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श्री सिद्धि विनायक पूजा विधि

पूजन सामग्री-

 

गणेश जी का मुर्ति वस्त्र- (धोती, गमछा, जनेउ-3 गंगाजल, इत्यादि), कलश- 1. ढ़ाकन-1. पञ्चपल्लव-आम,बड़,पीपल,पाकरि, गुल्लरि- 1x1 नारियल- 1 एकरंगालाल 1¼ मीटर सर्वोषधि-1 पञ्चरत्न-1 सप्तमृतिका-1 श्रीखण्ड चन्दन, अष्टगंध चन्दन, अबीर, सिन्दुर, अक्षत-500ग्रा., जौ-500 ग्रा, तील-50ग्रा.

तिलतेल-500ग्रा., दीप-1,अगरबती-1 बंडल, सलाई, रुईवाती, फूलवाती, कपुर, इत्र,पंचमेवा-500ग्रा., फल मिठाई-5 प्रकार का, सुपारी-100ग्रा. , लौंग,इलाइची, पान, पंचामृतवास्ते-गाय के दुध,दही, घी, मधु, शक्कर,आसन, केराक पात,अर्घा-पंचपात्र, घण्टी, सराई,शंख, चामर, घण्टा,भोग के लिये खीर, पुआ इत्यादि फूल,विल्वपत्र, दूर्वा, तुलसी

एक दिन पहले निरामिस (बगर प्याज और लहसन का ) एक भुक्त भोजन कर संयमित रह कर प्रातः काल स्नानादि से निवृत  होकर पूजा स्थान में आकर प्रतिमा को उच्चासन पर रखकर फूलमालादि से सजावट कर आगे में कलश रख केला पात लगा कर, दाहिनें में अक्षत तील,जौ, फूल,विल्वपत्रादि रखें ।

एक पत्तल पर प्रसाद रखें । कलश के आगे दीप एवं बगल में अगरबती रखें ।

अपने से वायाँ भाग अर्घा पञ्चपात्र एवं घंटी रखें । आगे के पत्ता पर पूजा करें ।

1. हाथ में त्रिकुशा(तेकुसा) अंगूठी पहन कर जल लेकर- आचमनि करें । ऊँ केशवाय नमः, ऊँ माधवाय नमः, ऊँ नारायनाय नमः ।

2. हाथ में जल लेकर- ऊँ अपवित्र पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा । यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्ष स वाह्यभ्यनतरः शुचिः । ऊँ पुण्डरीकाक्ष पुनातु ।

3. अक्षत लेकर पञ्च देवता का पूजन करें – ऊँ भूर्भुव स्वः श्री सूर्यादि पञ्चदेवता इहागच्छत इहतिष्ठत । पात पर छोड़े ।

जल लेकर- एतानि पाद्यार्घचमनीय स्नानीय पुनराचमनीमानि ऊँ श्री सूर्यादि पञ्चदेवताभ्यो नमः ।

तीन वार दें ।

पुष्पचन्दन लेकर- इदम स पुष्प चन्दन ऊँ श्री सूर्यादि पञचदेवता भ्योनमः -3 वार

अक्षत लेकर- इदम अक्षतं ऊँ श्री सूर्यादि पञ्चदेवताभ्योनमः -3 वार

पुष्प लेकर- एतानि पुष्पानि ऊँ श्री सूर्यादि पञ्चदेवताभ्यो नमः -3 वार

विल्वपत्र लेकर- इदम विल्वपत्र ऊँ श्री सूर्यादि पञ्चदेवताभ्यो नमः -1 वार

दुर्वा लेकर- इदम दुर्वादलम ऊँ श्री सूर्यादि पञ्चदेवताभ्यो नमः -1वार

जल लेकर–धूप दीप नैवेध का भावना करते हुए- एतानि गंध पुष्प –धूप – दीप- ताम्बूल- यथाभाग नानाविध नैवेद्यानि ऊँ श्री सूर्यादि पञ्चदेवताभ्यो नमः।

जल लेकर-  इदम आचमनीयम् ऊँ श्री सूर्यादि पञ्चदेवताभ्यो नमः ।

फूल लेकर- एष पुष्पाञ्जलि ऊँ श्री सूर्यादि पञ्चदेवतभ्यो नमः ।

विष्णु पूजा-

तिल लेकर- ऊँ भूर्भुवः स्वः भगवन विष्णो इहागच्छ इहतिष्ठ । पात पर दूसरे जगह  तिल छोड़े ।

जल लेकर- ऊँ एतानि पाद्यार्चमनीय स्नानीय पुनराचमनीयानी भगवते श्री विष्णवे नमः।  3 वार

पुष्प चन्दन- इदम सपुष्प चन्दन ऊँ भगवते श्री विष्णवें नमः । 3 वार

तिल+जौ लेकर- एते यवतिला ऊँ भगवते विष्णवे नमः। -3 वार

पुष्प लेकर- एतानि पुषपाणि ऊँ भगवते श्री विष्णवे नमः। 3 वार

तुलसी – एतानि तुलसी पत्राणि ऊँ भगवते श्री विष्णवे नमः। 1वार

विल्वपत्र – इदं विल्वपत्रं ऊँ भगवते श्री विष्णवे नमः ।

दुर्वा- इदं दुर्वादलं ऊँ भगवते श्री विष्णवे नमः

जल लेकर- एतानि गंध पुष्प धूप दीप ताम्बूल यथा भाग नानाविध नैवैद्यानि ऊँ भगवते श्री विष्णवे नमः।

