्चकसहित नवग्रहेभ्यो नमः।

8. दूर्वा ( दूबि) - इदं दूर्वादलं  / एतानि दूर्वादलानि ऊँ साधिदैवत-सप्रत्यधिदैवत-विनायकादिपञ्चकसहित नवग्रहेभ्यो नमः।

 

एक दूर्वा/ अनेक दूर्वा को लेकर ये मंत्र पढेंगे - इदं दूर्वादलं  / एतानि दूर्वादलानि ऊँ साधिदैवत-सप्रत्यधिदैवत-विनायकादिपञ्चकसहित नवग्रहेभ्यो नमः।

9. जल - एतानि गन्ध-पुष्प-धूप-दीप-ताम्बूल-यथाभाग-नानाविधनैवेद्यानि  ऊँ साधिदैवत-सप्रत्यधिदैवत-विनायकादिपञ्चकसहित नवग्रहेभ्यो नमः।

 

अर्घा में जल लेकर  ये मंत्र  पढेगें - एतानि गन्ध-पुष्प-धूप-दीप-ताम्बूल-यथाभाग-नानाविधनैवेद्यानि ऊँ साधिदैवत-सप्रत्यधिदैवत-विनायकादिपञ्चकसहित नवग्रहेभ्यो नमः।

10. जल – इदमाचमनीयम्   ऊँ साधिदैवत-सप्रत्यधिदैवत-विनायकादिपञ्चकसहित नवग्रहेभ्यो नमः।

 

अर्घा में जल को लेकर  ये मंत्र  पढेगें - इदमाचमनीयम्   ऊँ साधिदैवत-सप्रत्यधिदैवत-विनायकादिपञ्चकसहित नवग्रहेभ्यो नमः।

11. पुष्प - एष पुष्पाञ्जलिः ऊँ साधिदैवत-सप्रत्यधिदैवत-विनायकादिपञ्चकसहित नवग्रहेभ्यो नमः।

 

फूल  हाथ में लेकर साधिदैवत-सप्रत्यधिदैवत-विनायकादिपञ्चकसहित नवग्रहों का ध्यान करते हुए ये मंत्र  पढेगें - एष पुष्पाञ्जलिः ऊँ साधिदैवत-सप्रत्यधिदैवत-विनायकादिपञ्चकसहित नवग्रहेभ्यो नमः।

ससीतरामलक्ष्मणपूजाः 

 

​1. यव-तिलान्यादायः - ऊँ भूर्भुवः स्वः श्रीससीत-रामलक्ष्मणौ इहागच्छतमिह तिष्ठतम्।

 

दाहिने हाथ में अक्षत लेकर यह मंत्र  पढेगें - ऊँ भूर्भुवः स्वः श्रीससीत-रामलक्ष्मणौ इहागच्छतमिह तिष्ठतम्। इसे  केले पत्ते पर ऊपर से बाएं तरफ से नौवें  स्थान पर रखेंगे।

 

2. जल - एतानि पाद्यार्घाचमनीय स्नाननीय पुनराचमनीयानि ऊँ ससीतरामलक्ष्मणाभ्यां नमः ।

 

अर्घा में जल  लेकर  यह मंत्र  पढेगें - एतानि पाद्यार्घाचमनीय स्नानीय पुनराचमनीयानि    ऊँ ससीतरामलक्ष्मणाभ्यां नमः ।

3. चन्दन - इदमनुलेपनम्  ऊँ ससीतरामलक्ष्मणाभ्यां नमः ।

 

दाहिने हाथ से फूल में चन्दन  लगाकर ये मंत्र  पढेगें - इदमनुलेपनम्  ऊँ ससीतरामलक्ष्मणाभ्यां नमः ।

4. सिन्दूर - इदं सिन्दूराभरणम्   ऊँ ससीतरामलक्ष्मणाभ्यां नमः ।

 

दाहिने हाथ से फूल में सिन्दूर लगाकर ये मंत्र  पढेगें - इदं सिन्दूराभरणम्  ऊँ ससीतरामलक्ष्मणाभ्यां नमः ।

 

5. जौ-तिल -  एते यवतिलाः ऊँ ससीतरामलक्ष्मणाभ्यां नमः ।

दाहिनें हाथ में जौ - तिल लेकर ये मंत्र  पढेगें - एते यवतिलाः  ऊँ ससीतरामलक्ष्मणाभ्यां नमः ।

6. पुष्प - इदं पुष्पं/ एतानि पुष्पाणि ऊँ ससीतरामलक्ष्मणाभ्यां नमः ।

 

दोनों हाथों को जोड़ते हुए फूल/फूलों को   लेकर सीता सहित रामलक्ष्मण  का ध्यान करते हुए ये मंत्र  पढेगें -  इदं पुष्पं/ एतानि पुष्पाणि ऊँ ससीतरामलक्ष्मणाभ्यां नमः ।

7.  बिल्वपत्र – इदं बिल्वपत्रं/ एतानि बिल्वपत्राणि ऊँ ससीतरामलक्ष्मणाभ्यां नमः ।

 

एक बेलपत्र/बेलपत्रों को  लेकर ये मंत्र  पढेगें - इदं बिल्वपत्रं/ एतानि बिल्वपत्राणि ऊँ ससीतरामलक्ष्मणाभ्यां नमः ।

8. तुलसीपत्र - इदं तुलसीपत्रं / एतानि तुलसीपत्राणि ऊँ ससीतरामलक्ष्मणाभ्यां नमः ।

 

एक तुलसीपत्र/तुलसीपत्रों को  लेकर ये मंत्र  पढेगें - इदं तुलसीपत्रं / एतानि तुलसीपत्राणि ऊँ ससीतरामलक्ष्मणाभ्यां नमः ।

9. दूर्वा ( दूबि) - इदं दूर्वादलं  / एतानि दूर्वादलानि ऊँ ससीतरामलक्ष्मणाभ्यां नमः ।

 

एक दूर्वा/ अनेक दूर्वा को लेकर ये मंत्र पढेंगे - इदं दूर्वादलं  / एतानि दूर्वादलानि ऊँ ससीतरामलक्ष्मणाभ्यां नमः ।

10. जल -एतानि गन्ध-पुष्प-धूप-दीप-ताम्बूल-यथाभाग-नानाविधनैवेद्यानि ऊँ ससीतरामलक्ष्मणाभ्यां नमः ।

 

अर्घा में जल लेकर  ये मंत्र  पढेगें - एतानि गन्ध-पुष्प-धूप-दीप-ताम्बूल-यथाभाग-नानाविधनैवेद्यानि ऊँ ससीतरामलक्ष्मणाभ्यां नमः ।

11. जल – इदमाचमनीयम्   ऊँ ससीतरामलक्ष्मणाभ्यां नमः ।

अर्घा में जल को लेकर  ये मंत्र  पढेगें - इदमाचमनीयम्   ऊँ ससीतरामलक्ष्मणाभ्यां नमः ।

12. पुष्प - एष पुष्पाञ्जलिः ऊँ ससीतरामलक्ष्मणाभ्यां नमः ।

 

फूल  हाथ में लेकर सीता सहित रामलक्ष्मण  का ध्यान करते हुए ये मंत्र  पढेगें - एष पुष्पाञ्जलिः ऊँ ससीतरामलक्ष्मणाभ्यां नमः ।

हनुमत् पूजाः-

 

1. अक्षतान्यादाय - ऊँ भूर्भूवः  स्वः श्री हनूमन्निहागच्छ इहतिष्ठ ।

दाहिने हाथ में अक्षत लेकर यह मंत्र  पढेगें -  ऊँ भूर्भूवः  स्वः श्री हनूमन्निहागच्छ इहतिष्ठ ।इसे  केले पत्ते पर ऊपर से बाएं तरफ से दशवें स्थान पर रखेंगे।

2. जल - एतानि पाद्यार्घाचमनीय स्नाननीय पुनराचमनीयानि ऊँ श्री हनूमते नमः ।

 

अर्घा में जल  लेकर  यह मंत्र  पढेगें - एतानि पाद्यार्घाचमनीय स्नानीय पुनराचमनीयानि    ऊँ श्री हनूमते नमः ।

3. चन्दन - इदमनुलेपनम्  ऊँ श्री हनूमते नमः ।

 

दाहिने हाथ से फूल में चन्दन  लगाकर ये मंत्र  पढेगें - इदमनुलेपनम्  ऊँ श्री हनूमते नमः ।

4. सिन्दूर - इदं सिन्दूराभरणम्   ऊँ श्री हनूमते नमः ।

 

दाहिने हाथ से फूल में सिन्दूर  लगाकर ये मंत्र  पढेगें - इदं सिन्दूराभरणम् ऊँ  श्री हनूमते नमः ।

5. अक्षत - इदमक्षतम्   ऊँ श्री हनूमते नमः ।

 

दाहिने हाथ में अक्षत लेकर ये मंत्र  पढेगें - इदमक्षतम् ऊँ श्री हनूमते नमः ।

6. पुष्प - इदं पुष्पं/ एतानि पुष्पाणि ऊँ श्री हनूमते नमः ।

 

दोनों हाथों को जोड़ते हुए फूल/फूलों को   लेकर हनूमान जी का ध्यान करते हुए ये मंत्र  पढेगें -  इदं पुष्पं/ एतानि पुष्पाणि ऊँ श्री हनूमते नमः ।

7. बिल्वपत्र – इदं बिल्वपत्रं/ एतानि बिल्वपत्राणि ऊँ श्री हनूमते नमः ।

 

एक बेलपत्र/बेलपत्रों को  लेकर ये मंत्र  पढेगें - इदं बिल्वपत्रं/ एतानि बिल्वपत्राणि ऊँ श्री हनूमते नमः ।

8. तुलसीपत्र - इदं तुलसीपत्रं / एतानि तुलसीपत्राणि ऊँ श्री हनूमते नमः ।

 

एक तुलसीपत्र/तुलसीपत्रों को  लेकर ये मंत्र  पढेगें - इदं तुलसीपत्रं / एतानि तुलसीपत्राणि ऊँ श्री हनूमते नमः ।

9. दूर्वा ( दूबि) - इदं दूर्वादलं  / एतानि दूर्वादलानि ऊँ श्री हनूमते नमः ।

 

एक दूर्वा/ अनेक दूर्वा को लेकर ये मंत्र पढेंगे - इदं दूर्वादलं  / एतानि दूर्वादलानि ऊँ श्री हनूमते नमः ।

10. जल - एतानि गन्ध-पुष्प-धूप-दीप-ताम्बूल-यथाभाग-नानाविधनैवेद्यानि ऊँ श्री हनूमते नमः ।

 

अर्घा में जल लेकर  ये मंत्र  पढेगें - एतानि गन्ध-पुष्प-धूप-दीप-ताम्बूल-यथाभाग-नानाविधनैवेद्यानि ऊँ श्री हनूमते नमः ।

11. जल – इदमाचमनीयम्  ऊँ श्री हनूमते नमः ।

 

अर्घा में जल को लेकर  ये मंत्र  पढेगें - इदमाचमनीयम्  ऊँ श्री हनूमते नमः ।।

12. पुष्प - एष पुष्पाञ्जलिः ऊँ श्री हनूमते नमः ।

 

फूल  हाथ में लेकर हनूमान जी का ध्यान करते हुए ये मंत्र  पढेगें - एष पुष्पाञ्जलिः ऊँ श्री हनूमते नमः ।

अथ श्रीसत्यनारायण पूजाविधिः-

1. यव तिलान् गृहीत्वा – ऊँ  भूर्भुवः स्वः भगवन् श्रीसत्यनारायण  इहागच्छ इह तिष्ठ ।

दाहिने हाथ में जौ तिल  लेकर यह मंत्र  पढेगें - ऊँ  भूर्भुवः स्वः भगवन् श्रीसत्यनारायण इहागच्छ इह तिष्ठ ।और उच्चासन (पिरही) के ऊपर प्लेट पर रखेंगे।

2. पुष्पं गृहीत्वा ऊँ ध्यायेत् सत्यं गुणातीतं गुणत्रयसमन्वितम् । लोकनाथं त्रिलोकेशं पीताम्बरधरं हरिम् ।।

इन्दीवरदलश्यामं  शङ्खचक्रगदाधरम् । नारायंण चतुर्बाहुं श्रीवत्सपदभूषितम् ।।

गोविन्दं गोकुलानन्दं जगतः पितरं गुरुम् ।। इदं ध्यानपुष्पम् ऊँ भगवते श्रीसत्यनारायणाय नमः ।

दोनों हाथों को जोड़ते हुए फूल/फूलों को लेकर ये मंत्र पढेंगे -

ऊँ ध्यायेत् सत्यं गुणातीतं गुणत्रयसमन्वितम् । लोकनाथं त्रिलोकेशं पीताम्बरधरं हरिम् ।।

इन्दीवरदलश्यामं  शङ्खचक्रगदाधरम् । नारायंण चतुर्बाहुं श्रीवत्सपदभूषितम् ।।

गोविन्दं गोकुलानन्दं जगतः पितरं गुरुम् ।। इदं ध्यानपुष्पम् ऊँ भगवते श्रीसत्यनारायणाय नमः ।

3. ततः अर्घमादाय (जलम् )

ऊँ व्यक्ताव्यक्तस्वरूपाय  हृषीकपतये नमः। मया निवेदितो भक्त्या अर्घोऽयं प्रतिगृह्यताम् ।।

एतानि पाद्यार्घाचमनीय स्नाननीय पुनराचमनीयानि  ओं भगवते श्रीसत्यनारायणाय नमः।

अर्घा में जल  लेकर  ये मंत्र  पढेंगे - ऊँ व्यक्ताव्यक्तस्वरूपाय  हृषीकपतये नमः।

मया निवेदितो भक्त्या अर्घोऽयं प्रतिगृह्यताम् ।। एतानि पाद्यार्घाचमनीय स्नाननीय पुनराचमनीयानि  ओं भगवते श्रीसत्यनारायणाय नमः।​

4. ततः यज्ञोपवीतमादाय  (जनेऊ) ओं इमे यज्ञोपवीते बृहस्पतिदैवते भगवते श्रीसत्यनारायणाय नमः।

जनेऊ को दाहिने हाथ में लेकर भगवान् का ध्यान करते हुए ये मंत्र  पढेंगे - ओं इमे यज्ञोपवीते बृहस्पतिदैवते भगवते श्रीसत्यनारायणाय नमः।

 

5. इदमाचमनीयम्- ओं भगवते श्रीसत्यनारायणा नमः ।

अर्घा में जल को लेकर  ये मंत्र को पढेगें ।

6. ततः वस्त्रमादायः – ओं इदं वस्त्रं बृहस्पतिदैवतम् भगवते  श्रीसत्यनारायणाय नमः ।

नूतन  वस्त्र  लेकर ये मंत्र  पढेंगे - ओं इदं वस्त्रं बृहस्पतिदैवतम् भगवते  श्रीसत्यनारायणाय नमः ।

7. इदमाचमनीयम् ओं भगवते श्रीसत्यनारायणाय नमः ।

अर्घा में जल को लेकर  ये मंत्र को पढेगें ।

8. ततः चन्दनमादाय – ओं श्रीखण्डचन्दनं दिव्यं गन्धाढ्यं सुमनोहरम्।

विलेपनं सुरश्रेष्ठ  ! प्रीत्यर्थं प्रतिगृह्यताम् ।। इदमनुलेपनम् ओं भगवते श्रीसत्यनारायणाय नमः ।

दाहिने हाथ से फूल में चन्दन  लगाकर ये मंत्र  पढेंगे - ओं श्रीखण्डचन्दनं दिव्यं गन्धाढ्यं सुमनोहरम्।

विलेपनं सुरश्रेष्ठ  ! प्रीत्यर्थं प्रतिगृह्यताम् ।। इदमनुलेपनम् ओं भगवते श्रीसत्यनारायणाय नमः ।

9. यवतिल -  एते यवतिलाः ओं भगवते श्रीसत्यनारायणाय नमः ।

दाहिने हाथ में जौ तिल लेकर ये मंत्र  पढेंगे - एते यवतिलाः ओं भगवते श्रीसत्यनारायणाय नमः ।

10. तत पुष्पाण्यादाय – ओं नमस्ते विश्वरूपाय शङ्खचक्रधराय च ।

पद्मनाभाय देवाय हृषीकपतये नमः ।। नमोऽनन्तस्वरूपाय त्रिगुणात्मविभाजिने। एतानि पुष्पाणि ओं भगवते श्रीसत्यनारायणाय नमः ।

दोनों हाथों को जोड़ते हुए फूल/फूलों को लेकर भगवान् सत्यनारायण  का ध्यान करते हुए ये मंत्र  पढेगें – ओं नमस्ते विश्वरूपाय शङ्खचक्रधराय च । पद्मनाभाय देवाय हृषीकपतये नमः ।।

नमोऽनन्तस्वरूपाय त्रिगुणात्मविभाजिने। एतानि पुष्पाणि ओं भगवते श्रीसत्यनारायणाय नमः ।