पुनः जल लेकर- इदं आचमनीयं ऊँ भगवते श्री विष्णवे नमः ।

पुष्प लेकर- नमोस्वन्ताप सहस्रमूर्तये सहस्रपादाक्षिशिरोरुवाहवे सहस्र नाम्ने पुरुषायशास्वते सहस्र कोटि युग धारिणे नमः एष पुष्पांजली ऊँ भगवते श्री विष्णवे नमः ।

 

 

अब हाथ में पान का पत्ता तिल, सूपारी, द्रव्य ( रुपया) जल एवं कुश (तेकुसा) लेकर- संकल्प करें -  ऊँ अद्य भाद्रे मासि शुक्लें पक्षे चतुर्थ्यां तिथौ अमुकगोत्रस्य अमुक शर्मणो विद्या धन- जय  पुत्रपौत्रादि सौभाग्य लाभ पूर्वक श्री सिद्धि विनायक प्रीतिकामः श्री सिद्धि विनायक पूजनमहं करिष्ये । इस मंत्र को पढ़ कर पत्ते पर रख दें ।

कलश स्थापन करें – बालु वेदी पर जौ डालकर उसपर कलश में जलभर कर रखें ।

अक्षत लेकर- ऊँ भूर्भुवः स्वः कलशाधार शक्ते इहागच्छ इहतिष्ठ । अक्षत को कलश के नीचे भूमि पर छोड़े ।

जल लेकर – एतानि पाद्यादीनि एषोऽर्घ ऊँ कलशाधार शक्त्तये नमः ।

पुष्प चन्दन- इदं सपुष्प चन्दन कलशाधार शक्त्ये नमः ।

अक्षत- इदं अक्षतं ऊँ कलशाधार शक्त्तये नमः ।

पुष्प- एतानि पुष्पाणि कलशाधार शक्त्तये नमः ।

विल्वपत्र- इदं विल्वपत्रं ऊँ कलशाधार शक्त्ये नमः ।

दुर्वा- इदं दुर्वादलं ऊँ कलशाधार शक्त्तये नमः ।

जल लेकर- एतानि गंधपुष्प धूप-दीप ताम्बूल यथाभाग नानाविध नैबेद्यानि ऊँ कलशाधार शक्त्ये नमः ।

जल – इदं आचमनीय ऊँ कलशाधार शक्त्तये नमः। 

फूल- एष पुष्पांजली कलशाधार शक्त्तये नमः।

कलश के नीचे भूमि का स्पर्ष करें- ऊँ भूरसि भूमिरस्यदितिरासि विश्वधाया विश्वस्य भुवनस्य धर्त्री पृथिवी महिग्वंसीः।

गाय के गोबर लेकर- ऊँ मानस्तोके तनये मान आयुषि मानो गोषु मानोश्वेषुरीरिषः। मोनो बीरान रुद्रभामिनोधीःहविष्मन्तः सदामित्वा हवाय हे।। कलश के नीचे गोबर छोड़ दे।

सप्तधान्य लेकर- ऊँ धान्यमसि धिनुहि देवान् प्राणायत्वोदानाय त्वाव्यानायत्वा दीर्घामनु प्रसिति भायुषेधान् देवो बः। सविता हिरण्यपाणिः प्रतिगृभ्णात्वाच्छिद्रेण पाणिना चक्षुषे त्वा महीनां पयोसि।। (कलश के नीचे छोड़े)

कलश को स्पर्ष कर-  ऊँ आजिप्त कलशं महयात्वाविशान्त्विन्दवः पुनरुर्ज्जा निवर्तस्व सा नः सहस्रं धुक्ष्वोरुधारा पयस्वती पुनर्माविशतादरपिः।। (कलश स्थापित करें)

जल लेकर- ऊँ वरुणस्मोस्तम्मनभासि वरुणस्य स्कम्भसर्ज्जनीस्थो वरुणस्यऽ ऋतसदन्यसि वरुणस्यऽऋत सदनमासीद।। (कलश में जल डालें)

सुपारी लेकर- ऊँ याः फलिनीर्या अफलाऽपुष्पा पाश्च पुष्पिणीः बृहस्पति प्रसुतास्तानो मुञ्चत्वग्वं हसः। (कलश में सुपारी डालें)

पञ्चपल्लव या आम का पल्लव लेकर- ऊँ अम्बे अम्बिके अम्बालिके नमानयति कश्चन सशस्त्यश्वकः सुभ्रदिकां काम्पील वासिनीम्।। (कलश में डालें।)

दुर्वा लेकर- ऊँ काण्डात् काण्डात् प्ररोहन्ती परुषः परुषस्परि। एवानो दूर्वे प्रतनु सहस्रेण  शतेन च।। (कलश में दूर्वा डालें)

पुष्प चंदन लेकर- ऊँ त्वा गन्धर्वा अखनंस्त्वां बृहस्पतिः।  त्वामोषधये सोमो राजा विद्वान्यक्ष्माद मुच्यत् । (कलश में छोडे)

सर्वोषधि लेकर-  ऊँ या ओषधीः पूर्वाजाता देवेभ्यस्त्रियुगं पुरा । मनै नु बभ्रूणामहगवं शतं धामानि सप्त च ।।(कलश में डालें)

कुश की पवित्री लेकर- ऊँ पवित्रेस्त्यो वैष्णत्यौ सवितुर्वः प्रसव-उत्पुनाम्यच्छिद्रेण पवित्रेण सूर्यस्य  रश्मिभिः।

तस्यते पवित्र पते पवित्रपूतस्य यत्कामः पुने तच्छकेयम् ।। (कलश में डालें)