11. तुलसीपत्र - ततः चन्दनसहितानि तुलसीपत्राणि  आदाय – एतानि सचन्दनतुलसीपत्राणि ओं भगवते श्रीसत्यनारायणाय नमः ।

 

दाहिने हाथ से तुलसी-पात में चन्दन  लगाकर ये मंत्र  पढेंगे - एतानि सचन्दनतुलसीपत्राणि ओं भगवते श्रीसत्यनारायणाय नमः ।

12. ततः पुष्पमाल्यं गृहीत्वा  – इदं पुष्पमाल्यम् ओं भगवते श्रीसत्यनारायणाय नमः ।

फूल माला हाथ में लेकर भगवान् का ध्यान करते हुए ये मंत्र पढेंगे - इदं पुष्पमाल्यम् ओं भगवते श्रीसत्यनारायणाय नमः ।

13. दूर्वा ( दूबि) - इदं दूर्वादलं  / एतानि दूर्वादलानि ओं भगवते श्रीसत्यनारायणाय नमः ।

 

एक दूर्वा/ अनेक दूर्वा को लेकर ये मंत्र पढेंगे - इदं दूर्वादलं  / एतानि दूर्वादलानि ओं भगवते श्रीसत्यनारायणाय नमः ।​

14. बिल्वपत्र – इदं बिल्वपत्रं/ एतानि बिल्वपत्राणि ओं भगवते श्रीसत्यनारायणाय नमः ।

 

एक बेलपत्र/बेलपत्रों को  लेकर ये मंत्र  पढेगें - इदं बिल्वपत्रं/ एतानि बिल्वपत्राणि ओं भगवते श्रीसत्यनारायणाय नमः ।

15. जल - एतानि गन्ध-पुष्प-धूप-दीप-ताम्बूल-यथाभाग-नानाविधनैवेद्यानि  ओं भगवते श्रीसत्यनारायणाय नमः ।

 

अर्घा में जल लेकर  ये मंत्र  पढेगें - एतानि गन्ध-पुष्प-धूप-दीप-ताम्बूल-यथाभाग-नानाविधनैवेद्यानि ओं भगवते श्रीसत्यनारायणाय नमः ।

16. ततः  अपुङ्गनैवेद्यं गृहीत्वाः– ओं त्वदीय वस्तु गोविन्द !  तुभ्यमेव  समर्पितम् ।

गृहाण सुमुखो भूत्वा प्रसीद पुरुषोत्तम्  ! ।। इदमपुङ्गनैवैद्यम् ओं भगवते श्रीसत्यनारायणाय नमः ।

दाहिने हाथ में जल लेकर नैवेद्य को उत्सर्ग करते हुए ये  मंत्र पढेगें – ओं त्वदीय वस्तु गोविन्द !  तुभ्यमेव  समर्पितम् । गृहाण सुमुखो भूत्वा प्रसीद पुरुषोत्तम्  ! ।। इदमपुङ्गनैवैद्यम् ओं भगवते श्रीसत्यनारायणाय नमः ।

17. ततः गुडमिश्रिततण्डुलान् दृष्ट्वा  जलमादाय – एतानि पृथुकान्नानि  ओं भगवते श्रीसत्यनारायणाय नमः ।

दाहिने हाथ  में जल लेकर चौरठका भोग निम्न मन्त्र से लगायेंगे  -  एतानि पृथुकान्नानि  ओं भगवते श्रीसत्यनारायणाय नमः ।

18. ततः ससितदधिचिप्टान्नानि दृष्ट्वा  जलमादाय – इदं ससितदधिचिपटान्नम् ओं भगवते श्रीसत्यनारायणाय नमः ।

दाहिने हाथ  में जल लेकर चूरा दही का भोग निम्न मन्त्र से लगायेंगे  - इदं ससितदधिचिपटान्नम् ओं भगवते श्रीसत्यनारायणाय नमः ।

 

19. ततः इदमाचमनीयम् ओं भगवते श्रीसत्यनारायणाय नमः ।

 

अर्घा में जल को लेकर  ये मंत्र को पढेगें - इदमाचमनीयम् ओं भगवते श्रीसत्यनारायणाय नमः ।

 

20. (ततः पुष्पाञ्जलिः) पुष्पाण्यादायः –

ओं अमोघं पुण्डरीकाक्षं नृसिहं दैत्यसूदनम् । ह्रषीकेशं जगत्राथं वागीशं वरदायकम् ।।

गुणत्रयं गुणातीतं गोविन्दं गरुडध्वजम् । जनार्दनं जनान्दं जानकीवल्लभं जयम् ।।

प्रणमामि सदा सत्य –नारायणमतः परम् । दुर्गमे विषमे घोरे शत्रुभिः परिपीडिते ।।

विविधा ऽऽ पत्सु दुष्टेषु तथा ऽ न्येष्वपि यद्रयम्। नामान्येतानि सङ्कीत्र्ये ईप्सितं फलमाप्नयात्।।

सत्यनारायणं देवं वन्देऽ हं  कामदं प्रभुम् । लीलया च ततं विश्वं येन तस्मै नमो नमः ।।

 

दाहिने हाथो में फुलों को  लेकर भगवान को ध्यान करते हुए ये मंत्र पढेगें –

ओं अमोघं पुण्डरीकाक्षं नृसिहं दैत्यसूदनम् । ह्रषीकेशं जगत्राथं वागीशं वरदायकम् ।।

गुणत्रयं गुणातीतं गोविन्दं गरुडध्वजम् । जनार्दनं जनान्दं जानकीवल्लभं जयम् ।।

प्रणमामि सदा सत्य –नारायणमतः परम् । दुर्गमे विषमे घोरे शत्रुभिः परिपीडिते ।।

विविधा ऽऽ पत्सु दुष्टेषु तथा ऽ न्येष्वपि यद्रयम्। नामान्येतानि सङ्कीत्र्ये ईप्सितं फलमाप्नयात्।।

सत्यनारायणं देवं वन्देऽ हं  कामदं प्रभुम् । लीलया च ततं विश्वं येन तस्मै नमो नमः ।।

21. एष पुष्पाञ्जलिः- ओं भगवते श्रीसत्यनारायणाय नमः ।

 

फुल को दाहिने हाथ में लेकर भगवान को ध्यान करते हुए ये मंत्र को पढेगें ।

।। श्रीः ।।

अथ सत्यनारायण – कथाप्रारम्भः-

ऊँ नारायणं नमस्कृत्य नरञ्चैव नरोत्तमम् । देवीं सरस्वतीं चैव ततो जयमुदीरयेत् ।।

एकदा मुनयः सर्वे  सर्वलोकहिते  रताः ।     सुरम्ये नैमिषारण्ये गोष्ठीं चक्रुर्मनोरमाम्।।१।।

तत्रान्तरे महातेजा व्यासशिष्यो महायशाः । सूतः शिष्यगणैर्युक्तः समायातो हरिं स्मरन् ।।2।।

तमायान्तं समालोक्य सूतं शास्त्रार्थपारगम् । नेमुः सर्वे समुत्थाय शौनकाद्यास्तपोधनाः ।।३।।

सोऽपि तान् सहसा भक्त्या मुनीन् परमवैष्णवान् ननाम दण्डवद् भूमौ सर्वधर्मविदां वरः ।।४।।

वरासने महाबुद्धिस्तैर्दत्ते मुनिसत्तमः। उवाच सदसो मध्ये सर्वैः शिष्यगणैर्वृतः।।५।।

तत्रोपविष्टं तं सूतं शौनकौमुनिसत्तमः। बद्धाञ्जलिरिमां वाचमुवाच विनयान्वितः।।६।।

शौनक उवाच –

महर्षे ! सूत ! सर्वज्ञ ! कलिकाले समागते ।केनोपायेन भगवन् हरिभक्तिर्भवेन्ननृणाम् ।।७।।

कलौ सर्वे भविष्यन्ति  पापकर्मपरायणाः । वेदविद्याविहीनाश्च तेषां श्रेयः कथं भवेत्।।८।।

कलावन्नगतप्राणा लोकाः स्वल्पायुषस्तथा । निदर्धनाश्च भविष्यन्ति नानापीडाप्रपीडिताः।।९।।

प्रयाससाध्यं सुकृतं शास्त्रेषु श्रूयते द्धिज ! ।तस्मात केऽपि करिष्यन्ति कलौ न सुकृतं जनाः।।१०।।

सुकृतेषु विनष्टेषु प्रवृत्ते पापकर्मणि। सवंशाः प्रलयं सर्वे गमिष्यन्ति दुराशयाः ।।११।।