सप्तमृतिका लेकर- ऊँ स्योना पृथिवी नो भवान्नृक्षरा निवेशनी ।  यच्छा न शर्म्म सप्प्रथाः।। (कलश में डालें)

पञ्चरत्न  लेकर- ऊँ परिवाजपतिः कविरग्निर्हव्यान्य क्रमीत् । दधद्रत्नानि दाशुषे।।  (कलश में डालें)

द्रव्य लेकर- ऊँ हिरण्यगर्भः समवर्त  ताग्रे भूतस्य  जातः पतिरेक आसीत् । स दाधार पृथिवी द्यमुतेमां कस्मै देवाय हविषा विधेम ।।(कलश में डालें)

लालवस्त्र से कलश को वेष्टित करें- ऊँ सुजातो ज्योतिषा सहशर्म्म बरुथमास  दत्स्वः । बासोऽग्ने विश्वरुपग्वं संव्ययस्व

विभावसो  ।।

पूर्णपात्र ढ़ाकन में चावल भरकर लें- ऊँ पूर्णा दर्वि परापत सुपूर्णा पुनरापत । वस्नेव विऽमीणावहा इषभूर्जग्वं शतक्रतो ।। (कलश पर डालें)

कलश के उपर नारियल रखे- ऊँ याः फलिनीर्या अफला अपुष्पा याश्च पुष्पिणीः। बृहस्पतिप्रसूतास्तानो मुञ्चन्त्वग्वं हसः।। (कलश पर रखें)

अक्षत लेकर वरुण का आवाहन करें- ऊँ तत्वा यामि ब्रह्रमणा वन्दमानस्तदाशास्ते यजमानो हविर्भिः। अहेऽमानो वरुणेह बोध्यरुशग्वं स मा न आयुः प्रभोषीः।। (अक्षत कलश पर छोड़े)

अक्षत लेकर- अस्मिन कलशे वरुणं साड़्ग  सपरिवारं सायुधं सशक्तिकं आवाहयामि स्थापयामि भो वरुण इहागच्छ इहतिष्ठ सुप्रतिष्ठितो भवः।। (कलश पर छोड़ें)

पुनः अक्षत लेकर- ऊँ सशान्ति कलशाधिष्ठित गणेशादि देवता इहागच्छत इहतिष्ठत ।।(कलश पर छोडें)

जल लेकर- एतानि पाद्यार्धाचमनीय स्नानीय पुनराचमनीयानि ऊँ कलशाधिष्ठित गणेशादि देवताभ्योनमः। 3 बार

पुष्प चंदन- इदं सपुष्पम चन्दनम ऊँ कलशाधिष्ठित गणेशादि देवताभ्योनमः। (कलश पर छोड़ें)

अक्षत-  इदं अक्षतं ऊँ कलशाधिष्ठित गणेशादि देवताभ्योनमः। (कलश पर छोड़ें) 3- बार

पुष्प- एतानि पष्पाणि ऊँ कलशाधिष्ठित गणेशादि देवताभ्योनमः। (कलश पर छोड़ें) 3-बार

विल्लव पत्र- इदं विल्लवपत्रं ऊँ कलशाधिष्ठित गणेशादि देवताभ्योनमः। (कलश पर छोड़ें)

दुर्वा- इदं दुर्वादलं ऊँ कलशाधिष्ठित गणेशादि देवताभ्योनमः। (कलश पर छोड़ें)

सिन्दूर- इदं सपुष्प सिन्दुरं ऊँ कलशाधिष्ठित गणेशादि देवताभ्योनमः। (कलश पर छोड़ें)

जल लेकर- एतानि गंधपुष्प धूप-दीप ताम्बूल यथा भाग नानाविध नैवेधानि ऊँ कलशाधिष्ठित गणेशादि देवताभ्योनमः। (कलश पर छोड़ें)

पुनः जल लेकर- इदं आचमनीयं ऊँ कलशाधिष्ठित गणेशादि देवताभ्योनमः। (कलश पर छोड़ें)

पुष्प लेकर- ऊँ शान्ति कुंभ महाभाग सर्वकाम फलप्रदः। पुष्पं गृहाण शुभं यच्छ देवाधार नमेस्तुते। एष पुष्पांजली कलशाधिष्ठित गणेशादि देवताभ्यो नमः।।

 

नवग्रह पूजा- हाथ में अक्षत लेकर-

अक्षत- ऊँ भूर्भुवःस्व साधिदैवत सप्रत्यधि दैवत विनायकादि पंचक सहित सूर्यादि नवग्रहाः इहागच्छत इहतिष्ठत । (पात पर अक्षत छोड़े)

जल लेकर- एतानि पाद्यार्घाचमनीय स्नानीय पुनराचमनीयानि साधि दैवत सप्रत्यधि दैवत विनायकादि पंचक सहित सूर्यादि नवग्रहेभ्यो नमः । (3 वार)

पुष्पचन्दन-

इदं स पुष्प चन्दनं साधिदैवत................... श्री सूर्यादि नवग्रहेभ्यो नमः। (3 वार)

अक्षत- इदं अक्षतं ऊँ साधिदैवत................ श्री सूर्यादि नवग्रहेभ्यो नमः । (3 वार)

पुष्प- एतानि पुष्पाणि साधिदैवत............. श्री सूर्यादि नवग्रहेभ्यो नमः। (3 वार)

विल्वपत्र- इदं विल्वपत्र साधि दैवत........... श्री सूर्यादि नवग्रहेभ्यो नमः।

दुर्वा- इदं दुर्वादलं साधि दैवत............. श्री सूर्यादि नवग्रहेभ्यो नमः।

जल लेकर- एतानि गंधपुष्प धूप-दीप –ताम्बूल साधिदैवत...... सूर्यादि नवग्रहेभ्यो नमः।  (कलश पर छोरे)

पुनः जल लेकर- इदं आचमनीय साधि दैवत....... श्री सूर्यादि नवग्रहेभ्यो नमः।

पुष्प लेकर- ऊँ ब्रह्रमा मुरारिस्त्रि पुरान्तकारी भानु शशी भूमिसतो बुधश्च । गुरुश्च शुक्रः शनि राहु केतवः सर्वे ग्रहाः शान्तिकरा भवन्तु । (कलश पर छोड़े )

इन्दादिदशदिकपाला पूजा-

अक्षत लेकर- ऊँ भूर्भुव स्वः श्री इन्द्रदिदशदिकपाला इहागच्छत इहतिष्ठत । (पात पर छोड़े )

जल लेकर- एतानि पाद्यार्घाचमनीय स्नानीय पुनराचमनीयानि श्री इन्द्रादिशदिक पालेभ्यो नमः । 3 वार

अक्षत- इदं अक्षतं श्री इन्द्रादिदशदिक पालेभ्यो नमः । 3 वार

पुष्प- एतानि पुष्पाणि श्री इन्द्रादिदशदिक पालेभ्यो नमः । 3 वार

विल्वपत्र- इदं विल्वपत्रं श्री इन्द्रादिदशदिक पालेभ्यो नमः ।

दुर्वा- इदं दुर्वादलं श्री इन्द्रदिदशदिकपालेभ्यो नमः ।

जल लेकर- एतानि गंधपुष्प धूप दीप ताम्बूल यथाभाग नानाविध नैवेद्यानि इन्द्रादिदशदिक पालेभ्यो नमः ।

पुनः जल लेकर- इदं आचमनीयं श्री इन्द्रादिदशदिकपालेभ्यो नमः ।

पुष्प लेकर-   ऊँ शतयज्ञ सुरारिघ्न सहसाक्षपुरन्दर ।पुष्पगृहाणशुभंयक्ष देवाधार नमोस्तुते । एष पुष्पांजली श्री इन्द्रादिदशदिकपालेभ्यो नमः।

अब गणेशजी के प्रतिमा को प्राणप्रतिष्ठा करें-

अक्षत एवं पुष्प लेकर-  ऊँ सिद्धि विनायकोसि  । यह पढ़कर गणेश जी पर फूल अक्षत चढ़ावें ।

पुनः पुष्प अक्षत लेकर- ऊँ मनो जूतिर्जुषतामाज्यस्म बृहस्पतिर्थज्ञमिमं तनो त्वरिष्टं यज्ञग्वंसमिमं दधातु विश्वेदेवा स इहं मादयतामो प्रतिष्ठ । ऊँ भूर्भुवः स्वः सांगसायुध सवाहन सपरिवार श्री सिद्धि विनायक इहागच्छ इहतिष्ठ इह सुप्रतिष्ठितो भव । (इस मंत्र के द्वारा प्रतिमा पर पुष्प अक्षत छोड़े )

पुनः पुष्प लेकर- ऊँ एकदन्तं सूर्पकर्ण गज वक्तं चतुर्भुजम् । पाशां कुश धरं देवं ध्यामेत सिद्धि विनायकम् ।। इदं ध्यानं पुष्पं श्री सांग सायुध सवाहन सपरिवार श्री सिद्धि विनायकाय नमः ।

पुनः पुष्प अक्षत लेकर- ओ आगच्छ जगदाधार सुरा सुर सुपूजित अनाथ नाथ सर्वज्ञ गीर्वाण सूर पूजित । इदं पुष्पाक्षतं सांग शायुध

सवाहन सपरिवार श्री सिद्धि विनायक इहागच्छ इहतिष्ठ ।

आवाहन के लिए पुष्प अक्षत लेकर- ऊँ अनेक रत्न संयुक्तं दिव्यास्तरणभूसितम् स्वर्णसिंहासनं चारु गृहाण सुर पूजित इदं आसनर्थे । पुष्पाक्षत सांग सायुध सावाहन सपरिवार श्री सिद्धि विनायकाय नमः (प्रतिमा पर छोड़ दे )

फूल पुष्प अक्षतयुक्त जल लेकर- ऊँ गौरीसुत नमस्तेस्तु शंकर प्रियसूनवे । पाद्य गृहाण देवेश गन्धपुष्पाक्षतैः फलेः इदं पाद्यं सांग सायुध सवाहन सपरिवार श्री सिद्धि विनायकाय नमः ।

 

चन्दन-पुष्प-अक्षत- फल युक्त जल लेकर- ऊँ अर्घ्य च फल संयुक्तं गन्ध-पुष्प क्षतैर्युतम् । गणाध्यक्ष नमस्तेस्तु गृहाण करुणानिधे । एषोर्धःसांगःसायुध सवाहन सपरिवार श्री सिद्ध विनायकाय नमः।

पुनः जल लेकर- ऊँ गंगाजलं समानीतं सुवर्णकलशे स्थितम । आचम्यतां गणाध्यक्ष सर्वविघ्न हरो भव । इदमाचमनीयं  सांगः सायुध सवाहन सपरिवार श्री सिद्धि विनायकाय नमः ।