स्वल्वश्रमैरल्पवित्तेरल्पकालैश् सत्तम ! । यथा भवेन्महा पुण्यं तथा कथय सूत ! नः ।।१२।।

यस्योपदेशतः पुण्यं पापं वा कुरुते जनः । स तद्धागी भवेन्मर्त्त्य इति शास्त्रेषु निश्चितम् ।।१३।।

पुण्योपदेशी सदयः कैतवेश्च विवर्जितः । पापायनविरोधी च चत्वारः केशवोपमाः।।१४।।

ज्ञानं समप्राप्य संसारे यः परेभ्यो न यच्छति । ज्ञानरूपी हरिस्तस्मै प्रसन्न इव नेक्षते।।१५।।

ज्ञानरत्नैश्च रत्नैश्च परसन्तोषकृन्नरः स ज्ञेयः सुमते ! नूनं नररूपधरो हरिः।।१६।।

व्रतेन तपसा किं वा प्राप्स्यते वांच्छितं   फलम् । तत्सर्व श्रोतुमिच्छामि कथयस्व महामते ! ।।१७।।

त्वमेव मुनिशार्दूल ! वेदवेदाङ्गपारगः । त्वदृते नहि वक्तान्यो यतस्त्वं व्यासशासितः ।।१८।।

सूत उवाच-

धन्योऽसि त्वं मुनिश्रेष्ठ ! त्वमेव वैष्णवाग्रणीः। यतः समस्त-भूतानां हितं वांच्छसि सर्वदा ।।१९।।

श्रृणु शौनक ! वक्ष्यामि यत्त्वया श्रोतुमिष्यते। नारदेनैवमुक्तः सन् भगवान् कमलापतिः।।२०।।

सुरर्षये यथैवाह तच्छृणुध्वं समाहिताः ।।२१।।

{इति (१)

श्रीसत्यनारायणव्रतकथायां प्रथमोऽध्यायः}

एकदा नारदो योगी नराऽनुग्रहकाङ्क्षया ।पर्यटन् विविधान् लोकान् मर्त्यलोकमुपागतः ।।२२।।

तत्र द्दष्ट्वा जनाः सर्वे नानादुःखसमन्विताः । नानायोनि समुत्पन्नाः क्लिश्यन्ते पापकर्मभिः।।२३।।

केनोपायेन चैतेषां दुःखनाशो भवेद् ध्रुवम् । इति सञ्चिन्त्य मनसा विष्णुलोकं गतस्तदा ।।२४।।

तत्र नारायणं देवं शुक्लवर्ण चतुर्भुजम् । शङ्खचक्रधरं देवं वनमालाविभूषितम् ।

द्दष्टा तं देवदेवेशं स्तोतुं समुपचक्रमे ।।२५।।

नारद उवाच-

नमस्ते वाङ्मनोतीत-रूपायानन्दशक्तये । आदिमध्यान्तहीनाय निर्गुणाय गुणात्मने।।२६।।

सर्वेषामादिभूताय भक्तानामार्तिनाशिने । श्रुत्वा स्त्रोतं ततो विष्णुर्नारदं  प्रत्यभाषत।।२७।।

 

श्रीभगवानुवाच-

किमर्थमागतोऽसि त्वं किन्ते मनसि वर्तते । कथयस्व महाभाग ! तत् सर्वं कथयामि ते ।।२८।।

नारद उवाच-

मर्त्त्यलोके जनाः सर्वे नानाक्लेशसमन्विताः । नानायोनिसमुत्पन्नाः पच्यन्ते पापकर्मभिः ।।२९।।

तत्कथं शमयेन्नाथ ! लघूपायेन तद्वद । श्रोतुमिच्छामि तत्सर्वं कृपास्ति यदि ते मयि।।३०।।

श्रीभगवानुवाच-

साधु पृष्टं त्वया वत्स ! लोकाऽनुग्रहकाम्यया । यत्कृत्वा मुच्यते मोहात्तच्छृणुष्व वदामि ते।।३१।।

व्रतमस्ति महापुण्यं स्वर्गे भुवि च दुर्लभम् । तव स्नेहान्मया विप्र ! प्रकाशी क्रियतेऽधुना ।।३२।।

सत्यनारायणस्येदं व्रतं सम्यग् विधानतः । कृत्वा सद्यः सुखं भुक्त्वा परत्र मोक्षमालभेत् ।।३३।।

तच्छ्रुत्वा भगवद्वाक्यं नारदः पुनरब्रवीत् ।

नारद उवाच-

किं फलं किं विधानं च कृतं केन व्रतोत्तमम् ।।३४।।

तत् सर्वं विस्तराद् ब्रूहि कदा कार्यं हि तद् व्रतम् ।।३५।।

श्रीभगवानुवाच-

दुःखशोकादिशमनं धनधान्यप्रवर्धनम् । सौभाग्यसन्ततिकरं सर्वत्र विजयप्रदम् ।।३६।।

यस्मिन् कस्मिन् दिने मर्त्त्यो भक्तिश्रद्धासमन्वितः ।

सत्यनारायणं देवं यजेत्तुष्टो निशामुखे । ब्राह्राणैर्बान्धवैश्चैव सहितो धर्मतत्परः।।३७।।

नैवेद्यं भक्तियो दद्यात् सपादं भक्ष्यमुत्तमम् । रम्भाफलं घृतं क्षीरं गोधूमस्य च चूर्णकम्।।३८।।

अभावे शालिचूर्णं वा शर्करा च गुडन्तथा।। सपादं सर्वभक्ष्याणि एकीकृत्य निवेदयेत् ।।३९।।

विप्राय दक्षिणां दद्यात् कथां श्रुत्वा जनैः सह । ततश्च बन्धुभिः सार्धं विप्रेभ्यः प्रतिपादयन् ।।४०।।

प्रसादं भक्षयेद्भक्त्या नृत्यगीतादिकञ्चरेत्। ततस्तु स्वगृहं गच्छेत् सत्यनारायणं स्मरन् ।।४१।।

एवं कृते मनुष्याणां वाञ्छा सिद्धिर्भवेद् ध्रुवम् ।

विशेषतः कलियुगे नान्योपायोऽस्ति भूतले।कथां सम्यक् प्रवक्ष्यामि कृतं येन पुरा द्विज ! ।।४२।।

कश्चित् काशीपुरीवासी विप्र आसीच्च निर्धनः। क्षुधा-तृष्णाऽऽकुलो भूत्वा सततं भ्रमते महीम् ।।४३।।

दुःखितं ब्राह्राणं द्दष्ट्वा भगवान् ब्राह्मणप्रियः । वृद्धब्राह्मणरूपः सन् पप्रच्छ द्विजमादरात्।।४४।।

किमर्थं भ्रमसे विप्र ! महीं कृत्स्नां सुदुःखितः । ततसर्वं श्रोतुमिच्छामि कथ्यतां यदि रोचते ।।४५।।

विप्र उवाच-

ब्राह्मणोऽतिदरिद्रोऽहं भिक्षार्थं भ्रमते महीम् । उपायं यदि जानासि कृपया कथय प्रभो ! ।।४६।।

वृद्धब्राह्राण उवाच-

सत्य नारायणो विष्णुर्वाञ्छितार्थ –फलप्रदः । तस्य त्वं द्विजशार्दूल ! कुरुष्व व्रतमुक्तमम् ।

यत्कृत्वा सर्वदुःखेभ्यो मुक्तो भवति मानवः।।४७।।

विधानश्च व्रतस्याऽस्य विप्रायाऽभाष्य सङ्गतम् । सत्यनारायणो देवस्तत्रैवान्तरधीयत ।।४८।।

ततः प्रातः करिष्यामि व्रतं मनसि चिन्ततम् । इति संचिन्त्य विप्रोऽसौ रात्रौ निद्रां न चालभत् ।।४९।।

ततः प्रातः समुत्थाय सत्यनारायणव्रतम् । करिष्येऽहञ्च संकल्प्य भिक्षार्थमगमद् द्विजः ।।५०।।

तस्मिन्नेव दिने विप्र प्रचुरं द्रव्यमाप्तवान् । तेनैव बन्धुभिः सार्धं सत्यस्य ब्रतमाचरत् ।।५१।।

{सर्वदुःखविनिर्मुक्तः (१) सर्वसम्पत्समन्वितः । सर्वसम्पत्समन्वितः ।

बभूव स द्धिजश्रेष्ठो व्रतस्याऽस्य प्रभावतः । ततः प्रभृतिकालञ्च मासि मासि व्रतं कृतम् ।।५२।। }