मधुपर्क- एक बर्तन दही- घी एवं मधु मिलाकर लें- ऊँ दधिक्षीर घृतैश्चैव मधुखण्डै र्बिमिश्रितम् ।। प्रीत्यर्थ तव देवेश मधुपर्कन्ददाम्यहम् ।। एष मधुपर्क  सांगःसायुध सवाहन सपरिवार श्री सिद्धि विनायकाय नमः ।

पंचामृत-एक बर्तन में गाय की दूध-दही-घी-मधु एव शक्कर मिला कर लें – ऊँ  स्नानं पञ्चामृतं देव गृहाण गणनायक । अनाथ नाथ सर्वज्ञ सर्व सिद्धि प्रदोभव ।। इदं पञ्चामृतं स्नानीयं सांगः- सायुध सवाहन सपरिवार श्री सिद्धि विनायकाय नमः।

दुग्ध से स्नान- ऊँ क्षीरोदत नयानन्त क्षीरोदतनय प्रिय ।  क्षीरोदागारहृदय क्षीरे स्नानाय गृहयताम।। इदं स्नानीयं दुग्धं सांगः सायुध सवाहन सपरिवार श्री सिद्धि विनायकाय नमः ।

दधिस्नान- ऊँ घृतञ्च पयसोद्भूतं पवित्रं मंगलन्दधि । तस्यस्नानेन देवेश सर्वसिद्धि प्रदोभव । इदं दधिस्नानीयं सायुध सवाहन सपरिवार श्री सिद्धि विनायकाय नमः । घृत स्नानं- ऊँ देवास्तृ प्यन्ति पितरो मनुष्याश्चामितोयसः । घृतस्नानेन तस्मात्त्वं तृप्तिं कुरु बिनायक ।। इदं घृत स्नानीयं सांगः सायुध सवाहन सपरिवार श्री सिद्धि विनायकाय नमः । 

मधुस्नानं- ऊँ मधुरुपो वसन्तस्त्वं त्वमेव जगतां मधु । मधुसूदन सम्प्रीत्मा मधुस्नानाय गृहताम ।। इदं मधुस्नानीयसांग भाग्यं सांग सायुध  सवाहन सपरिवार श्री सिद्धि विनायकाय नमः ।

शक्कर स्नान- ऊँ इक्षुरससमुद्रभूतं शर्करा मधुर प्रिय । तस्या स्नाने रससिद्धि प्रयच्चछ में ।। इदं शर्करा स्नानं श्री सिद्धि विनायकाय नमः

गंगाजल से स्नान- ऊँ गंगादि सर्वतीर्थेभ्यः स्नानार्थ ते महाहृदतम् । अनाथनाथ सर्वज्ञ स्नानं कुरु महोत्तमम् ।। इदं मलापकर्षस्नानं श्री सिद्धि विनायकाय नमः।

तैल से स्नान- ऊँ तैलं सुगन्धसंयुक्तं नाना पुष्पैः सुवासितम् । मंगलार्थ मया दत्तमम्पड़्ग प्रतिगृहयताम् ।। इदं तैलाभ्यड़्ग स्नानं सांग सायुध सवाहन सपरिवार श्री सिद्धि विनायकाय नमः ।

गंगाजल स्नान- ऊँ नानातीर्थादाहृतञ्च सुगन्ध जल मुतमम् । उष्णं कृतं मया देव स्नानार्थ प्रतिगृऽयताम् ।। इदमुष्णोदक स्नानं सांग सायुध सवाहन सपरिवार श्री सिद्धि विनायकाय नमः ।

जल से – इदं आचमनीयं श्री सांग सायुधसवाहन सपरिवार श्री सिद्धि विनायकाय नमः । वस्त्र- ऊँ रक्त वस्त्र इयं देव दिव्यं काञ्चन सम्भवम् ।

सर्व प्रद गृताणेदं लम्वोदर हरात्मज ।। इदं रक्त वासोयुगं श्री सांग सायुध सवाहन सपरिवार श्री सिद्धि  विनायकाय नमः ।

जनेऊ- ऊँ राजतं ब्रह्र्म सूत्रञ्च काञ्चनञ्त्तरीय कम् । गृहाण चारु सर्वज्ञ भक्ततानां बरदो भव ।। इमे यज्ञो पवीते सांग  सायुध सवाहन सपरिवार श्री सिद्धि विनायकाय नमः ।

आभूषण – ऊँ स्वभाव सुन्दराञ्ड़्गाय नाना शक्त्त्या श्रयाय ते । भूषणानि विचित्राणि कल्पयाभ्पमरार्चित ।। एतानि सांग सायुध सवाहन सपरिवार श्री सिद्धि विनायकाय नमः।

चन्दन- श्री खण्ह चन्दनं दिव्यं कर्पूरेण च संयुतम् ।। गन्धं दास्यामि देवेश गणाध्यक्ष नमोस्तुते ।।इदं सपुष्प चन्दनं सांग सायुध सवाहन सपरिवार श्री सिद्धि विनायकाय नमः ।

रक्त चन्दन- इदं रक्ततानु लेपनम् सांग सायुध सवाहन सपरिवार श्री सिद्धि विनायकाय नमः ।

सिन्दूर लेकर-  ऊँ ऊद्यदभास्कर संकाशं सन्धयावदरुणं प्रभो । वीरालड्करणं दिव्यं सिन्दूरं प्रतिगृह्यताम् । इदं सिन्दूराभरणं सांगसायुध सवाहन सपरिवार सिद्धि विनायकाय नमः ।

लाल अक्षत लेकर- ऊँ रक्ताक्षतांश्च देवेश गृहाण द्विरदानन । ललाट पटलें चन्द्रस्तस्यो पर्यवधार्य़ताम् ।। इदं रक्ताक्षतं सांग सायुध सवाहन सपरिवार श्री सिद्धि विनायकाय नमः ।

फूल  लेकर- ऊँ सुगन्धीनि च पुष्पाणि धत्तरादीनि च प्रभो । विनायक नमस्तुभ्यं गृहाणं परमेश्वर ।। एतानि पुष्पाणि सांग सायुध सवाहन सपरिवार श्री सिद्धि विनायकाय नमः ।

विल्वपत्र- ऊँ त्रिशाखैर विल्वपत्रैश्च आहिदैः कोमलै शुभै । तव पूजां करिष्यामि गृहाण परमेश्वर ।। एतानि विल्वपत्राणि सांग सायुध सवाहन सपरिवार श्री सिद्धि विनायकाय नमः। दुर्वा- ऊँ दुर्वाड़्कुरान्  सुहरितानमृतान् मड़्गल प्रदान् । आनीतांस्त्वं पूजार्थ गृहाण गणनायक ।। एतानि दुर्वादलानि सांग सायुध सवाहन सपरिवार श्री सिद्धि विनायकाय नमः ।

अंग पूजा- अव एक पात्र में चन्दन- पुष्प – अक्षत एवं जल मिला कर थोरा-थोरा हाथ में लेकर मंत्रोचारण करते हुए गणेशजी पर छोरे-

1. ऊँ गणेशाय नमः पादौ पूजयामि ।।

2. ऊँ विघ्न राजायनमः जानुनी य़ामि ।।

3. ऊँ आखु वाहनाय नमः उरु पूजयामि ।।

 4. ऊँ हेरम्बाय नमः कटी पूजयामि ।।

5. ऊँ  गणाधिपतये नमः नामिं पूजयामिं।।

6. ऊँ लम्बौदराय नमः उदरं पूजयामि ।।

7. ऊँ गणनाकाय नमः हृदयं पूजयामि ।।

8. ऊँ गौरी सुताय नमः स्तनौ पूजयामि ।।

9. ऊँ स्थुल कण्ठाय नमः कठं पूजयामि ।।

10. ऊँ स्कन्धाग्रजाय नमः स्कन्धौ पूजयामि ।।

11. ऊँ पासहस्ताय नमः हस्तान पूजयामि ।।

12. ऊँ गज वक्त्राय नमः वक्त्रं पूजयामि ।।

13. ऊँ परशुधारिणे नमः  हस्तौ पूजयामि ।।

14. ऊँ विघ्न राजाय नमः नेत्रे पूजयामि ।।

15. ऊँ विघ्नहर्ते नमः ललाटं पूजयामि ।।

16. ऊँ सर्वेश्वराय नमः सिर पूजयामि ।।

17. ऊँ गणाधिपाय नमः सर्वाड़्ग पूजयामि ।।

अब नाना प्रकार के पत्र लेकर यथा- मालती भृंगराज (भंगरेया), विल्वपत्र, सफेद दुर्वा, बैरपत्र, धत्तूरपत्र, तुलसी,शम्मी, चिड़चिड़ी, वृहती, करवीर, आक, अर्जुन, अपराजिता, अनार, देवदारू, मसूरपत्र, सिन्दुबारपत्र, कतकीका पत्र, जातीपत्र, अगस्तिपत्र, गान्धारी पत्र, इस प्रकार से 22 प्रकार की पत्र से पूजन मंत्रोचारण करके करें । यथा-

पूजा- इदं मालती पत्रं ऊँ सुमुखाय नमः  ।।2. इदं भृंगराजपत्रं गणाधिपाय नमः ।। 3. इदं विल्वपत्रमुमापुत्राय नमः ।। 4.इदं श्वेत दुर्वापत्रं गजाननाय नमः।। 5. इदं बदरीपत्रं लम्वोदराय नमः ।। 6. इदं धत्तूरपत्रं हरसूनवे नमः ।। 7. इदं तुलसी पत्रं गजकर्णक नमः।।   8. इदं शमी पत्रत् वक्रतुण्डाय नमः।।

9. इदं मापामार्गपत्रं गुहां ग्रजाय नमः ।।10. इदं बृहती पत्रं एक दन्ताय नमः ।।11. इदं करवीर पत्रं विकटाय नमः ।।12. इदमर्क पत्रं कपिलाय नमः ।। 13. इदमर्जुनं पत्रं गजदन्ताय नमः ।।14. इदं अपराजिता पत्रं विघ्नराजाय नमः 15. इदं दाहिमीपत्रं बटवेश्वराय नमः ।।16. इदं देव दारुपत्रं सुराग्रजाय नमः ।।17. इदं मसूरपत्रं भाल चन्द्राय नमः ।।18. इदं सिन्दूवार पत्रं हेरम्बाय नमः ।। 19. इदं केतकीपत्रं विनायकाय नमः।। 20. इदं जातीपत्रं चतुर्भुजाय नमः ।।21. इदमगस्तिपत्रं सर्वेश्वराय नमः ।।22. इदं गान्धारी पत्रं सुराय नमः ।।

अर्थात यहाँ पर जितने पत्र का नाम दिया है अगर जो नही मिला तो उनके जगह पर दुर्वा लेकर पूजन करें ।

पुनः अव 22 दुर्वा लेकर एक पात्र में चन्दन- पुष्प एवं जल मिला कर एक-एक नाम मंत्र का उच्चारण करते हुए गणेश जी के 22 नामों का पूजन करें ।