सूत उवाच-

एवं नारायणाद्देवाद् व्रतं ज्ञात्वा द्विजोत्तमः । सर्वपापविनिर्मुक्तो  दुर्लभं मोक्षमाप्ननुयात् ।।५३।।

व्रतं चैतद् यदा विप्र! पृथिव्यां सञ्चरिष्यति । तदैव सर्वदुःखं हि नराणाञ्च विनश्यति ।

एवं नारायणेनोक्तं नारदाय महात्मने (१) ।।५४।।

{इति (२)

श्रीसत्यनारायणव्रतकथायां द्वितीयोऽध्यायः }

मयाऽपि कथितं विप्र ! किमन्यत् कथयामि ते ।।५५।।

शौनक उवाच –

तस्माद् विप्र ! व्रतं केन पृथिव्यां चरितं मुने !। तत्सर्वं श्रोतुमिच्छामि श्रद्धाऽस्माकं प्रजापते ।।५६।।

सूत उवाच-

श्रृणुध्वं मुनयः सर्वे तस्माद्येन कृतं भुवि ।।५७।।

एकदा स द्विजवरो यथाविभवविस्तरैः। बन्धुभिः स्वजनैः सार्धं व्रतं कर्त्तुं समुद्यतः।।५८।।

एतस्मिन्नन्तरे काले काष्ठकेतुः समागतः। बहिष्काष्ठञ्च संस्थाप्य विप्रस्य मन्दिरं ययौ।।५९।।

तृष्णया पीडितात्मा स विप्रं दृष्ट्वा तथाविधम् । प्रणिपत्य द्विजं प्राह- किमिदं क्रियते त्वया ।

कृते किं फलमाप्नोति विस्तराद् वद मे प्रभो !।।६०।।

विप्र उवाच-

सत्यनारायणस्येदं व्रतं सर्वेप्सितप्रदम् । दुःखशोकादिशमनं सर्वत्र विजयप्रदम्।।६१।।

धनधान्यसन्ततिकरं सर्वेषामीप्सितप्रदम् । यस्य प्रसादान्मे सर्वं धनधान्यादिकं महत् ।।६२।।

ततस्तु तद् व्रतं ज्ञात्वा काष्ठकर्ताऽतिहर्षितः। पपौ जलं प्रसादञ्च भुक्त्वा तन्नगरं ययौ ।।६३।।

सत्यनारायणं देवं चिन्तयँस्थिरमानसः । काष्ठं विक्रीय नगरे प्राप्स्यते चाऽद्य यद्धनम् ।

तेनैव सत्यदेवस्य व्रतं सम्यक  करोम्यहम्।।६४।।

इति सञ्चित्य मनसा काष्ठं कृत्वा तु मस्तके । जगाम नगरे रम्ये धनिनां यत्र संस्थितिः।।६५।।

तद्दिने काष्ठमूल्यञ्च द्विगुणं प्राप्तवानसौ । ततः प्रसन्नह्रदयः सुपक्कं कदलीफलम् ।।६६।।

शर्करा-घृत-दुग्धञ्च गोधूमस्य च चूर्णकम् । प्रत्येकं तु सपादञ्च गृहीत्वा स्वगृहं ययौ ।।६७।।

ततो बन्धून् समाहूय चकार विधिवद् व्रतम् । तदव्रतस्य प्रभावेण धनपुत्रान्वितोऽभवत् ।

इह लोके सुखं भुक्त्वा चान्ते सत्यपुरं ययौ ।।६८।।

पुनरन्यत् प्रवक्ष्यामि शृणुध्वं मुनिसत्तमाः! ।।६९।।

{इति (३)

श्रीसत्यनारायणव्रतकथायां तृतीयोऽध्यायः}

आसीदुल्कामुखो नाम नृपतिर्बलिनां वरः ।

जितेन्द्रियः सत्यवादी ययौ देवालयं प्रति । दिने-दिने धनं दत्त्वा द्विजान् सन्तोषयन् सुधीः ।।७०।।

भार्या तस्य प्रमुग्धा चसरोजवदना सती । सत्यव्रतं भद्रशीला सिन्धुतीरेऽकरोन्मुने !।।७१।।

एतसिमन्नन्तरेतत्र साधुरेकः समागतः।वाणिज्यार्थं बहुधनैरत्नाद्यैः परिपूरिताम् ।।७२।।

नावंसंस्थाप्य तत्तीरे जगाम तत्तटं प्रति । द्दष्टा तत्र व्रतं सम्यक् पप्रच्छ विनयान्वितः।।७३।।

साधुरुवाच- किमिदं कुरुषे राजन् !भक्तियुक्तेन चेतसा । प्रकाशं कुरु तत् सर्व श्रोतुमिच्छामि साम्प्रतम् ।।७४।।

राजोवाच –पूजनं क्रियते साधो !विष्णोरतुलतेजसः । व्रतं च स्वजनैः सार्ध पुत्रादि प्राप्स्यतेमया ।।७५।।

प्रत्युवाच –ततो नत्वा राजानं मधुरं वचः । साङ्गं कथय मे राजन् ? व्रतमेतत् करोम्यहम्।।७६।।

ममापि सन्ततिर्नास्ति सत्यमेतद् ब्रवीम्यहम् । ततो विधानतो राजा कथयामास तद् व्रतम् ।।७७।।

राज्ञो मुखाद् व्रतं श्रुत्वा परं हर्षमवाप्तवान् । ततो निवर्त्य वाणिज्यात् सानन्दो गृहमागतः ।।७८।।

भार्यायै कथितं सर्वं व्रतञ्च सन्ततिप्रदम् ।तदा व्रतं करिष्यामि यदा मे सन्ततिर्भवेत् ।।७९।।

कस्मिश्निद् दिवसे तस्य भार्या लीलावती सती । गर्भयुक्ताऽऽन्दचित्ताऽभवद्धर्मपरायणा ।।८०।।

पूर्णे गर्भे ततो जाता बालिका चाऽतिनिर्मला । दिने दिने वर्धमाना शुक्लपक्षे यथा शशी।।८१।।

ततो वणिक् सुतायाश्र्च जातकर्मादिकं चरन् । नाम्ना कलावती चेति तन्नाभकरणं कृतम् ।।८२।।

ततो लीलावती प्राह स्वामिनं मधुरं वचः । न करोषि किमर्थ वा पुरा यच्च प्रतिश्रुतम् ।।८३।।

विवाहसमयेऽप्यस्याः करिष्यामि व्रतं प्रिये!। इति भार्या समाश्र्वास्य जगाम नगरं प्रति ।।८४।।

ततः कलावती कन्या वर्द्धिता पितवेश्मनि । द्दष्टा कन्यां ततः साधुर्नगरे बन्धुभिः सह ।।८५।।

मन्त्रयित्वा द्रूतं प्रेषयामास धर्मवित् । विवाहार्थ च कन्याया वरं श्रेष्ठं विचारयन् ।।८६।।

तेनाऽऽज्ञप्तश्र्च दूतोऽसौ काञ्चनं नगरं ययौ । तस्मादेकं वणिकपुत्रं समादायागतो हि सः ।।८७ ।।

द्दष्टा तु सुन्दरं बालं वणिक्पुत्रं गुणान्वितम् । ज्ञातिभिर्बन्धुभिः सार्ध परितुष्टेन चेतसा ।।८८।।

दत्तवान् साधुपुत्राय कन्यां विधिविधानतः । ततोऽभाग्यवशात्तेन विस्मृतं व्रतमुत्तमम् ।।८९।। विवाहसमयेऽप्यस्यास्तेन रुष्टोऽभवद् विधुः ।।९०।।

ततः कालेन कियता निजकर्मविशारदः ।।९१।। {

वाणिज्यार्थं गतः शीघ्रं जामात्रा सहितो वणिक् । रत्नसारपुरे रम्ये गत्वा सिन्धुसमीपतः।।}

वाणिज्यं कुरुते साधुर्जामात्रा श्रीमता सह । पुरीन्निर्माय नगरे चन्द्रकेतोर्नृपस्य च ।।९२।।

एतस्मित्रेव काले तु सत्यनारायणः प्रभुः । भ्रष्टप्रतिज्ञमालोक्य शापं तस्मै प्रदत्तवान्।

श्वः प्रभृति कियत् कालं महद् दुःखं भविष्यति ।।९३।।

तस्मिन्नेव दिने राज्ञो धनमादाय तस्करः । तेनैव वर्त्मना यातः पृष्ठदेशं विलोकयन् ।।९४।। {

तेन दूतान् समाहूय निजमाज्ञाञ्च दत्तवान् ।}  तत्पश्चाद्धावकान् दूतान् द्दष्टा भीतेन चेतसा ।

धनं संस्थाप्य तत्रैव गतः शीघ्रमलक्षितः ।।९५।।

ततो दूताः समायाता यत्रास्ते सज्जनो वणिक् । द्दष्टा नृपधनं तत्र बध्वा दूता वणिक सुतौ ।।९६।।

हर्षयुक्ता धावमाना ऊचुर्नृपसमीपतः । तस्करौ द्वौ समानीतौ विलोक्याऽऽज्ञापय प्रभो !।।९७।।

तेनाज्ञप्तस्ततः शीघ्रं द्दढं बध्वा तु तावुभौ । स्थापितव्यौ महादुर्गे कारागारेऽविचारयन्।।९८।।

{इति (४)

श्रीसत्यनारायणव्रतकथायां चतुर्थोऽध्यायः}

मायया सत्यदेवस्य न श्रुतञ्च तयोर्वचः । ततस्तयोर्धनं राज्ञा गृहीतं चन्द्रकेतुना।।९९।।

तच्छापाच्च तयोर्गेहे भार्या च दुःखिताऽभवत् ।चौरेणापहृतं सर्वं गृहे यच्च स्थितं धनम्।।१००।।

आघिव्याधिसमायुक्ता क्षुत्पिपासाऽतिपीडिता । अन्नचिन्तापरा भूत्वा भ्रमते च गृहे गृहे ।।१०१।।

तथा कलावती कन्या भ्रमते प्रतिवासरम् । एकस्मिन् दिवसे रात्रौ क्षुधार्ता द्विजमन्दिरम्।।१०२।।

गत्वाऽपश्यद् व्रतं तत्र सत्यनारायणस्य च ।उपविश्य कथां श्रुत्वा वरं संप्रार्थ्य वाञ्छितम्।।१०३।।

प्रसादं भक्षणं कृत्वा ययौ रात्रौ गृहं प्रति । ततो लीलावती कन्यां भर्त्सयामास तां भृशम् ।।१०४।।

पुत्रि ! रात्रौ स्थिता कुत्र किं ते मनसि वर्त्तते । द्विजालये व्रतं मातः! द्दष्टंवाञ्छितसिद्धिदम् ।

तच्छ्रुत्वा कन्यकावाक्यं व्रतं कर्तुं समुद्यता ।।१०५।।

ससुता सा वणिग्भार्या सत्यनारायस्य च ।व्रतं हि कुरुते साध्वी बन्धभिः स्वजनैः सह ।।१०६।।

भर्तृजामातरौ क्षिप्रमागच्छेतां निजाश्रमम् ।इति देवं वरं याचे सत्यदेवं पुनःपुनः ।।१०७।।

अपराधञ्च भर्तुमें जामातुःक्षन्तुमर्हसि । व्रतेन तेन तुष्टोऽसौ सत्यनारायणः प्रभु ।।१०८।।

दर्शयामास स्वप्ने हि चन्द्रकेतुं नृपोत्तमम् । बन्धनान्मोचय प्रातर्वणिजौ नृपसत्तम ! ।।१०९।।

देयं धनञ्च तत्सर्व विधियुक्तं हृतञ्च यत् । नो चेत्त्वां नाशयिष्यामि सराज्यधनपुत्रकम् ।।११०।।

एवमाभाष्य राजानं ध्यानगम्योऽभवत्  प्रभुः । ततःप्रभातसमये राजा च स्वजनैः सह ।।१११।।

उपविश्य सभामध्ये प्राह पौरजनान् प्रति । बद्धौ महाजनौ शीघ्रं मोचयध्वं वणिक्सुतौ ।।११२।।

इति  राज्ञो वचः श्रुत्वा मोचयित्वा महाजनौ । समानीय नृपस्योग्रे प्रोचस्ते विनयान्विताः ।।११३।।

आनीतौ द्वौ वणिक्पुत्रौ मुक्तौ निगडबन्धनात् । ततो महाजनौ नत्वा चन्द्रकेतुं नृपोत्तमम् ।।११४।।

स्मरन्तौ पूर्ववृत्तान्तं विस्मयाद् भयविह्रलौ राजा वणिक्सुतौ वीक्ष्य प्रोवाच सादरं वचः ।।११५।।

दैवात् प्राप्तं महददुःखमिदानीं नास्ति ते भयम् । इदानीं कर्तुमुचितं क्षौरकर्मादिकञ्च यत् ।।११६।।

ततो नृपाऽऽज्ञया सर्व नित्यकृत्यं समाप्य च । शुक्लाम्बरधरौ शीघ्रं सभामध्ये समागतौ ।।११७।।

ततो नृपवरः श्रीमान् स्वर्णरत्नविभूषणैः । पुरस्कृत्य वणिक्पुत्रौ वचसा प्रीणयन् भृशम्।।११८।।

पुरानीतञ्च यद् द्रव्यं द्विगुणीकृत्य दत्तवान्। प्रोवाच तौ ततो राजा गच्छ साधो !निजाश्रमम् ।।११९।।

राजानं प्रणिपत्याऽऽह गन्तव्यं त्वत्प्रसादतः ।।१२०।।

इति (५)

श्रीसत्यनारायणव्रतकथायां प़ञ्चमोऽध्यायः}

सूत उवाच –

यात्रां कृत्वा ततः साधुर्मङ्गलाचारपूर्विकाम् । ब्राह्मणाय धनं दत्वा सहर्षं नगरं ययौ ।।१२१।।

कियद् दूरे गते साधौ सत्यनारायणः प्रभुः । जिज्ञासां कृतवान् साधो ! किमस्ति तरणौ तव ।।१२२।।

ततो महाजनो मत्तो हेलया च प्रहस्य

च । कथं पृच्छसि भो दण्डिन् ! मुद्रां किं लब्धुमिच्छसि ।।१२३।।

लतापत्रादिकं चैव वर्तते तरणौ मम । निष्ठुरं च वचः श्रुत्वा सत्यं भवतु त्वद्वचः ।।१२४।।

एवमुक्त्वा गतः शीघ्रं दण्डी तस्य समीपतः । गते दण्डिनि साधुश्च कृतनित्यक्रियस्तदा ।।१२५।।

उत्थितान्-तरणीं द्दष्टा विस्मयं परमं ययौ । लतापत्रादिकं द्दष्टा मूर्च्छितो न्यपतद् भुवि ।।१२६।।

लब्धसंज्ञो वणिक्पुत्रः ततश्चिन्तान्वितोऽभवत् । जामाता दुहितुः कान्तो वचनञ्चेदमव्रवीत् ।।१२७।।

किमर्थं कुरुषे शोकं शापो दत्तश्च दण्डिना । शक्यते तेन सर्व हि कर्तु हर्तुं न संशयः ।।१२८।।

अतस्तच्छरणं याहि वाञ्छितार्थो भविष्यति । जामातुश्च वचः श्रुत्वा तत्सकाशं गतस्तदा ।।१२९।।

द्दष्टा तु दण्डिनं भक्त्या नत्वा प्रोवाच सादरम् । मया दुरात्मना देव ! मुग्धेन तव मायया ।।१३०।।

यदुक्तं तद्वचो नाथ ! दोषम्मे क्षन्तुमर्हसि । यतः परहिताः सर्वे क्षमासारा हि साधवः।।१३१।।

पुनः पुनस्ततो नत्वा रुरोद शोकविह्वलः । तमुवाच ततो दण्डी विलपन्तं विलोक्य च ।।१३२।।

मा रोदीः श्रृणु मे वाक्यं मम पूजाबहिर्मुखः । मामवज्ञाय दुर्बुदधे ! लब्धं दुःखं मुहुर्मुहुः ।।१३३।।

तच्छ्रुत्वा भगवद्वाक्यं स्तुतिं कर्तु समुद्यतः।।१३४।।

साधुरुवाच-त्वन्माया मोहिताः सर्वे ब्रह्राद्यास्त्रिदिवौकसः । न जानन्ति गुणं रूपं तवाश्चर्यमिदं विभो ।।१३५।।

मूढोऽहं प्राक् कथं जाने मोहितस्तव मायया । प्रसीद पूजयिष्यामि यथाविभवविस्तरैः ।।१३६।।

पुत्रं वित्तं च संवृत्तिं पाहि मां शरणागतम्।।१३७।।

श्रुत्वा स्तवादिकं वाक्यं परितुष्टो जनार्दनः । वरञ्च वाञ्छितं दत्वा तत्रैवाऽन्तरधीयत।।१३८।।