यथाः-

1. इदं दुर्वायुग्म गन्धाक्षत पुष्पाणि गणाधिपाय नमः ।।

2. इदं दुर्वायुग्म गन्धाक्षत पुष्पाणि उमापुत्राय नमः ।।

3. इदं दुर्वायुग्म ............ अघनाशिने नमः ।।

4. ....... विनायकाय नमः ।।

5. ........ ईशपुत्राय नमः ।।

6. ........ सर्वसिद्धिप्रदाय नमः ।।

7. ...................एक दन्ताय नमः ।।

8. ............... एय वक्त्राय नमः ।।

9................मूषक वाहनाय नमः ।।

10. .......... कुमार गुरुवे नमः ।।

इदं दुर्वायुग्म गन्धाक्षत पुष्पाणि कपिलाय नमः ।।

अव धूप लेकर- दशाड़्ग गुग्गुलं धूपमुक्तमं गणनायक । गृहाण सर्व देवेश उपमापुत्र नमोस्तुते ।। एष धूपः सांग सायुध सबाहन सपरिवार श्री उमापुत्राय नमः ।।

दीपलेकर – ऊँ सर्वज्ञ सर्वलोकेश सर्वेषान्तिमिरापह । गृहाण मंगलं दीपं रूद्रप्रिय नमोस्तुते ।। एष दीपः सांग सायुध सबाहन सपरिवार रूद्र प्रियाय नमः। 

नैवेध के लिए जल लेकर भावना करें – ऊँ नमो मोदक हस्ताय भाल चन्द्रायते नमः । नैबेद्यं गृह्यतां देव सड़्कटं में निवारय ।। ईप्सितं मे वरं देहि विघ्ननाशिन्नमोस्तुते । नानारवाद्यमयं दिव्यं  बुष्ट्यर्थ ते निवेदितम् ।। मया भवत्या शिवापुत्र गृहाण गणनायक ।। एतानि मोदक सहित नानाविध नैवेद्यानि सांग सायुध सवाहन सपरिवार विघ्ननाशिने नमः ।।

सुगन्धित श्री खण्डमिश्रित जल लेकर - ऊँ एलोशीर लवड़्गादि कर्पूर परिवार वासितम् । प्राशनार्थ कृतं तोयं गृहाण गणनायक ।।

ऊँ नमस्ते देव देवेश सर्वतृप्रिकरं परम् । अखण्डानन्द सम्पूर्णं गृहाण जलमुक्तमम् ।। इदं पानार्थ सुगन्धितजलं सांग सायुध सवाहन सपरिवार श्री सिद्धि विनायकाय नमः ।।

पुनःजल लेकर- इदं पुनराचमनीयं सांग सायुधसवाहन सपरिवार श्री सिद्धि विनायकाम नमः ।।

 

 

अव 21 (इक्कीस ) पान लेकर – ऊँ पूगीफलं महदिव्यं नागबल्लीदलैर्युतम् ।

कर्पूरेण समायुक्तं ताम्बूलानि गृहृयताम् ।। एतानि ताम्बूलानि सांग सायुध सवाहन सपरिवार श्री सिद्धि विनायकाय नमः ।।

 

अब अनेक प्रकार के फल लेकर- ऊँ नालिकेरञ्च नारडंग कदम्बं मातुलिड़्गकम । दाक्षाखर्जुरदाडिम्बं गृहाण गणनायक ।। एतानि नाना विध फलानिसांगसायुधसवाहन स परिवार श्री सिद्धि विनायक नमः

 

भगवान के लिए दक्षिणा द्रव्य लेकर-

दक्षिणा- ऊँ हिरण्यगर्भ गर्भस्थं हेम बीजं विभावसोः । तेन प्रीतो गणाध्यक्षा भव सर्व फलप्रद ।। इदं दक्षिणा द्रव्य सांग सायुध सवाहन सपरिवार श्री सिद्धि विनायकाय नमः ।

 

आरती लेकर- ऊँ नीराजनं गृहाणेश शोभनं भक्ति संयुतम् । अनाथ नाथ सर्वज्ञ नमस्ते भक्तवत्सल ।।

इदं नीराजनं सांग सायुध सवाहन सपरिवार श्री सिद्धि विनायकाय नमः ।

अर्थात जल लेकर आरती को उत्सर्ग कर भगवान को आरती घुमावें ।

आरती घुमाने के वाद पुनः जल लेकर आरती रख कर जल लेकर भगवान को दिखाकर नीचे गिरा दें । एवं भगवान को आरती देकर सभी लोग आरती का ग्रहण करें ।

अब पुष्पांजलि के लिए फूल लेकर सभी लोग मंत्र का उच्चारण करें

ऊँ नमः स्तुतोऽसि विघ्नेश सर्वविघ्न हरो भव-1

ईप्सितम्मे बरं देहि नमस्ते भक्त वत्सल ।।

देव देव जगन्नाथ भक्तानां वर दायक ।

आर्वहनं कुरु देवेश सर्वकार्येषु सर्वदा ।।

एष पुष्पांजलि सांग सायुध सवाहन सपरिवार श्री सिद्धि विनायकाय नमः।

 