ततोऽसौ नावमारुह्रा द्दष्टा रत्नादिपूरिताम् ।

कृपया सत्यदेवस्य सफलं वाञ्छितं मम ।  इत्युक्त्वा स्वजनैः सार्ध पूजां कृत्वा यथाविधि ।।१३९।।

हर्षेण महता साधुः प्रयाणञ्चाकरोत्तदा । नावं संवाह्रा वेगेन स्वदेशमगमत्तदा ।।१४०।।

ततो जामातरं प्राह पश्य वत्स ! पुरीं मम । दूतञ्च प्रेषयामास निजवित्तस्य रक्षकम् ।।१४१।।

ततोऽसौ नगरं गत्वा साधोर्भार्यां विलोक्य च । प्रोवाच वाञ्छितं वाक्यं नत्वा वद्धाञ्जलिस्तदा ।।१४२।।

तटे तु नगरस्यैव जामात्रा सहितो वणिक् । आगतो बन्धुवर्गैश्च धर्नैर्बहुविधैस्तथा ।।१४३।।

श्रुत्वा दूतस्य तद्वाक्यं महाहर्षयुता सती । सत्यपूजां ततः कृत्वा प्रोवाच तनुजां प्रति ।

व्रजामि शीघ्रमाऽऽगच्छ साधुसन्दर्शनाय च ।।१४४।।  

इति मातृवचः श्रुत्वा व्रतं कृत्वा समाप्य च । प्रसादञ्च परित्यज्य गता सापि पतिं प्रति ।।१४५।।

तेन रुष्टः सत्यदेवो भर्तारं तरणिं तथा । संहृत्य च धनैः सार्धं जले तस्मिन्  न्यमज्जयत् ।।१४६।।

ततः कलावती कन्या नाऽवलोक्य निजं पतिम् । शोकेन महता तत्र रुदन्ती चाऽपतद् भुवि ।।१४७।।

द्दष्टा तथाविधां कन्यां न द्दष्टा तत्पतिं तरिम् । भीतेन महता साधुः किमाश्चर्यमिदं त्विति ।

चिन्त्यमानाश्च ते सर्वे बभूवुस्तरिवाहकाः ।।१४८।।

ततोलीलावती साध्वी द्दष्टा च विह्वला सती । विललापाऽतिदुःखेन भर्तारञ्चेदमब्रवीत् ।।१४९।।

इदानीं नौकया सार्धमदृश्योऽभूदलक्षितः । न जाने केन देवेन हेलया चाऽपहारितः ।।१५०।।

सत्यदेवस्य माहात्म्यं किं वा ज्ञातुं न शक्यते । इत्युक्तवा विललापाऽथ तत्रत्यैः स्वजनैः सह ।

ततो लीलावती कन्यां क्रोडे कृत्वा रुरोद च ।।१५१।।

ततः कलावती कन्या नष्टे स्वामिनि दुःखिता । गृहीत्वा पादुकां तस्य अनुगन्तुं मनोदधे ।।१५२।।

कन्यायशश्चरितं द्दष्ठा सभार्यः सज्जनो वणिक् । अतिशोकेन सन्तप्तश्चिन्तयामास धर्मवित् ।।१५३।।

हृतो हि सत्यदेवेन जामाता सत्यमायया । सत्यपूजां करिष्यामि यथाविभवस्तरेः ।।१५४।।

इति सर्वान् समाहूय कथयँश्च मनोरथम् । नत्वा च दण्डवद् भूभौ सत्यदेवं पुनःपुनः ।।१५५।।

ततस्तुष्टः सत्यदेवो गगनाद् वणिजं प्रति । जगाद वचनञ्चेदं नैवेद्यञ्चाऽवमन्य च ।

आगता स्वामिनं द्रष्टुमतोऽद्दश्योऽभवत् पतिः ।।१५६।।

गृहं गत्वा प्रसादञ्च भुक्ता चायाति चेत् पुनः । लब्धभर्त्री सुता साधो ! भविष्यति न संशयः ।।१५७।।

ततस्तत् प्राणदं वाक्यं श्रुत्वा गगनमण्डले । क्षिप्रं तदा गृहं गत्वा प्रसादं प्रतिगृह्य च।

अपश्यत् पुनरागत्य पतिं नाविजनैः सह ।।१५८।।

ततः कलावती तुष्टा जगाद पितरं प्रति । एहि तात ! गृहं यामो विलम्बं कुरुषे कथम् ।।१५९।।

तच्छ्रु त्वा कन्यकावाक्यं सन्तुष्टोऽभूद् वणिक्सुतः । पूजनं सत्यदेवस्य कृत्वा बहुविधानतः ।

धर्नैर्बन्धुजनैः सार्ध जगाम निजमन्दिरम्।।१६०।।

मासी मासी च संक्रान्त्यां पूजां कृत्वा यथाविधिः । इह लोके सुखं भुक्त्वा चाऽन्ते सत्यपुरं ययौ ।।१६१।।

अथ चान्यत् प्रवक्ष्यामि शृणुध्वं मुनिसत्तमाः ! ।।१६२।।

इति (६)

श्रीसत्यनारायणव्रतकथायां षष्ठोऽध्यायः}

आसीद् वंशध्वजो राजा प्रजापालनतत्परः । प्रसादं सत्यदेवस्य त्यक्तवा दुःखमवाप सः।।१६३।।

एकदा स वनं गत्वा हत्वा बहुविधान् मृगान्। आगत्य वटमूले च द्दष्टा सत्यस्य पूजनम्।।१६४।।

गोपाः कुर्वन्ति सन्तुष्टाः नृत्य-गीतपरायणाः ।{राजा द्दष्टा तु दर्पेण नाऽऽगतो न ननाम सः} ।।१६५।।

ततो गोपगणाः सर्वे प्रसादं नृपसन्निधौ । संस्थाप्य पुनरागत्य भुक्तवा सर्वैर्यथेप्सितम्।।१६६।।

तत्प्रसादं परित्यज्य राजा दुःखमवाप्तवान् । तस्य पुत्रशतं नष्टं धनधान्यादिकञ्च यत्  ।।१६७।।           

     सत्यदेवेन तत्सर्व नाशितं मम निश्चतम् ।  अतस्तत्रैव गच्छामि यत्र देवस्य पूजनम्    ।।

मनसेति विनिश्चत्य ययौ गोपालसन्निधिम् ।। } ततोऽसौ सत्यदेवस्य पूजां गोपगणैः सह ।

भक्ति-श्रद्धान्वितो भूत्वा चकार विधिना नृपः ।।१६८।।

तदव्रतस्य प्रभावेण धन-पुत्रान्वितोऽभवत् । इह लोके सुखं भुक्त्वा पश्चात् सत्यपुरं ययौ ।।१६९।।

। इति श्रीस्कन्दपुराणे रेवाखण्डे श्रीसत्यनारायणव्रतकथा समाप्ता ।

 

अथ कथामाहात्म्यम्

{य इदं कुरुते सत्य –व्रतं परमदुर्लभम् । श्रृणोति च कथां पुण्यां भक्तियुक्तेन चेतसा।।१।।

धन्य धान्यादिकं तस्य भवेत् सत्यप्रसादतः । दरिद्रो लभते वित्तं बद्धो मुच्येत वन्धनात् ।।२।।

भीतो भयात् प्रमुच्येत सत्यमेव न संशयः ।ईप्सितं च फलं भुक्त्वा चान्ते सत्यपुरं व्रजेत।।३।।

इति वः कथितं विप्राः ! सत्यनारायणव्रतम् । यत् कृत्वा सर्वदुःखेभ्यो मुक्तो भवति मानवः ।।४।।

विशेषतः कलियुगे सत्यपूजा फलप्रदा । केचित् कालं वदिष्यन्ति सत्यमीशं तमेव हि।।५।।

सत्यनारायणं केचित् सत्यदेवं तथाऽपरे । नाना रूपधरो भूत्वा सर्वेषामीप्सितप्रदः।।६।।

भविष्यति कलौ विष्णुः सत्यरूपी सनातनः । य इदं पठते नित्यं शृणोति मुनिसत्तमाः! ।

तस्य नश्यन्ति पापानि सत्यदेवप्रसादतः ।।७।। }

इति  श्रीसत्यनारायणव्रतकथायां सप्तमोऽध्यायः

श्रीसत्यनारायणव्रतकथापद्धतिः समाप्ता ।

।। आरती ।।

 

​ऊँ जय जगदीश हरे-


ऊँ जय जगदीश हरे,स्वामी जय जगदीश हरे, भक्त जनों के संकट,क्षण में दूर करें ।
ऊँ जय जगदीश हरे ।।


जो ध्यावे फल पावे, दुःख बिन से मन का, सुख सम्पति घर आवे,कष्ट मिटे तन का ।
ऊँ जय जगदीश हरे ।।


मात पिता तुम मेरे,शरण गहूँ मै किसकी, तुम बिन और न दूजा,आस करूं मैं जिसकी ।
ऊँ जय जगदीश हरे ।।

 

तुम पूरण परमात्मा,तुम अन्तर्यामी, पारब्रह्रा परमेश्वर, तुम सबके स्वामी ।
ऊँ जय जगदीश हरे ।।


तुम करूणा के सागर,तुम पालनकर्ता मै मूरख फलकामी,मै सेवक तुम स्वामी,कृपा करो भर्ता ।
ऊँ जय जगदीश हरे ।।


तुम हो एक अगोचर,सबके प्राणपति, किस विधि मिलूं दयामय,तुमको मैं कुमति ।
ऊँ जय जगदीश हरे ।।


दीन बन्धु दुःख हर्ता, ठाकुर तुम मेरे, अपने हाथ उठाओ,द्वार पड़ा तेरे ।
ऊँ जय जगदीश हरे ।।


विषय-विकार मिटाओ,पाप हरो देवा, श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ, सन्तन की सेवा ।


ऊँ जय जगदीश हरे

अथ विसर्जनम्

तत्र प्रथममारार्तिक्यम् (१)-

ऊँ चन्द्रादित्यौ च धरणी विद्युदग्निनस्तथैव च । त्वमेव सर्वज्योतींषि आर्तिक्यं प्रतिगृह्यताम् ।।

इदमार्तिक्यं साङ्गाय सपरिवाराय भगवते श्रीसत्यनारायणाय नमः ।

 

अर्घा में जल लेकर  यह मंत्र पढेगें

 

ऊँ चन्द्रादित्यौ च धरणी विद्युदग्निनस्तथैव च । त्वमेव सर्वज्योतींषि आर्तिक्यं प्रतिगृह्यताम् ।।

इदमार्तिक्यं साङ्गाय सपरिवाराय भगवते श्रीसत्यनारायणाय नमः ।

और भगवान सत्यानारण के कलश पर देंगे

 

 

अथ प्रदक्षिणम् (२)-

ओं यानि कानि च पापानि ब्रह्महत्यासमानि च ।  तानि तानि प्रणश्यन्ति प्रदक्षिण ! पदे पदे ।।

 

शङ्ख में जल लेकर  यह मंत्र पढेगें

ओं यानि कानि च पापानि ब्रह्महत्यासमानि च । तानि तानि प्रणश्यन्ति प्रदक्षिण ! पदे पदे ।।

और भगवान सत्यानारण के कलश पर देंगे ।

 

यह प्रक्रिया चार बार करें ।

ओं गणपत्यादि/सूर्यादि पञ्चदेवताः ! पूजिताः स्थ क्षमध्वम्, स्वस्थानं गच्छत ।

 

अर्घा में जल लेकर  यह मंत्र पढेंगे और क्रम से भगवान गणपत्यादि/सूर्यादि पञ्चदेवता पर डालें।

 

ओं भगवन् विष्णो ! पूजितोऽसि प्रसीद क्षमस्व, स्वस्थानं गच्छ }

 

अर्घा में जल लेकर  यह मंत्र पढेंगे ओं भगवन् विष्णो ! पूजितोऽसि प्रसीद क्षमस्व, स्वस्थानं गच्छ } 

और क्रम से भगवान विष्णु पर डालें।

ओं लक्ष्मि ! पूजितासि प्रसीद, मयि रमस्व ।            

                                     

अर्घा में जल लेकर  यह मंत्र पढेंगे ओं लक्ष्मि ! पूजितासि प्रसीद, मयि रमस्व ।   

और क्रम से भगवती लक्ष्मी पर डालें।

ओं सरस्वति ! पूजितोऽसि प्रसीद, मयि रमस्व।

अर्घा में जल लेकर यह मंत्र पढेंगे रस्वति ! पूजितोऽसि प्रसीद, मयि रमस्व।

और क्रम से भगवती सरस्वती पर डालें।

 

ओं आदिपुरुष ! पूजितोऽसि प्रसीद, क्षमस्व स्वस्थानं गच्छ।

 

अर्घा में जल लेकर यह मंत्र पढेंगे ओं आदिपुरुष ! पूजितोऽसि प्रसीद, क्षमस्व स्वस्थानं गच्छ।

और क्रम से भगवान आदिपुरुष पर डालें।

ओं अनादिपुरुष ! पूजितोऽसि प्रसीद, क्षमस्व स्वस्थानं गच्छ।

 

अर्घा में जल लेकर  यह मंत्र पढेंगे ओं अनादिपुरुष ! पूजितोऽसि प्रसीद, क्षमस्व स्वस्थानं गच्छ।

और क्रम से भगवान अनादिपुरुष पर डालें।

 

ओं इन्द्रादिदशदिकपालाः ! पूजिताः स्थ क्षमध्वम्,स्वस्थानं गच्छत ।

 

अर्घा में जल लेकर  यह मंत्र पढेंगे ओं इन्द्रादिदशदिकपालाः ! पूजिताः स्थ क्षमध्वम्,स्वस्थानं गच्छत ।

और क्रम से भगवान इन्द्रादि दशदिक्पाल पर डालें।

 

ओं नवग्रहाः पूजिताः स्थ क्षमध्वम्, स्वस्थानं गच्छत ।

अर्घा में जल लेकर  यह मंत्र पढेंगे ओं नवग्रहाः पूजिताः स्थ क्षमध्वम्, स्वस्थानं गच्छत ।

और क्रम से भगवान नवग्रह पर डालें।

 

ओं ससीत-रामलक्ष्मणौ पूजितौ स्थः क्षमेयाथां स्वस्थानं गच्छतम्।

 

अर्घा में जल लेकर  यह मंत्र पढेंगे ओं ससीत-रामलक्ष्मणौ पूजितौ स्थः क्षमेयाथां स्वस्थानं गच्छतम्।

और क्रम से भगवान ससीत-रामलक्ष्मण पर डालें।

 

ओं हनुमत् ! पूजितोऽसि प्रसीद, क्षमस्व स्वस्थानं गच्छ।

 

अर्घा में जल लेकर  यह मंत्र पढेंगे ओं हनुमत् ! पूजितोऽसि प्रसीद, क्षमस्व स्वस्थानं गच्छ।

और क्रम से भगवान हनुमान पर डालें।

 

ओं भगवन् श्रीसत्यनारायण ! पूजितोऽसि,प्रसीद,क्षमस्व स्वस्थानं गच्छ ।

 

अर्घा में जल लेकर  यह मंत्र पढेंगे ओं भगवन् श्रीसत्यनारायण ! पूजितोऽसि,प्रसीद,क्षमस्व स्वस्थानं गच्छ ।

और क्रम से भगवान सत्यनारायण पर डालें।

 

ओं गौरीशङ्करौ पूजितौ स्थः क्षमेयाथाम् स्वस्थानं गच्छतम् ।

 

अर्घा में जल लेकर  यह मंत्र पढेंगे ओं गौरीशङ्करौ पूजितौ स्थः क्षमेयाथाम् स्वस्थानं गच्छतम् ।

और क्रम से भगवान गौरीशङ्कर पर डालें।

 

(ओं ब्रह्रान् !पूजितोऽसि, प्रसीद, क्षमस्व, स्वस्थानं गच्छ )।

 

अर्घा में जल लेकर  यह मंत्र पढेंगे (ओं ब्रह्रान् !पूजितोऽसि, प्रसीद, क्षमस्व, स्वस्थानं गच्छ )।

और क्रम से भगवान ब्रह्मा पर डालें।

अथ दक्षिणादानम्

 

कुशत्रय-तिल जलान्यादाय–

 

  ऊँ अस्यां रात्रौ कृतैतत् साङ्ग-सायुध - सवाहन-सपरिवार-भगवन्-श्रीसत्यनारायणपूजन-तत्कथा-श्रवणकर्म– प्रतिष्ठा-र्थम् - एतावद्-द्रव्यमूल्यक-हिरण्यमग्निनदैवतं यथानामगोत्राय ब्राह्राणाय दक्षिणामहन्ददे ।ऊँ स्वस्तीति प्रतिवचनम् (१) ।

डॉ ​अखिलेश कुमार मिश्रा, सहायक प्रोफ़ेसर, वेद विभाग, 

कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय, दरभंगा, बिहार

डॉ वरुण कुमार झा , सहायक प्रोफ़ेसर, ज्योतिष विभाग, 

कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय, दरभंगा, बिहार 

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