प्रार्थना करें –

ऊँ दीयते गणनाथाय प्रीयताम्मे गणाधिपः ।

सौख्यं सौभनस्यं नित्य करोतु गणनायकः ।।

दाता विघ्नेश्वरो देवो ग्रहीता चापि विघ्नराट् ।

तस्मादिदं मया दत्तं सम्पूर्णत्वं ददस्व में ।।

विनायक नमस्तेऽतु  विघ्नेश सुर पूजित ।

ईप्सितम्मे वरं देहि नमस्ते करुणा कर ।।

आधारः सर्वभूतानामधिपः सर्व कार्यदः ।

व्रते नानेन देवेश सुप्रीतो भव सर्वदा ।।

विनायक गणेशान सर्व देव नमस्कृत ।

पार्वती प्रिय विघ्नेश मम विघ्नं विनाशय ।।

सर्वत्र सर्वदा देव निर्विघ्नं कुरु सर्वग ।

मानो भतिञ्च राज्यञ्च पुत्र पौत्रान प्रदेहि में ।

विघ्नाभाशय में सर्वभाशापोपस्थि तान् प्रभो ।

त्वत्प्रसादेन कार्याणि सर्वाणीह करोभ्यहम् ।।

शत्रूणां बुद्धिनाशोस्तु मित्राणांमुदयं कुरु ।

इति विज्ञाप्य देवेशं प्राणि पत्य पुनःपुनः ।। यह प्रार्थना कर साष्टाड़्न दण्दवत प्रणाम करें ।

प्रदक्षिणा करें-निम्न मंत्र वोलते हुए – 3 वार करें

ऊँ यानि कानि च पापानिब्रह्रत्यासमानिच । तानि-तानि प्रणश्यन्ति प्रदक्षिणां पदे-पदे ।। 3 वार करें

तत्पश्चात- ऋद्धि एवं सिद्धि की पंचो पचार पूजन कर दश प्रकार के मोदक( लड्डु) भगवान (गणेशजी ) को समर्पित करें ।

ऊँ मोदकान दशसंख्याकान् सगुऽन घृत पाचि तान् । विप्र बर्याय दास्यामि गणनाथ प्रतुष्ट ये ।।

एतानिमो मोदकानि सांग सायुध सवाहन सपरिवार श्री सिद्धि विनायकाय नमः ।

फिर कुश तिल लेकर- ऊँ अद्य सांग सायुध सवाहन सपरिवार श्री सिद्धि विनायक प्रीतिकाम इयान् दशसंख्य कान् मोदकान् अमुक शर्मणे ब्राह्रमणाय सम्पददे ।। यह मंत्र कह कर ब्राह्रमण लडू समर्पित करें ।

                                                 

                                                      ।। अथ विसर्जनम् ।।

पुष्प लेकर-

 ऊँ विनायक गणेशान सर्व देव नमस्कृत ।

पार्वती प्रिय विघ्नेश मम विघ्नान्निबार य ।।

यन्यमा चरितं देव व्रत येतत् सुदुर्लमम् ।

त्वत्प्रसादाद गणेश त्वं सफलं कुरु सर्वदा ।।

आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम् ।

पूजा चैव न जानामि क्षमस्व परमेश्वर ।।

व्रतं कृतं मयादेव यतोऽद्य विधिवन्मया ।

व्रजेदानीं गणेशस्त्वं स्वस्थानं बै यदृच्छया ।।

इदं प्रार्थना पूर्वकं पुष्पाणि सांग सायुध सवाहन सपरिवार श्री सिद्धि विनाय काय नमः।।

 

अक्षत लेकर-

ऊँ यान्तु देवगणाः सर्वे पूजामादाय मामकीम् इष्ट काम प्रसिद्धयर्थ पुनरागमनाथ च ।।

ऊँ पूजित देवताः पूजितास्थ क्षमध्वं स्वस्थानंगच्छत् ।

जल लेकर –ऊँ सांग सायुध सवाहन सपरिवार श्री सिद्धि विनायकाय पूजितोऽसि प्रसीद क्षमस्व स्वस्थानं गच्छ ।

 

पुनः जल लेकर

ऊँ शान्ति फलशाधिष्ठित गणेशादि देवताः पूजितास्थः क्षमध्वम् स्वस्थानं गच्छत ।

पुनः जल लेकर- ऊँ सूर्यादि पञ्चदेवता पूजितास्य क्षमध्वम् स्वस्थानं गच्छत ।

पुनः जल लेकर- ऊँ भुर्भुवः स्वः भगवन विष्णो पूजितोऽसि प्रसिद क्षमस्व स्वस्थानं गच्छ ।

पुनः जल लेकर- ऊँ श्री इन्दादिदशदिकपालाः पूजितास्थ क्षमध्वम् स्वस्थानं गच्छत ।

पुनः जल लेकर- ऊँ सूर्यादि नवग्रहा पूजितास्थ क्षमध्वम् स्वस्थानं गच्छत ।

अतएव विसर्जन करके कलश का शान्ति जल सभी लोगो पर छिड़के ।

 

तत्पश्चात कर्मदक्षिणा करें-

तिल कुश जल एवं दक्षिणा द्रव्य लेकर मंत्र पढ़े यथा -

 ऊँ अद्य कृतैतत्साड़ाग सायुध सवाहन सपरिवार श्री विनायक गणेश पूजन कर्म प्रतिष्ठार्थ एतावद द्रव्यमुल्यक हिरण्यमग्नि दैवतं यथा नाम गोत्राय ब्राह्राणाय दक्षिणा अहं ददे ।। इस मंत्र से ब्राह्रमण को दक्षिणा देकर यथा शक्ति ब्राह्रण भोजन करावें तथा प्रसाद वितरण करें ।

 

                                                                          इति

डा० रामकुमार झा

ज्योतिषाचार्यद्वय

सहायक प्राध्यापक

श्री जगदम्बा संस्कृत महाविद्यालय, बाथो, दरभंगा

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